भारतीय राष्ट्रवाद के विरूद्ध है भाजपा-आरएसएस का एजेंडा
भारतीय राष्ट्रवाद के विरूद्ध है भाजपा-आरएसएस का एजेंडा
मोदी की 2014 विजय-भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव-2
राम पुनियानी
हिन्दुत्व: चुनावी रणनीति
आरएसएस, चुनाव मैदान में शनैः शनैः उतरा। सन् 1984 के चुनाव में उसने गांधीवादी समाजवाद का नारा दिया और उसे लोकसभा में केवल दो सदस्यों से संतोष करना पड़ा। वहां से शुरू कर, सन् 1996 के चुनाव में उसके 120 सांसद चुनकर आए और वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। परंतु कोई भी अन्य दल उसके साथ हाथ मिलाने को तैयार नहीं था और उसकी सरकार गिर गई। ‘तीसरा मोर्चा’ बनाने के कुछ असफल प्रयासों के बाद, भाजपा, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बनाने में सफल हो गई। परंतु बदले में उसे राममंदिर, संविधान के अनुच्छेद 370 की समाप्ति व समान नागरिक संहिता जैसे अपने मूल मुद्दे छोड़ने पड़े। परंतु यह रणनीति पार्टी के लिए उपयोगी सिद्ध हुयी और एनडीए ने लगभग छह वर्षों तक शासन किया। इस दौरान उसने पाठ्यपुस्तकों का सांप्रदायिकीकरण कर दिया17 और आरएसएस के कार्यकर्ताओं को सरकारी सेवा में घुसपैठ करने की पूरी छूट मिल गई। संघ के एजेण्डे वाले कई एनजीओ को जमकर सरकारी सहायता उपलब्ध करवाई गई। इस सब से आरएसएस के प्रभावक्षेत्र में जबरदस्त वृद्धि हुयी और जीवन के सभी क्षेत्रों में उसकी उपस्थिति स्पष्ट नजर आने लगी।
चूंकि हिन्दुत्व परिवार यह जानता था कि वह अपने बल पर कभी सत्ता में नहीं आ सकता, इसलिए उसने ‘विकास के गुजरात मॉडल’ को सामने रखा और हिंदुत्व के एजेण्डे को पीछे।
हिन्दू राष्ट्र का एजेण्डा
मोदी, हिन्दुत्व के एजेण्डे के आक्रामक चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने खुलेआम यह कहा है कि वे हिन्दू राष्ट्रवाद में यकीन करते हैं।18 दरअसल, हिन्दू राष्ट्रवाद उस सांप्रदायिक फासीवाद का मुखौटा मात्र है जो आरएसएस और मोदी देश पर लादना चाहते हैं। आरएसएस और मोदी के समर्थक एक ओर कारपोरेट सेक्टर व उसके मध्य स्तर के कर्मचारी हैं तो दूसरी ओर, सूचना प्रौद्योगिकी-एमबीए युवा वर्ग भी उनसे प्रभावित है। मोदी ने गुजरात में यह दिखा दिया है कि वे उद्योगपतियों के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल सकते हैं। इससे कारपोरेट सेक्टर बहुत प्रभावित है और मोदी के नाम का जाप कर रहा है।19 कारपोरेट मीडिया बिना कोई जांच पड़ताल के उनके विकास के नारे का गुणगान कर रहा है। गुजरात में समाज कल्याण की योजनाओं को लगभग ठप्प कर दिया गया है, जिसके कारण समाज का गरीब तबका परेशानहाल है। जहाँ तक अल्पसंख्यकों का सवाल है, सच्चर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर शुरू की गईं केन्द्रीय योजनाओं को गुजरात में लागू नहीं किया जा रहा है। मुस्लिम विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा जो धनराशि राज्य को भेजी जा रही है उसे साल-दर-साल वापस लौटाया जा रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी, धार्मिक अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए किसी भी प्रकार की योजना लागू किये जाने के खिलाफ हैं।20
वे कारपोरेट जगत, मध्यम वर्ग, व्यापारियों और आरएसएस समर्थकों की पसंद हैं। इनमें से हर एक वर्ग मोदी को अलग-अलग तरीके से देखता है और तीनों को वे उपयोगी नजर आते हैं। कारपोरेट जगत मानता है कि मोदी उन्हें देश के प्राकृतिक संसाधनों को खुलकर लूटने की इजाजत देंगे। मध्यम वर्ग को यह मालूम है कि मोदी का शासन इस बात की गारंटी है कि राज्य, वंचित वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों की बेहतरी के लिए आवश्यक सामाजिक परिवर्तन नहीं होने देगा। आरएसएस ने आडवाणी को दो कारणों से त्याग दिया है। पहला, उनका यह वक्तव्य कि जिन्ना धर्मनिरपेक्ष नेता थे20 और दूसरा यह कि उनकी आयु बहुत अधिक हो गई है। भाजपा का असली नियंत्रक आरएसएस है और वह जानता है कि मोदी एक ऐसे स्वयंसेवक हैं जो निर्ममतापूर्वक देश में हिन्दू राष्ट्र ला सकते हैं।
