मई दिवस : देश को किसने बनाया मजदूरों ने या हरामखोरों ने ?
समाचार | आपकी नज़र | हस्तक्षेप | स्तंभ मई दिवस : सवाल यह है मजदूरों से मीडिया को इतना परहेज और घृणा क्यों है? क्या मजदूरों का इस समाज में कोई योगदान नहीं है ? क्या मजदूर टीवी दर्शक नहीं होते या अखबार के पाठक नहीं होते ?

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मई दिवस पर विशेष
देश को किसने बनाया मजदूरों ने या हरामखोरों ने ?
मीडिया में आए दिन हर तरह के पर्व और उत्सव पर कवरेज मिलेगा लेकिन मजदूर दिवस पर मजदूरों के ऊपर, मजदूरों की बस्ती या मजदूरों की समस्याओं पर कवरेज नहीं मिलेगा।
सवाल यह है मजदूरों से मीडिया को इतना परहेज और घृणा क्यों है?
क्या मजदूरों का इस समाज में कोई योगदान नहीं है ? क्या मजदूर टीवी दर्शक नहीं होते या अखबार के पाठक नहीं होते ?
जो लोग आए दिन हरामखोर नेताओं और देशद्रोही विचारधारा के पक्ष में लिखते रहते हैं और वाम नेताओं के खिलाफ घृणा परोसते रहते हैं वे कभी अपने दिल में झांक कर देखें देश को किसने बनाया है मजदूरों ने या हरामखोरों ने ?
फेसबुक मित्र पता करें उनके इलाके के अखबार में मई दिवस का कवरेज है या नहीं, उनके इलाके में दिख रहे टीवी चैनल में मई दिवस का कवरेज है या नहीं ?
मजदूरों को मीडिया में अदृश्य रखने का अर्थ है मजदूर की उपस्थिति और भूमिका को अस्वीकार करना। मित्रों, मजदूर हैं और वह करोड़ों की संख्या में हैं, हर क्षेत्र में उसकी सकारात्मक भूमिका है। मजदूरों के बिना, उनके सकारात्मक सोच के बिना आप आधुनिक समाज का निर्माण ही नहीं कर सकते।
भारत के मजदूरवर्ग और उससे जुड़े संगठन देशभक्ति और सामाजिक एकता बनाए रखने में अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं।
मुझे मजदूर क्यों पसंद हैं ?
मजदूर मुझे इसलिए पसंद हैं कि वे पक्के देशभक्त होते हैं। यहां तक कि संकट की घड़ी में भी वे सबसे ज्यादा उत्पादन करते हैं। देश के लिए उत्पादन करना और देश में ही खर्च करना, देश के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देना उनकी विशेषता है।
मजदूर किसी के खिलाफ घृणा का प्रचार नहीं करते। वे समाज के वंशानुगत नायक नहीं हैं। वे दलीय शक्ति के आधार पर भी नायक नहीं हैं बल्कि कर्मशीलता के आधार पर समाज के नायक बने हैं। उनको जनता वोट देकर नहीं चुनती, वे अपने कौशल, परिश्रम और कुर्बानी के आधार पर समाज के नायक बने हैं। उन्हें कभी भारत रत्न नहीं मिला। लेकिन आधुनिक भारत की कल्पना मजदूरों के बिना संभव नहीं है।
मजदूर मुझे इसलिए पसंद हैं क्योंकि वे अपनी और पराए की संपत्ति, संपदा और शक्ति का सम्मान करते हैं। वे छोटे-बड़े के भेदभाव से मुक्त होते हैं।
आज मजदूरों का ऐतिहासिक पर्व मई दिवस है। मजदूरों की संघबद्ध एकता सामाजिक परिवर्तन की धुरी है। मजदूरों को मई दिवस का बेहतरीन तोहफा यही होगा कि हम सब संगठनबद्ध हों। संयुक्त रूप से काम करें।
मजदूर के बिना आप आधुनिक समाज नहीं बना सकते। मजदूर के बिना आप कला-साहित्य-संस्कृति के आदर्श मानकों को जन्म नहीं दे सकते। मजदूर न हों तो श्रेष्ठ कलाएं भी न हों। मजदूर हमारे समाज का सर्जक है। यह ऐसा सर्जक है जो अपने लिए नहीं अन्य के लिए सृजन करता है। अन्य के लिए जीना, अन्य के लिए सोचना, अन्य के लिए प्रतिबद्धता और अन्य के लिए कुर्बानी का जज़्बा इसकी विशेषता है। जिसके अंदर अन्य के प्रति प्रेम है वही मजदूरों की पांत में है।
मई दिवस पर मुझे रामेश्वर करुण की ये पंक्तियां याद आ रही हैं-
1.श्रमकारी भंगी भलो, श्रमबिनु विप्र अछूत।
कब धौं जग मंह फैलिहै, यह मत पावन पूत।।
2.करहिं कठिन श्रम नित्य इक बांधि पेट श्रमकार।
उपभोगहिं इक चैन सो पूँजीपति बेकार।।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
May Day: Who made the country, the laborers or the bastards?


