कभी भारतीय कम्युनिस्टों का ‘लेनिनग्राद’ कहे जानेवाले बेगूसराय जिले में भाकपा के हंसिया और जौ की बालीवाले झंडे लहराया करते थे। अब वहां मुख्य चुनावी संघर्ष भाजपा गठबंधन और लालू-नीतीश और कांग्रेस के महागठबंधन के बीच साफ नजर आ रहा है।

मध्य बिहार में तेजी से बदले राजनीतिक और सामाजिक समीकरण
गया, 27 सितंबर। राजनीति की विडंबनाएं कब किसे, कहां और किस मोड़ पर लाकर खड़ा करती हैं, इसे मध्य बिहार के बेगूसराय, जहानाबाद, अरवल, गया और औरंगाबाद के ग्रामीण इलाकों में देखा जा सकता है।
कभी भारतीय कम्युनिस्टों का ‘लेनिनग्राद’ कहे जानेवाले बेगूसराय जिले में भाकपा के हंसिया और जौ की बालीवाले झंडे लहराया करते थे। अब वहां मुख्य चुनावी संघर्ष भाजपा गठबंधन और लालू-नीतीश और कांग्रेस के महागठबंधन के बीच साफ नजर आ रहा है।
राष्ट्रकवि दिनकर और प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा यहीं के थे। यहां कभी भाकपा के सांसद और विधायक चुनाव जीतते थे। कुछ भूमिहार नेता यहां अभी भी भाकपा के साथ हैं, लेकिन उनका सवर्ण जनाधार बड़े पैमाने पर भाजपा के पाले में चला गया दिखता है। इनके साथ ही राजपूत और ब्राह्मण-वैश्य पहले से ही बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ होते थे, भी भाजपा के साथ जुड़े हैं। जबकि यादव, कुर्मी और मुसलमान तथा कुछ हद तक कोइरी-कुशवाहा और कुछ दलित-महादलित तथा अति पिछड़ी जातियों का झुकाव महागठबंधन की तरफ लगता है। भाजपा और इसके सहयोगी दलों-लोजपा, रालोसपा एवं ‘हम’ के उम्मीदवार भी इस जनाधार में सेंध लगाने में जुटे हैं।
भाकपा, माकपा एवं भाकपा -माले-लिबरेशन- फारवर्ड ब्लाक एवं आरएसपी का वाम मोर्चा भी कुछ क्षेत्रों में अपनी पुरानी जड़ों को सिंचित कर दोनों गठबंधनों को चुनौती देते हुए यह साबित करने में लगा है कि संसदीय लोकतंत्र में सक्रिय कम्युनिस्ट राजनीति बिहार से पूरी तरह से बेदखल नहीं हुई है।
अस्सी और नब्बे के दशक में भूस्वामियों के सामंती जुल्म और शोषण-उत्पीड़न के जवाब में दलित, पिछड़े और भूमिहीन खेत मजदूरों के हिंसक प्रतिरोध-नक्सली हिंसा और उसके जवाब में भू सामंतों की सशस्त्र निजी सेनाओं की हिंसक कार्रवाइयों का केंद्र रहे जहानाबाद, गया और औरंगाबाद जिलों की ख्याति कभी अरवल, कंसारा, दलेलचक बघौरा, दरमियां, नान्हीं नगवां, दमुंहां खगड़ी और लक्ष्मणपुर बाथे में हुए नरसंहारों के लिए भी होती थी। इन्हीं कारणों से ये जिले कभी देसी विदेशी मीडिया के आकर्षण का केंद्र भी होते थे। उस समय कांग्रेस की सत्तारूढ़ राजनीति में भू सामंतों की ‘जहानाबाद लॉबी’ बहुत मशहूर थी।
बिहार में कांग्रेस के सत्ता की राजनीति से बेदखल होने के बाद और खासतौर से बिहार में जद यू और भाजपा गठबंधन के सत्तारूढ़ होने के बाद जहानाबाद लॉबी के सांसद किंग महेंद्र, जगदीश शर्मा, अभिराम शर्मा, असगर हुसैन जैसे दिग्गज एक-एक कर जद यू के साथ होते गए। जीतनराम मांझी भी इसी जहानाबाद लॉबी के साथ थे।
नीतीश कुमार और भाजपा का बिलगाव होने के बाद अब इलाके के अधिकतर भू सामंत भाजपा के साथ हो लिए और उनके साथ रहने वाले जीतनराम मांझी खासतौर से मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ होने के बाद महादलित-मुसहरों के नेता बन गए।
अब इस इलाके में सवाल एक ही उठ रहा है कि भूसामंतों के शोषण और उत्पीड़न के शिकार होते रहे मुसहर एवं अन्य महादलित तथा अति पिछड़ी जातियों के लोग इस चुनाव में भाजपा और इसके साथ खड़े जीतनराम मांझी का साथ देंगे कि नहीं।
नीतीश कुमार एक बार फिर अपनी मंडल राजनीति की ओर मुखातिब हैं। उनकी तथा लालू प्रसाद की कोशिश नए सिरे से यादव-कुर्मी और कोइरी-कुशवाहा के गठजोड़ वाले ‘त्रिवेणी महासंघ को अपने महागठबंधन के साथ जोड़ने की है।
दलितों और महादलितों के बीच भाकपा -माले- का भी अच्छा असर बताया जाता है। अरवल में उनके उम्मीदवार महानंद दोनों गठबंधनों के उम्मीदवारों को सीधी टक्कर दे रहे हैं। हालांकि जहानाबाद में मिले पत्रकार राजकुमार बताते हैं कि इलाके का राजनीतिक और सामाजिक भूगोल और समीकरण भी काफी कुछ बदल चुका है। जो लोग 2010 के विधानसभा चुनाव के समय एक साथ नजर आते थे, अब अपने समर्थक जनाधार के साथ विपरीत मंचों और झंडों के साथ दिख रहे हैं। इन सबका खेल प्रायः सभी दलों के बागी उम्मीदवार बिगाड़ने में लगे हैं जो मुलायम सिंह, पप्पू यादव और तारिक अनवर के गठजोड़ के उम्मीदवार के रूप में तो कहीं निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं।