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि भाजपा के शासन की तुलना में कांग्रेस-शासित प्रदेशों में अधिक हिंसा हुयी है। यह भी कहा जाता है कि इससे यह सिद्ध होता है कि भाजपा, सांप्रदायिक नहीं है। यह सही है कि कांग्रेस शासनकाल में देश भर में अनेक दंगे हुए हैं। ये दंगे सांप्रदायिक संगठनों द्वारा भड़काए जाते हैं और कांग्रेस सरकारें निश्चित तौर पर इन दंगों को नियंत्रित न करने के लिए दोषी ठहरायी जा सकती हैं। अधिकांश दंगा जांच आयोगों की रपटों से यह साफ है कि हिंसा की योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम देने तक का काम सांप्रदायिक संगठन करते हैं और कांग्रेस का नेतृत्व या तो असहाय हो उन्हें देखता रहता है या अपरोक्ष रूप से उनकी मदद करता है।22 परंतु हमें यह याद रखना चाहिए कि एक पार्टी के बतौर भाजपा की किसी और पार्टी से तुलना न तो की जानी चाहिए और ना ही की जा सकती है। भाजपा केवल एक राजनीतिक दल नहीं है। वह आरएसएस की राजनैतिक शाखा है जिसका एजेण्डा धर्मनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक भारत के एजेण्डे के विरूद्ध है। यह भारतीय राष्ट्रवाद के विरूद्ध है, उन लोगों के सपनों के खिलाफ है जिन्होंने भारत को एक राष्ट्र का स्वरूप देने में भूमिका निभाई और गांधी, भगत सिंह व अंबेडकर की विचारधारा के भी विरूद्ध है।
चुनाव 2014
हालिया आमचुनाव के नतीजे बहुत दिलचस्प हैं। लगभग 31 प्रतिशत वोट प्राप्त कर भाजपा-मोदी, 282 लोकसभा सीटें जीतने में सफल हो गये हैं। निःसंदेह, मोदी इस चुनाव के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बनकर उभरे हैं। यह बार-बार कहा जा रहा है कि धर्म और जाति के बंधनों को तोड़कर, मतदाताओं ने उन्हें इसलिए समर्थन दिया क्योंकि वे ‘‘विकास के पुरोधा’’ हैं। यह दावा किस हद तक सही है? सबसे पहली बात तो यह है कि मोदी को बड़े उद्योगपतियों का जबरदस्त समर्थन प्राप्त था23। उनके चुनाव अभियान में पैसा, पानी की तरह बहाया गया। इसके अतिरिक्त, लाखों आरएसएस कार्यकर्ताओं ने भाजपा को जीत दिलाने के लिए जमीनी स्तर पर दिन-रात पसीना बहाया24। इस तरह, मोदी की जीत के दो स्तंभ थेः पहला कारपोरेट घराने और व दूसरा आरएसएस। मोदी ने बार-बार दोहराया कि यद्यपि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान न्योछावर नहीं कर सके परंतु वे स्वतंत्र भारत के लिए सब कुछ करेंगे। यह उन कई झूठों में से एक है जो उन्होंने अपनी छवि को चमकदार बनाने के लिए गढ़े थे।
हम सब जानते हैं कि वे आरएसएस-हिन्दुत्व की उस राजनैतिक विचारधारा के हामी हैं, जिसने भारत के स्वाधीनता संग्राम में कभी हिस्सा नहीं लिया। संघ-भाजपा-हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवाद, स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रवाद से बिल्कुल भिन्न है। गांधी और स्वाधीनता संग्राम का राष्ट्रवाद, भारतीय राष्ट्रवाद था जबकि मोदी परिवार का राष्ट्रवाद, हिन्दू राष्ट्रवाद है। यह जिन्ना के मुस्लिम राष्ट्रवाद की तरह, एक प्रकार का धार्मिक राष्ट्रवाद है। मुस्लिम लीग का मुस्लिम राष्ट्रवाद और हिन्दू महासभा-आरएसएस का हिन्दू राष्ट्रवाद, परतंत्र भारत में दो समानांतर राजनैतिक धाराएं थीं। स्वाधीनता संग्राम के दौरान संघ और उसके साथी, आजादी की लड़ाई की आलोचना किया करते थे क्योंकि वह समावेशी भारतीय राष्ट्रवाद पर आधारित थी। इसलिए, मोदी और उनके जैसे लोगों का देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान न्योछावर करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं था।
