भारत नेपाल सीमा की समस्याओं से निपटने के लिए नई पहल हो- प्रोफ़ेसर बराल
भारत नेपाल सीमा की समस्याओं से निपटने के लिए नई पहल हो- प्रोफ़ेसर बराल
लखनऊ, 13 दिसंबर। भारत नेपाल की खुली सीमा को लेकर दोनों देशों को नई पहल करनी होगी। यह बात आज यहां भारत नेपाल संवाद की तरफ से हुए एक व्याख्यान में उभर कर आई। इस व्याख्यान का विषय था - भारत नेपाल की खुली सीमा, समस्या और समाधान। इसका आयोजन बीपी कोइराला भारत नेपाल फाउंडेशन, साउथ एशियन डायलाग्स आन इकोलोजिकल डेमोक्रेसी, हरित स्वराज और भारत नेपाल सोशलिस्ट कौंसिल ने किया था। नेपाल के पूर्व राजदूत रहे प्रोफ़ेसर लोकराज बराल ने भारत नेपाल खुली सीमा को लेकर हुए इस अध्ययन का ब्यौरा दिया जिसे दोनों देशों की सरकारों की तरफ से साझा रूप से किया गया है।
व्याख्यान की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह नेपाल और भारत के बीच के सम्बन्ध का प्रारम्भिक इतिहास जानना मुश्किल है, उसी तरह खुली सीमा का अभ्यास भी कब से प्रारम्भ हुआ, यह कह पाना मुश्किल है। कहा जाता है, सन् 1816 में नेपाल और ब्रिटिश इण्डिया के बीच हुई सुगौली संधि के आधार पर ही आधुनिक नेपाल और भारत की वर्तमान सीमा निर्धारित हो पाई है। इसके पहले तो नेपाल खुद अपने देश की सीमा विस्तार करने के क्रम अर्थात् एकीकरण की प्रक्रिया में होने के कारण कभी फैलता था तो कभी सिकुड़ जाता था। नेपाल और ब्रिटिश इण्डिया के बीच हुई सुगौली संधि और स्वतंत्र भारत के साथ हुई सन् 1950 की संधि दोनों ने खुली सीमा के अभ्यास के बारे में कभी नहीं बोला है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच की खुली सीमा के अभ्यास का इतिहास पुराना है। लेकिन सन् 1947 में भारत और ब्रिटिश के बीच सम्पन्न हुए समझौते में यह कहा गया है कि गोरखा सैनिक के अधिकारी, जवान, सिपाही, भूतपूर्व सैनिक और पेन्शन पाने वाले नेपाल और भारत में खुले रूप में गैर कानूनी गतिविधि के अतिरिक्त आवागमन कर सकते हैं। इसकी वजह चाहे जो कुछ भी रही हो, या इसका प्रारम्भिक समय जो कुछ भी रहा हो, यह पाया जाता है कि भारतीय और नेपाली दोनों के लिए यह खुली सीमा अभ्यास में रही है। उन्होंने आगे कहा कि कुछेक के विचार में यह खुली सीमा के प्रावधान ने दोनों देशों के बीच के सम्बन्धों को और अधिक मधुर बनाने में अहम भूमिका अदा किया है तो कुछेक के विचार में इससे नेपाल का आर्थिक विकास अवरूद्ध हुआ है। अर्थात् यह खुली सीमा का अभ्यास नेपाल के आर्थिक विकास का अवरोधक है। कुछ का यह भी मानना है कि यह नेपाल में भारत का राजनैतिक प्रभाव कायम करने का एक हथियार तथा अपराध और तस्करी का मेरूदण्ड है। इस तरह नेपाल और भारत के बीच इस खुली सीमा के अभ्यास को लेकर मिश्रित विचार पाया जाता है। ऐसी स्थिति में दोनों देशों के नागरिकों के बीच इस खुली सीमा के अभ्यास को लेकर क्या भाव है, यह जानना स्वाभाविक हो जाता है। इसके साथ ही साथ खुली सीमा के अभ्यास के क्रम में कौन-कौन सी समस्याएं विद्यमान हैं और इससे बचने का क्या उपाय हो सकता है अर्थात् सम्भावनाएं कौन-कौन सी हो सकती हैं? इस पर विचार किया जा सकता है। इसी सन्दर्भ में नेपाल और भारत दोनों देशों के विभिन्न आयामों के अध्ययन-अनुसन्धान के साथ-साथ आपसी सम्बन्धों को और अधिक कैसे प्रगाढ़ बनाया जा सकता है, इस सोच के साथ दोनों ही देश में संयुक्त रूप से गठित विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला भारत-नेपाल फाउण्डेशन के आर्थिक सहयोग में दोनों देशों के बीच अभ्यासरत खुली सीमा की समस्या और सम्भावना शीर्षक अध्ययन किया गया है, जिसका सार इस आलेख में रखने का प्रयास किया है।
