मजदूर संगठन समिति, प्रतिबंध का एक साल
मजदूर संगठन समिति, प्रतिबंध का एक साल
मजदूर संगठन समिति, प्रतिबंध का एक साल
22 दिसम्बर 2017 को मजदूर संगठन समिति को झारखण्ड सरकार द्वारा भाकपा माओवादी का फ्रंटल संगठन बताकर प्रतिबंधित कर दिया गया। इस मजदूर संगठन की नींव 1989 में धनबाद के जाने माने अधिवक्ता सत्यनारायण भट्टाचार्या ने डाली थी, जिसका पंजीयन संख्या 3113/89 है। तब से यह मजदूर संगठन मजदूरों के हक—अधिकार को लेकर हमेशा सक्रिय रहा। गिरिडीह के मधुबन स्थित जैन धर्मावलंबियों विश्व स्तरीय तीर्थस्थल पारसनाथ पहाड़ के डोली मजदूरों के सवाल हों, या बोकारो थर्मल पावर प्लांट के मजदूरों, चंद्रपुरा थर्मल पावर प्लांट के मजदूरों, या फिर धनबाद का बीसीसीएल के मजदूरों के हक—अधिकार का सवाल हो, मजदूर संगठन समिति हमेशा अग्रणी भूमिका में रहा।
यह संगठन पिछले साल 2017 में सुर्खियों में तब आया जब पारसनाथ में 9 जून 2017 को सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन द्वारा एक डोली मजदूर मोतीलाल बास्के को माओवादी बताकर गोली मार दी गई और मजदूर संगठन समिति द्वारा सीआरपीएफ की गोली का शिकार मोतीलाल बास्के की मौत को हत्या करार देते हुए एक दमन विरोधी मोर्चा का गठन किया गया। दमन विरोधी मोर्चा में मानवाधिकार संगठन, विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन, भाकपा माले, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा सहित आदिवासियों का सामाजिक संस्था सांवता सुसार बैसी शामिल हुए और डोली मजदूर मोतीलाल बास्के के परिवार को न्याय दिलाने के लिए जोरदार आंदोलन चला। राजभवन पर धरना—प्रदर्शन के साथ—साथ मधुबन से लेकर रांची तक जोरदार आंदोलन चला। पुलिसिया दमन के खिलाफ इस आंदोलन में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन ने भी भाग लिया और रघुवर सरकार से मृतक के परिवार वाले के लिए न्याय की मांग की।
कौन थे डोली मजदूर मोतीलाल बास्के
बताते चलें कि डोली मजदूर मोतीलाल बास्के विगत पंद्रह वर्षों से मधुबन के पारसनाथ पर आये देश—विदेश के जैन तीर्थ यात्रियों को अपने कंधों के सहारे डोली में बिठाकर 27 किलोमीटर शिखर जी पारसनाथ पहाड़ का परिक्रमा कराते थे और किसी-किसी दिन पहाड़ पर ही भात—दाल, सत्तू—सरबत बेचकर अपने परिवार का पालन पोषण किया करते थे। मोतीलाल बास्के का वोटर कार्ड, आधार कार्ड, बैंक खाता आदि तो था ही साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ब्लाक द्वारा एक आवास भी आवंटित किया गया था और उसके निर्माण कार्य के लिये पहला किस्त भी उनके खाता में भेज गया था।
पुलिस की गोली का शिकार मोतीलाल बास्के पर राज्य के किसी भी थाने में कोई अपराधिक मामला दर्ज नहीं है जो यह साबित करने के लिये काफी है कि वह कहीं से भी माओवादी नहीं था। दूसरी तरफ घटना के तीसरे दिन माओवादी पार्टी ने भी एक प्रेस बयान जारी कर बताया था कि मोतीलाल उनके संगठन का सदस्य नहीं था। जबकि माओवादी अपने सदस्यों को अपना बताने में कोई परहेज नहीं करते हैं।
इस आंदोलन से रघुवर सरकार की नींद हराम हो गई। नतीजतन आंदोलन में शामिल लोगों पर फर्जी मामले दर्ज किए गए और कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। जब इससे भी आंदोलन पर कोई फर्क नहीं पड़ा तो अंतत: 22 दिसम्बर 2017 को झारखण्ड सरकार के प्रधान सचिव एसके जी रहाटे और कार्मिक विभाग की प्रधान सचिव निधि खरे ने प्रेस कांफ्रेंस के करके मजदूर संगठन समिति को भाकपा माओवादी का फ्रंटल संगठन बताकर प्रतिबंधित कर दिए जाने की घोषणा कर दी।
मजदूर संगठन समिति के तत्कालीन महासचिव बच्चा सिंह बताते हैं कि 'हमारे मजदूर संगठन पर कई बेबुनियाद आरोप लगाते हुए प्रतिबंध किए जाने की जानकारी हमें दैनिक अखबारों व मीडिया के अन्य माध्यमों से मिली थी। उसके बाद 30 दिसम्बर 2017 को मजदूर संगठन समिति के मधुवन, गिरिडीह, कतरास, बोकारो थरमल शाखा को सील कर दिया गया। मधुवन में मजदूरों द्वारा स्थापित श्रमजीवी अस्पताल को भी सील कर दिया गया। संगठन के दर्जनों कार्यकर्ताओं पर झूठे मुकदमे लाद दिए गए।'
वे बताते हैं कि 'हमारी मांगें थीं कि मोतीलाल के परिवार को न्याय दिलाया जाय, उनकी हत्या की न्यायिक जांच कराई जाए, दोषी पुलिस कर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा जाए, झारखण्ड के डीजीपी द्वारा मामले की बिना जांच किये पुलिस पदाधिकारियों व सीआरपीएफ कोबरा जवानों के बीच जश्न मनाने के लिए एक लाख रुपया देने की गलती के लिए झारखण्ड की जनता से मांफी मांगे और मोतीलाल के परिवार को उचित मुआवजा दिया जाए। इन्हीं मांगो को लेकर मधुबन में जुलूस, गिरिडीह डीसी कार्यालय के पास धरना, मधुबन बन्दी, गिरिडीह बन्दी, राजभवन एवं विधानसभा के समक्ष धरना प्रदर्शन किया गया। पीरटांड़ में मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में करीब 20 हजार लोगों की उपस्थित में आम सभा की गई। इस कार्यक्रम में सभी दल के बड़े नेता भी शमिल थे।'
बता दें मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध को कई मजदूर संगठनों ने काफी गंभीरता से लिया और देश के कई शहरों में इन संगठनों द्वारा सम्मेलन किए गए, जिसमें देश के बुद्विजीवियों, लेखकों, कवियों एवं जनवाद पसंद लोगों द्वारा इस प्रतिबंध पर विरोध दर्ज करते हुए प्रतिबंध हटाने की मांग की गई। इस बीच बच्चा सिंह सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया, इतना ही नहीं विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन के दामोदर तुरी जिनका मजदूर संगठन समिति से कोई रिश्ता नहीं था, को भी गिरफ्तार कर लिया गया, सभी लोग फिलहाल जमानत पर हैं और संगठन का मामला उच्च न्यायालय में चल रहा है।
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