दो जगहों से चुनाव लड़ रहे मांझी
इस बार के चुनाव में जहानाबाद और गया जिलों की चर्चा इसलिए भी कुछ ज्यादा हो रही है कि जहानाबाद के जिले के मकदूमपुर और गया जिले के इमामगंज से राज्य के बहुचर्चित पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी चुनाव लड़ रहे हैं।
मकदूमपुर में पहले चरण में 12 अक्टूबर को और इमामगंज में दूसरे चरण में 18 अक्टूबर को मतदान होना है।
मकदूमपुर के सुनील कुमार चंद्रवंशी बताते हैं कि इलाके का सामाजिक समीकरण मांझी जी के पक्ष में है। वह कई बार से यहां चुनाव जीतते रहे हैं, हालांकि उन्होंने इस इलाके के लिए कुछ खास नहीं किया तब भी लोग इस बात से खुश हैं कि एक बड़ा नेता उनके इलाके का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि लालू प्रसाद ने बहुत सोच समझकर उनके विरुद्ध चुनावी बिसात बिछाई है।
महागठबंधन ने यहां से एक और महादलित रविदास -चमार- जाति के सूबेदारदास को उम्मीदवार बनाया है। उनकी रणनीति है कि सूबेदारदास रविदास मतों का सर्वाधिक अपने साथ जोड़ने के साथ ही यादव, कुर्मी और कुछ हद तक कुशवाहा मतदाताओं और मुसलमानों का समर्थन हासिल कर मांझी का सिरदर्द बन सकते हैं। हालांकि जहानाबाद गुमटी पर चाय की दुकान चला रहे उमेश यादव कहते हैं कि जरूरी नहीं कि यादव सभी क्षेत्रों में महागठबंधन के उम्मीदवारों का ही साथ दें। यही बात कुर्मी किसानों के साथ भी कही जा सकती है। लेकिन बोध गया के पास मगध विश्वविद्यालय से लगे यादव बहुल बैजू बिगहा गांव के युवा अध्यापक राकेश कुमार ऐसा नहीं मानते, ‘‘यह कहना गलत है कि यादव कुर्मी अथवा जद यू के उम्मीदवारों का समर्थन नहीं करेंगे और कुर्मी राजद के यादव उम्मीदवारों का समर्थन नहीं करेंगे। इक्का दुक्का क्षेत्रों में उम्मीदवार विशेष के साथ किसी जाति विशेष के लोगों का झुकाव हो सकता है लेकिन बड़े पैमाने पर ऐसा नहीं है।’’

मजेदार होगा मांझी और विधानसभाध्यक्ष चौधरी का चुनावी महाभारत
जीतनराम मांझी को गया जिले के इमामगंज में भी नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं। कायदे से इमामगंज की सीट भाजपा के खाते में गई थी, लेकिन भाजपा पर दबाव बनाकर मांझी खुद वहां से भी उम्मीदवार बन गए।

यहां महागठबंधन के उम्मीदवार हैं जद यू के एक और कद्दावर महादलित -पासी-नेता, विधानसभाध्यक्ष उदयनारायण चौधरी जो वर्ष 2000 से लगातार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वह पहली बार 1995 में यहां से विधायक चुने गए थे।

चौधरी और मांझी के बीच एक अरसे से और खासतौर से इस साल विधानभा में मांझी के शक्तिपरीक्षण के समय विधानसभाध्यक्ष के रूप में चौधरी के द्वारा उन्हें तथा जद यू से अलग होने वाले उनके आठ और समर्थक विधायकों का मान्यता नहीं देने के बाद आपसी संबंध बेहद खराब हो गए।

मांझी, चौधरी के साथ हिसाब बराबर करने के इरादे से ही इमामगंज से भी चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि माओवादी कम्युनिस्टों का सघन प्रभावक्षेत्र कहे जानेवाले इमामगंज में माओवादियों के साथ चौधरी के करीबी रिश्ते मांझी के मुकाबले उनके सामाजिक समीकरण को भारी बनाते हैं।

राकेश कुमार के अनुसार इलाके में चौधरी की मिलनसार छवि और लोगों के काज परोज में उनके शामिल होते रहने के कारण चौधरी का पलड़ा भारी हो सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में चौधरी का मुकाबला राजद के रोशन कुमार से था जिन्हें वह बमुश्किल 1200 मतों से ही हराकर चुनाव जीत सके थे।

जयशंकर गुप्त
जयशंकर गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे लोकमतसमाचार के पूर्व कार्यकारी संपादक हैं।