व्याख्यान में सीमा पर होने वाली समस्याओं को लेकर विस्तार से बताया गया। इस मौके पर भू वैज्ञानिक वीके जोशी, सामाजिक कार्यकर्त्ता ताहिरा हसन, पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दीपक मिश्र ने की और संचालन अंबरीश कुमार ने किया।
काठमांडू विश्वविद्यालय के डा. उधब प्याकुरेल ने कहा कि नेपाल और भारत का सम्बन्ध आधुनिक राष्ट्र/राज्य अन्तर्गत नजर आने वाला राजनैतिक या कूटनीतिक रूप से ही सीमित नहीं है। यह सम्बन्ध आधुनिक राष्ट्र/राज्य की अवधारणा उत्पन्न होने से पहले अर्थात् ऐतिहासिक कालखण्ड से ही दोनों देशों की जनता की स्तर पर कायम नजर आता है। दोनों देश लगभग एक ही तरह की सभ्यता में विकसित हुए हैं। शायद इसीलिए इन दोनों देशों के बीच का सम्बन्ध आज भी अपनी सुगंध फैला रहा है। अपने नये आयामों के साथ आगे बढ़ रहा है। दोनों देशों के बीच अवस्थित खुली सीमा इन नये आयामों का एक महत्वपूर्ण विषय है।
जिस तरह नेपाल और भारत के बीच के सम्बन्ध का प्रारम्भिक इतिहास जानना मुश्किल है, उसी तरह खुली सीमा का अभ्यास भी कब से प्रारम्भ हुआ, यह कह पाना मुश्किल है। कहा जाता है, सन् 1816 में नेपाल और ब्रिटिश इण्डिया के बीच हुई सुगौली संधि के आधार पर ही आधुनिक नेपाल और भारत की वर्तमान सीमा निर्धारित हो पाई है। इसके पहले तो नेपाल खुद अपने देश की सीमा विस्तार करने के क्रम अर्थात् एकीकरण की प्रक्रिया में होने के कारण कभी फैलता था तो कभी सिकुड़ जाता था। नेपाल और ब्रिटिश इण्डिया के बीच हुई सुगौली संधि और स्वतंत्र भारत के साथ हुई सन् 1950 की संधि दोनों ने खुली सीमा के अभ्यास के बारे में कभी नहीं बोला है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच की खुली सीमा के अभ्यास का इतिहास पुराना है। लेकिन सन् 1947 में भारत और ब्रिटिश के बीच सम्पन्न हुए समझौते में यह कहा गया है कि गोरखा सैनिक के अधिकारी, जवान, सिपाही, भूतपूर्व सैनिक और पेन्सनायर अर्थात् पेन्शन पाने वाले नेपाल और भारत में खुले रूप में गैर कानूनी गतिविधि के अतिरिक्त आवागमन कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इसकी वजह चाहे जो कुछ भी रही हो, या इसका प्रारम्भिक समय जो कुछ भी रहा हो, यह पाया जाता है कि भारतीय और नेपाली दोनों के लिए यह खुली सीमा अभ्यास में रही है।
इस अध्ययन का प्रारम्भ नेपाल और भारत के बीच प्रयोगरत खुली सीमा के शुरूआत कब से हुई या कैसे किया गया है। इसके साथ-साथ इस खुली सीमा पर होने वाली प्रायः सभी गतिविधियों (जैसे मानव के आवागमन के विभिन्न पक्ष, सीमावर्ती इलाकों में होने वाली गाँजे की खेती, चरस और नकली मुद्राओं की तस्करी अवैध व्यापार, सीमा अपराध, मानव क्रय-विक्रय (महिला और पुरूष) सीमा के करीबी क्षेत्र में बनने वाली डैम और बैरेज और इनसे उत्पन्न समस्या, सीमा विवाद और सीमा अतिक्रमण का विषय दो देशों के बीच केन्द्रीय से स्थानीय तह तक हो रहे समन्वयकारी कार्य) आदि के बारे में चर्चा की गई है।
