'भ्रष्टाचार विरोध : विभ्रम और यथार्थ’ भीड़ में यकीन नहीं करती
'भ्रष्टाचार विरोध : विभ्रम और यथार्थ’ भीड़ में यकीन नहीं करती

भष्टाचार विरोध - बगैर समता और सामाजिक न्याय के कभी भी भ्रष्टाचार को मिटाया नहीं जा सकता
पुस्तक लोकार्पण - ‘भष्टाचार विरोध : विभ्रम और यथार्थ’
नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा है कि आज जो लोग समता, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के लिए बहस करने को कहते हैं। इन्हीं मुद्दों की नींव पर तो आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी।
श्री नैयर शुक्रवार को यहां गांधी शांति प्रतिष्ठान में जाने माने समाजवादी चिंतक और दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक डॉ प्रेम सिंह की पुस्तक ‘भ्रष्टाचार विरोध : विभ्रम और यथार्थ’ के लोकार्पण कार्यक्रम में अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे।
महात्मा गांधी कैसा भारत बनाना चाहते थे?
श्री नैयर ने कहा महात्मा गांधी एक ऐसा भारत बनाना चाहते थे जहां ना तो धर्म के आधार पर कोई भेद भाव हो, और ना ही जाति के आधार पर कोई विषमता, लेकिन आज आज़ादी के आंदोलन के उन मूल्यों के आधार पर ही देश को एक रखा जा सकता है। जिसकी वकालत पुस्तक के हर पैराग्राफ में है।
इस मौके पर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजेन्द्र सच्चर, वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी, जाने माने समाजसेवी संदीप पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री, और दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक अपूर्वानंद मौजूद रहे।
पुस्तक विमोचन के मौके पर ‘भ्रष्टाचार विरोध: विभ्रम और यथार्थ’ विषय पर गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। मंच संचालन गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेन्द्र कुमार ने किया और युवा समाजवादी नीरज ने धन्यवाद ज्ञापन किया। सभी वक्ताओं ने पुस्तक के शीर्षक से हो रही चर्चा पर अपनी बेबाक टिप्पणी की।
नवउदारवाद और भ्रष्टाचार के बीच के सांठ-गांठ को उजागर करती किताब
वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ये एक अनूठी किताब है, जो हमें भ्रष्टाचार की परतों को समझने और उससे लड़ने के तैयार किए गए छद्म आभामंडल से जूझने की शक्ति और समझ देती है।
उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में पहली बार नव उदारवाद और भ्रष्टाचार के बीच के सांठ गांठ को उजागर किया गया है।
भ्रष्टाचार के विरोध पर लोगों का दोहरा चरित्र
वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ने पुस्तक पर परिचर्चा के दौरान कहा कि लोग भ्रष्टाचार के विरोध में बातें भी करते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त भी रहते हैं। यही वजह है कि भ्रष्टाचार से आज तक निर्णायक लड़ाई नहीं हो पाई।
परिचर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने पुस्तक के बहाने पिछले दो तीन वर्षों के दौरान हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का जिक्र किया।
उर्मिलेश ने कहा कि आंदोलन की कमियों और नेतृत्व के बारे में पुस्तक में जो भी राय रखी गई है, वे उससे सहमत हैं। लेकिन इस दौर में हमें शुद्धतावादी चिंतन की बजाए भ्रष्टाचार रोकने की ओर ध्यान लगाना चाहिए और इस दिशा में जो भी सामूहिक प्रयास हो रहा है, उसे स्वीकार करना चाहिए।
उर्मिलेश ने पुस्तक के उन पंक्तियों का भी जिक्र किया, जो साफगोई से आंदोलन की पृष्ठभूमि से गौण रहे उन मुद्दों की वकालत करती है, जिनके बिना कभी भी भ्रष्टाचार से लड़ाई नहीं हो सकती।
उर्मिलेश के शब्दों में बगैर समता और सामाजिक न्याय के कभी भी भ्रष्टाचार को मिटाया नहीं जा सकता।
भ्रष्टाचार से लोहा कैसे लिया जा सकता है?
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजेन्द्र सच्चर ने कहा कि वे पुस्तक की सामग्री और तथ्यों से शब्दशः सहमत हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता ही वो हथियार है, जिसके जरिए भ्रष्टाचार से लोहा लिया जा सकता है।
समाजसेवी संदीप पांडेय ने कहा कि, भारत में भ्रष्टाचार की परतों को समझने के लिए ये एक जरूरी किताब है।
संदीप पांडेय ने उन वजहों का भी जिक्र किया जिसकी वजह से वे अन्ना के आंदोलन से अलग रहे।
संदीप पांडेय ने कहा कि कि पहली बार इस पुस्तक के जरिए उन मुद्दों की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की गई है। जो भ्रष्टाचार का पोषण करती हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक अपूर्वानंद ने कहा कि ‘भ्रष्टाचार विरोध : विभ्रम और यथार्थ’ एक ऐसी किताब है, जो भीड़ में यकीन नहीं करती है, बल्कि सही रास्ते की तरफ इशारा करती है।
पुस्तक के लेखक डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि किताब में उन लेखों को जगह दी गई है, जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान लिखे गए थे। ये सारे लेख सरोकारी पत्रकारिता करने वाली पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए हैं। प्रेम सिंह ने कहा कि हम उस निर्णायक दौर में खड़े हैं जहां प्रगतिशील राजनीति का रास्ता बेहद संकरा है। लेकिन हमें उस रास्ते पर चलने का खतरा उठाना होगा। देश बचाने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है ।
दिल्ली में सियासी सरगर्मी के बीच ‘भ्रष्टाचार विरोध : विभ्रम और यथार्थ’ पुस्तक का लोकार्पण एक बौद्धिक हस्तक्षेप है, उन ताक़तों के खिलाफ जो समझते हैं कि भारत की जनता को लंबे समय तक गुमराह किया जा सकता है। पुस्तक का प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने किया है। जो हार्ड कवर और पेपर बैक दोनों रूपों में छापा गया है। परिचर्चा और लोकार्पण के दौरान बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, शिक्षक, पत्रकार और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।


