हरे राम मिश्र

सामाजिक न्याय की कथित पॉलिटिक्स के लिए हिंदुत्व और फासीवाद कोई खतरा नहीं है। तन्त्र में भागीदारी और मूल निवासी की बहस भी हिंदुत्व के खात्मे के किसी ठोस बहस से भागती है।

असलियत यह है कि ये सब संघ के ही एजेंट हैं। संघ को वैचारिक स्तर पर कोई नंगा करता है तो वह वामपंथ ही है।

मंडल ने हिंदुत्व को मजबूत किया है। पता नहीं क्यों सामाजिक न्याय की ताकतें दलित और पिछड़ों की साम्प्रदायिकता पर बात करने से कतराती हैं।

SC/OBC के साथ मुसलमानों और आदिवासियों की कोई राजनैतिक एकता नहीं हो सकती है। यह एकदम स्वाभाविक नहीं है। इस एकता से नुकसान में सिर्फ आदिवासी और मुसलमान रहा है।

सामाजिक न्याय की राजनीति के मौजूदा version में दलितों, पिछड़ों का कोई भला होने वाला नहीं है।

इस राजनीति ने मुसलमानों का भी बहुत नुकसान किया है। उन्हें सियासती तौर पर बहुत कमजोर किया है।

यादव- मुस्लिम समीकरण ने केवल मुसलमानों का नुकसान किया है। इस गठबंधन से उन्हें राजनैतिक रूप से कभी कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

वैसे भी यूपी का यादव इतना सेक्युलर होता है कि वह यह साफ़ कहता है कि मौ. लोग नेताजी को छोड़ कर कहां जायेंगे। उनकी सौ की गरज हो तो हमारे साथ आएं। हमारी कोई गरज नहीं है।

लालू, नितीश, मुलायम और मायावती ने सेकुलरिज्म की पॉलिटिक्स के नाम पर मुसलमानों को क़ुरबानी का बकरा बना दिया है।