नेपाल और भारत के सम्बन्ध का पुराना, ऐतिहासिक और सामान्तया दो देशों के बीच में होने वाले सम्बन्धों से हटकर अर्थात् नवीन तरह के एक विशेष सम्बन्ध के रूप में माना जाता है। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि यहां कोई समस्या ही नहीं है। समय, परिस्थिति और इसे कार्यान्वयन करने वाले राजनैतिक नेतृत्व में होने वाले परिवर्तन ने भी नेपाल और भारत के सम्बन्ध में समय-समय पर नवीन मोड़ देता आया है। इसके अतिरिक्त खुली सीमा और इसके परिणामों को लेकर नेपाल और भारत के जनस्तर और सरकारी स्तर पर समय-समय पर वार्ता, होती आई है और असंतुष्टियों का आदान-प्रदान होता आया है। हमने इस अध्ययन में नेपाल और भारत के बीच के सम्बन्ध के संदर्भ में दोनों देश के बीच रही खुली सीमा से सम्बन्धित प्रमुख समस्याओं और उन समस्याओं के प्रमुख कारणों का पता लगाने का प्रयास किया है।
नेपाल में खाद, बीज और सिंचाई में कोई अनुदान नहीं है लेकिन भारत में इस क्षेत्र में अनुदान है। जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नेपालियों का प्रमुख बाजार सीमावर्ती भारत का बाजार होता नजर आता है। भारतीय बाजारों में भारतीय रूपयों का चलन है और नेपाल में आवश्यकता तथा मांग अनुसार भारतीय रूपये उपलब्ध नहीं हो पाते, यह एक समस्या, इसके साथ ही आम नागरिकों के साथ सीमा पर तैनात दोनों देश के सुरक्षाकर्मियों के दुर्व्यवहार की समस्या, समय-समय पर स्थानीय माफिये और सुरक्षा निकायों के बीच उत्पन्न तनाव या सांठगांठ से उत्पन्न होने वाली समस्या, सीमा विवाद, सीमा रेखा कायम करने के संदर्भ में नजर आने वाली समस्या, स्तम्भों की तलाश पहचान और मरम्मत का विषय, विकास की दृष्टि से सीमावर्ती शहरों और गांवों की दयनीय अवस्थाओं से सृजित नियम-कायदों से सृजित समस्याएं, सीमा पर नजर आने वाली नियम की प्रतिकूलताएं और नियुक्त अधिकारियों की अपनी अनुकूलता से सृजित नियम-कायदों से सृजित समस्याएं, सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच विद्यमान आर्थिक विषमता के कारण सृजित समस्या, दोनों देश के स्थानीय स्तर के समन्वयकर्ताओं के अप्रभावकारी भूमिकाओं से उत्पन्न समस्या, किसी एक देश के राजनैतिक परिवर्तन से सीमावर्ती क्षेत्र में पड़ने वाला प्रभाव, राष्ट्रीयता के नाम पर ये दोनों देश विशेषतः नेपाल के राजनैतिक वृत्त द्वारा किया जाने वाला भारत विरोधी जनपरिचालन से उत्पन्न समस्याएं आदि नजर आती हैं। भारत और नेपाल के पक्षों का कहना है कि सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षा की नीतियां प्रभावकारी नहीं होने के कारण सुरक्षा निकाय भ्रष्टाचारी होना है। कस्टम के कर्मचारी और सुरक्षा कार्य में तैनात कर्मचारियों का रेकार्ड पहले से ही खराब था ही। बाद के समय में तैनात भारत की ओर का सशस्त्र सीमा बल और नेपाल की ओर के सशस्त्र प्रहरी बल ने भी कोई अच्छा काम नहीं किया। यह निकाय भी भ्रष्टाचार में शामिल हो गया। यह आम लोगों की शिकायत है। इससे निजात पाने के लिए हरेक 2-3 महीनों में इनकी तबादली होती आई है, ताकि ये लोग स्थानीय लोगों के साथ सम्बन्ध नहीं बना पाए। लेकिन आम लोगों का कहना है कि इससे भी भ्रष्टाचार कम नहीं हो सका है। अध्ययन के क्रम में एक अजीबोगरीब बात नजर आई। वह यह कि दार्चूला/धार्चुला सीमावर्ती क्षेत्रों के व्यापारी और दुकानदार नेपाली ग्राहक जब भारत की तरफ जाकर सामानों की खरीदारी करते हैं तो उन ग्राहकों के माध्यम से खरीदे गए सामानों की सूची भारतीय सीमा पर अवस्थित कस्टम के कर्मचारी को दिया जाता है और उसी सूची के आधार पर हरेक शाम वे कर्मचारी दुकानदारों के यहां जाकर कमीशन लेते हैं। इस तरह की कई मुद्दों पर व्याख्यान में चर्चा हुई।
जनादेश


