मंत्र और राजदंड में बैर है!
आपकी नज़र | राजनीति | हस्तक्षेप मंत्र जोड़ने का काम करता है, राजदंड तोड़ने का काम करता है। मंत्र जीवन से बांधने और अध्यात्म से जोड़ता है। राजदंड दमन करता है और दासवृत्ति पैदा करता है। राजदंड का अधिकारी सिर्फ सवर्ण हो सकता है। अफसोस उसमें से किसी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया।

xr:d:DAFbkLuGYBI:43,j:48135605004,t:23052910
संसद की नई इमारत के बहाने जो कुछ हुआ वह धर्मशास्त्र की मर्यादाओं के विपरीत है
मंत्र और राजदंड में बैर है!
मंत्र जोड़ने का काम करता है, राजदंड तोड़ने का काम करता है। मंत्र जीवन से बांधने और अध्यात्म से जोड़ता है। राजदंड दमन करता है और दासवृत्ति पैदा करता है। यह बातें शास्त्र का अंग हैं।
उल्लेखनीय है मैंने संस्कृत माध्यम से प्राचीन संस्कृत साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष आदि का गुरुमुख फर्श पर बैठकर अध्ययन किया और जिंदगी के मूल्यवान 23 साल संस्कृत के पंडितों-धर्मशास्त्रियों और मठाधीशों सहित अनेक वर्ष स्वामी करपात्रीजी महाराज के साथ निरंतर संवाद और संपर्क में व्यतीत किए हैं। जेएनयू पढ़ने तो बाद में गया।
अपने अब तक के धार्मिक, धर्मशास्त्रीय ज्ञान और संवैधानिक अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि संसद की नई इमारत के बहाने जो कुछ हुआ वह धर्मशास्त्र की मर्यादाओं के अनुकूल एकदम नहीं था। मेरी बात पर विश्वास न हो तो शास्त्र उठाकर देखें कि राजदंडधारी को क्या वस्त्र पहनने चाहिए और राजदंड धारण करने के पहले उसके किस तरह के संस्कार किए जाने चाहिए।
राजदंड का अधिकारी सिर्फ सवर्ण हो सकता है। अफसोस उसमें से किसी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। ऐसी अवस्था में राजदंड खिलौना मात्र है। धर्म का नियम है, उसके कुछ प्रोटोकॉल हैं इनका पालन न तो राजदंडधारी कर रहे हैं और नहीं वे लोग जो इसमें शामिल हुए हैं।
राजशाही और फासिज्म ने अनेक टोने-टोटके किए, अंधविश्वास फैलाए कुछ भी काम नहीं आया। जनता ने उनको नेस्तनाबूद कर दिया, इसमें वह जनता भी शामिल थी जो जय हो हिटलर, जय हो राजन बोल रही थी। जब सत्ता का अंत आता है तब वह अंधविश्वासों की सबसे अधिक मदद लेती है।
नए मोदी कायदे से संसद के नए भवन में मोदी जी को उनको ही प्रवेश देना चाहिए जो सेंगोन की स्थापना में शामिल हुए हैं! उन संतों को सांसद बनाया जाए जो इस कार्यक्रम में आए।! संसद में वही दाखिल हो जो पीएम मोदी की हां में हां करने का शपथपत्र दाखिल करे ! मोदी यदि यह सब नहीं करते तो सेंगोन का कोई अर्थ नहीं है। वह सिर्फ लाठी है।
लाल किले का निर्माण बिना भूमि पूजन, राजदंड पूजन के हुआ था। पुरानी लोकसभा की बिल्डिंग, राष्ट्रपति भवन आदि सभी इमारतें बिना मंत्र और सेंगोन के बनीं।
नई लोकसभा की इमारत के निर्माता न संत हैं, न मंत्र है और सरकार है। इसके निर्माता मजदूर हैं। पीएम यदि भवन निर्माता मजदूरों का पूजन करते तो कोई आधुनिक बात होती। सेंगोन माने अतीत की ओर लौटो।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
Whatever happened on the pretext of new Parliament building is contrary to the norms of Dharmashastra.


