जनवादियों ने डॉ विनायक सेन को रिहा करने की मांग की
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की एक निचली अदालत द्वारा डॉ. विनायक सेन को आजीवन कारावास की दी गई सजा से भारतीय लोकतंत्र की सड़ांध (पीप) सामने आई है। इस सड़ांध से निजात पाने के लिए हमें एकजुट होकर संघर्ष करना पड़ेगा। अन्यथा जर्जर हो चुकी भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के अगले शिकार वे सभी जनवादी ताकतें होंगी, जो गरीबों, आदिवासियों, उपेक्षितों, शोषितों की आवाज उठाती हैं।
ये बातें सोमवार को जन्तर-मंतर में आयोजित विरोध-प्रदर्शन के दौरान स्वामी अग्निवेश ने कही। प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ लेखिका अरुंधती रॉय ने कहा कि डॉ विनायक सेन को दी गई सजा फासीवाद का उदय है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि अगर न्यायपालिका लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा नहीं कर सकती, तो उसकी आलोचना होनी चाहिए। ये हर तरह से जायज है। विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए अन्य वक्ताओं ने कहा कि रायपुर की सत्र अदालत ने विनायक सेन और उनके साथ नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को राजद्रोह का दोषी पाते हुए, जो आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, वो देश ही नहीं, पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक जनमानस के लिए गहरा आघात है। इस मामले में चला मुकदमा झूठे सुबूतों और हास्यास्पद दलिलों के लिए याद किया जाएगा। मामले में साक्ष्यों को इकट्ठा करने के लिए जरूरी कानूनी प्रक्रिया का खुलेआम किया गया उल्लंघन भी अदालत को गंभीर बात नहीं लगी। ऐसे ओछी, बिना किसी प्रमाण के प्रायोजित झूठे सुबूतों के आधार पर सजा सुनाया जाना न्याय का माखौल उड़ाना है ही, लोकतंत्र के लिए गंभीर आघात भी है।
विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि ये फैसला विनायक सेन के खिलाफ ही नहीं, बल्कि ये विरोध के सभी स्वरों और राज्य दमन, कॉर्पोरेट लूट एवं भूमि कब्जा का विरोध करने वाले तमाम बौद्धिक तबकों को चुप कराने एवं धमकाने के लिए सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों की सरकार की कोशिश है। विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने ‘ए वर्ल्ड टु विन’ के प्रकाशक असित सेनगुप्ता को तथाकथित ‘‘प्रतिबंधित साहित्य’ रखने के आरोप में रायपुर की ही एक अन्य अदालत द्वारा उसी दिन सुनाई गई 11 साल की सजा पर भी गंभीर चिंता जाहिर की। इस मामले में प्रतिबंधित साहित्य के रूप में दास कैपिटल, कम्युनिस्ट घोषणापत्र, अंबेदकर और भगत सिंह की रचनाओं को शामिल किया गया था। वक्ताओं ने बिनायक सेन को रिहा कराने, छत्तीसगढ़ समेत अन्य जगहों पर हो रहे विरोध के स्वरों को झूठे मुकदमों में फंसाने, छत्तीसगढ़ पब्लिकसिक्योरिटी एक्ट, यूएपीए एवं एएफएसपीए जैले काले कानूनों को रद्द कराने के लिए संघर्ष तेज करने का संकल्प लिया गया। विरोध कार्यक्रम में आइसा, पीयूडीआर, पीयूसीएल, एपीसीआर, एनएपीएम, अनहद, एचआरआलएन, दिल्ली फिल्म आर्काइव्स, जेटीएसए, दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप, ऐपवा, सहेली, सीएवीओडब्ल्यू, फाउंडेशन आॅफ मीडिया प्रोफेशनल्स, जन संस्कॉति मंच, द ग्रुप, स्वामी अग्निवेश समेत सैकड़ों लेखक, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, प्रोफेसर, शिक्षक, समाजसेवियों ने शिरकत की।