मोदी की जीत के कई कारण हैं। इनमें शामिल हैं हमारी चुनाव प्रणाली, मोदी की आक्रामक शैली, कांग्रेस की कमजोरियों का लाभ उठाने में उनकी सफलता, जनता से संवाद स्थापित करने की उनकी असाधारण क्षमता और राष्ट्रपति प्रणाली की तर्ज पर चलाया गया चुनाव अभियान। इसके मुकाबले, कांग्रेस का प्रचार अभियान अत्यंत फीका था और यूपीए सरकार पर भ्रष्ट होने और अनिर्णय का शिकार होने के आरोप थे। कांग्रेस की साख को गिराने का काम अन्ना हजारे के आंदोलन से शुरू हुआ, जिसे आरएसएस का समर्थन प्राप्त था। इस आंदोलन को केजरीवाल आगे ले गये और उन्होंने कांग्रेस की जीत की संभावनाओं को धूमिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। केजरीवाल ने भाजपा के भ्रष्टाचार के बारे में काफी देर से बोलना शुरू किया और वह भी काफी हिचकिचाहट के साथ। ऐसा क्यों हुआ, यह कहना मुश्किल है। अन्ना, जिन्हें दूसरा गांधी बताया जा रहा था, मंच पर अपनी भूमिका निभाकर अदृश्य हो गये26। केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने सामाजिक आंदोलन को राजनैतिक दल की शक्ल दे दी। इससे सभी सामाजिक आंदोलनों की साख और उनके असली इरादों पर प्रश्नचिन्ह लगा। आप का भ्रष्टाचार विरोधी प्रचार, मुख्यतः कांग्रेस पर केन्द्रित था। आप ने इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि भ्रष्टाचार हमारी सामाजिक व्यवस्था में गहरे तक पैठी विकृतियों का नतीजा है। यह भी तथ्य है कि भ्रष्टाचार वही कर सकता है जो सत्ता में हो और समाज का वह वर्ग, जो जल्द से जल्द अमीर बन जाना चाहता है, भी भ्रष्टाचार के लिए उतना ही दोषी है जितना कि भ्रष्ट मंत्री या अधिकारी। आप ने 400 से अधिक उम्मीदवार खड़े किये, जिनमें से अधिकांश ने अपनी जमानतें गवां दीं। इनमें से कई उम्मीदवार ऐसे थे जिनकी जनता में बहुत उजली छवि थी और जिन्होंने सामाजिक बदलाव के लिए अथक और कठिन संघर्ष किये थे। आप ने कांग्रेस की साख को गिराने में महती भूमिका निभाई। उसने भाजपा को भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने वाले दल के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने में मदद की। आप ने काफी बाद में भाजपा के भ्रष्टाचार के बारे में बात करनी शुरू की।
जहाँ तक ‘विकास’ के एजेण्डे का सवाल है, मोदी ने गुजरात कत्लेआम में अपनी भूमिका निभाने के बाद, जल्दी ही गुजरात के विकास के नारे का दामन थाम लिया। गुजरात के विकास का मिथक, अरबपति उद्योगपतियों के प्रति राज्य सरकार की उदारता पर आधारित था। गुजरात सरकार से मिल रहे लाभों के बदले, उद्योगपतियों ने 2007 से ही ‘‘मोदी को प्रधानमंत्री होना चाहिए’’ के मंत्र का अनवरत जाप शुरू कर दिया था। जहाँ गुजरात में धार्मिक अल्पसंख्यकों को समाज के हाशिए पर पटक दिया गया और उन्हें दूसरी श्रेणी का नागरिक बना दिया गया वहीं गुजरात के विकास के किस्से देशभर में गूंजने लगे। दूसरे राजनीतिक दलों और अध्येताओं ने लंबे समय तक इन दावों को चुनौती नहीं दी। जब गुजरात के समाजिक-आर्थिक सूचकांकों व अन्य आंकड़ों का आलोचनात्मक विश्लेषण किया गया तब गुजरात के विकास का सच सामने आया; परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस सच को आमजनों तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त समय नहीं बचा था।
सतही तौर पर देखने से ऐसा लग सकता है कि मोदी का चुनाव अभियान केवल विकास के एजेण्डे पर आधारित था। परंतु यह सच नहीं है। मोदी ने सांप्रदायिकता और जाति के कार्ड को जमकर खेला। यह काम अत्यंत कुटिलता से किया गया। उन्होंने भारत से मांस के निर्यात की आलोचना की और उसे पिंक रेव्युलेशन बताया27। इसका उद्देश्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को गौहत्या से जोड़ना था। इस तरह, उन्होंने एक आर्थिक मुद्दे को सांप्रदायिक मुद्दे में बदल दिया। मोदी बार-बार बांग्लाभाषी मुसलमानों के विरूद्ध बोलते रहे। उन्होंने अपनी अनेक जनसभाओं में कहा कि असम की सरकार एक सींग वाले गेंडे को मारकर, बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए जगह बना रही है28। उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को 16 मई को अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर भारत से प्रस्थान करने के लिए तैयार रहना चाहिए। ये सारी बातें उनके चुनाव प्रचार के सांप्रदायिक चेहरे को उजागर करने के लिए काफी हैं। भाजपा के प्रवक्ता कई बार कह चुके हैं कि जहाँ बांग्लाभाषी हिन्दू शरणार्थी हैं, वहीं बांग्लाभाषी मुसलमान घुसपैठिए हैं। उनकी पार्टी के नेता अमित शाह ने मुजफ्फरनगर में ‘प्रतिशोध’ की बात कही और गिरीराज सिंह ने यह चेतावनी दी कि मोदी के विरोधियों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए।29
अगर हम उन क्षेत्रों पर नजर डालें जहाँ भाजपा ने विजय प्राप्त की है तो अत्यंत चिंताजनक तथ्य सामने आता है। ऊपर से देखने पर तो प्रतीत होता है कि भाजपा की विजय के पीछे विकास का वायदा था परंतु इस जीत में धार्मिक ध्रुवीकरण की भूमिका को नकारना बचपना होगा। भाजपा को उन्हीं क्षेत्रों में अधिक सफलता मिली है जहाँ सांप्रदायिक या आतंकवादी हिंसा के कारण, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है। महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार व असम-इन सभी राज्यों में अलग-अलग समय पर व्यापक सांप्रदायिक हिंसा हुयी है। इसके विपरीत, तमिलनाडु, बंगाल और केरल, जो सांप्रदायिक हिंसा से तुलनात्मक रूप से मुक्त रहे हैं, वहां भाजपा अधिक सफलता अर्जित नहीं कर सकी है। इस मामले में उड़ीसा एक अपवाद है, जहाँ ईसाई-विरोधी कंधमाल हिंसा के बावजूद, नवीन पटनायक की पार्टी ने अपनी पकड़ बनाए रखी है।
...........जारी
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संघ परिवार और हिन्दू राष्ट्रवाद का एजेण्डा
संदर्भ
17. http://www.educationobserver.com/saffronisation-of-Indian-Education.html
18. http://www.newindianexpress.com/nation/I-am-a-patriot-and-a-Hindu-nationalist-says-Modi/2013/07/12/article1680508.ece
19. http://www.livemint.com/Politics/HmcZzc60Il1sKfRCPCOQyK/India-business-favours-Narendra-Modi-to-be-PM-poll.html
20. http://ibnlive.in.com/news/modi-deprives-muslim-students-of-scholarship/98808-37.html
21. http://www.telegraphindia.com/1050605/asp/nation/story_4828954.asp
22. http://www.countercurrents.org/puniyani120410.htm
23. http://www.dnaindia.com/analysis/column-why-big-business-strongly-favours-narendra-modi-1823847
24. http://www.firstpost.com/election-diary/how-the-rss-is-heavily-invested-in-elections-2014- and-modi-1448357.html
25. http://www.academia.edu/676532/The_Freedom_Movement_and_the_RSS_A_Story_of_Betrayal
26. http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/tp-newdelhi/bjp-using-baba-ramdev-anna-to-discredit-congress/article2887228.ece
27. http://www.thehindu.com/news/national/other-states/modi-fears-a-pink-revolution/article5864109.ece
28. http://english.thereport24.com/?page=details&article=65.4787
29. http://timesofindia.indiatimes.com/news/Those-opposed-to-Narendra-Modi-should-go-to-Pakistan-BJP-leader-Giriraj-Singh-says/articleshow/33971544.cms?


