मजहबी सियासत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट, फिर भी यूपी में हिंदुत्व का पुनरूत्थान?
मजहबी सियासत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट, फिर भी यूपी में हिंदुत्व का पुनरूत्थान?
मजहबी सियासत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट, फिर भी यूपी में हिंदुत्व का पुनरूत्थान?
सुप्रीम कोर्ट हिंदुत्व को धर्म नहीं मानता, संघ परिवार के खुल्ला खेल फर्रूखाबादी जारी रखने से कौन रोकेगा?
सीधा मतलब है कि देश राष्ट्रद्रोही है क्योंकि देश को राष्ट्र कुचल रौंद रहा है।
पलाश विश्वास
अब शायद मान लेना होगा कि यूपी में चौदह साल का वनवास खत्म करके रामराज्य की स्थापना के मकसद से नोटबंदी का सर्जिकल स्ट्राइक कामयाब है।
यदुवंश के मूसलपर्व ने इस असंभव को संभव करने का समां बांधा है और अब यूपी में हिंदुत्व के पुनरूत्थान का दावा खुल्लमखुल्ला है।
नोटबंदी का कार्यक्रम से लेकर डिजिटल कैशलैस कारपोरेट अश्वमेध अभियान का मकसद यूपी में रामराज्य है, यही नोटबंदी का सीक्रेट है। इसलिए रामवाण का लक्ष्य निशाने पर लगा है, यह मान लेने में हकीकत का सामना करना आसान होगा। बाकी देश में नकदी संकट और यूपी में नोटों की बरसात से यह साफ हो गया था कि कालाधन निकालना मकसद नहीं है, निशाने पर यूपी है।
जब कालाधन निकालना मकसद नहीं है तो किसी से क्यों उसके रिजल्ट का ब्यौरा मांग रहे हैं। नतीजा देखना है तो यूपी को देखिये।
हालांकि लखनऊ रैली के दिन ही सुप्रीम कोर्ट ने मजहबी सियासत को गलत बताया है।
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने एक अहम फैसले में आज कहा कि प्रत्याशी या उसके समर्थकों के धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है। चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है। इस आधार पर वोट मांगना संविधान की भावना के खिलाफ है। जन प्रतिनिधियों को भी अपने कामकाज धर्मनिरपेक्ष आधार पर ही करने चाहिए। आने वाले पांच राज्यों में इसका असर होने की संभावना है।
क्या असर होना है?
क्या सुप्रीम कोर्ट धर्म की राजनीति पर रोक लगा सकता है?
क्या सुप्रीम कोर्ट संघ परिवार और भाजपा पर रोक लगा सकता है?
इसका सीधा जवाब नहीं है क्योंकि हिंदुत्व को धर्म मानने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ इंकार कर दिया है, इसलिए हिंदुत्व के ग्लोबल एजंडे पर रोक लगने की कोई आशंका नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने एक बार फिर साफ किया कि वह हिंदुत्व के मामले में दिए गए 1995 के फैसले को दोबारा एग्जामिन नहीं करने जा रहे।
1995 के दिसंबर में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इंगित करता है। हिंदुत्व शब्द को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता। इसका सीधा मतलब यह है जब हिंदुत्व धर्म नहीं है, तो उस पर रोक लग नहीं सकती और संघ परिवार का खुल्ला खेल फर्रूखाबादी जारी रहने वाला है।
यह नोटबंदी का सर्जिकल स्ट्राइक भी संघ परिवार का खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है। उसका स्वदेश और उसका धर्म दोनों फर्जी हैं जैसे उसका राष्ट्रवाद देशद्रोही है।
इस बीच नोटबंदी के बारे में आरटीआई सवाल के जवाब में रिजर्व बैंक ने नोटबंदी से पहले वित्तमंत्री या भारत सरकार के मुख्य सलाहकारों से विचार विमर्श हुआ है कि नहीं, राष्ट्रहित के मद्देनजर गोपनीय जानकारी बताते हुए जवाब देने से इंकार कर दिया है। वित्त मंत्री या मुख्य आर्थिक सलाहकार से विचार विमर्श वित्तीय प्रबंधन और नोटबंदी के मामले में करने का खुलासा राष्ट्रहित के खिलाफ क्यों है, यह सवाल बेमतलब है।
कुल मतलब यह है कि वित्तमंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार को अंधेरे में रखकर ही राष्ट्रहित में यह सर्जिकल स्ट्राइक है।
यह संघ परिवार का हितों का हिंदुत्व राष्ट्रवाद है। मकसद यूपी जीतकर मनुस्मृति शासन और नस्ली नरसंहार है।
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने किन लोगों के परामर्श से नोटबंदी के फैसले को अंजाम दिया गया है, इसका भी जवाब देने से राष्ट्रहित के मद्देनजर साफ इंकार कर दिया है।
सीधा मतलब है कि देश राष्ट्रद्रोही है क्योंकि देश को राष्ट्र कुचल रौंद रहा है।
‘मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ, वे कहते हैं इंदिरा हटाओ’—इंदिरा गांधी, 1971
नतीजा आपातकाल।
‘मोदी कहता है काला धन हटाओ, वे कहते हैं मोदी हटाओ’—नरेंद्र मोदी 2017 लखनऊ
नतीजा? इतिहास की पुनरावृत्ति कारपोरेट हिंदुत्व का नस्ली नरसंहार।
नागरिक जब नहीं होते तो सिर्फ राष्ट्र होता है और राष्ट्र का अंध राष्ट्रवाद होता है, उसका सैन्यतंत्र होता है और नतीजा वही निरंकुश फासिज्म।
देश का मतलब हवा माटी कायनात में रची बसी मनुष्यता है और राष्ट्र का मतलब संगठित सत्ता वर्ग का संगठित सैन्य तंत्र जिसे सचेत नागरिक लोकतंत्र बनाये रखते हैं। नागरिक न हुए तो राष्ट्र का चरित्र निरंकुश सैन्यतंत्र है और नतीजा नस्ली नरसंहार। नागरिकों की संप्रभुता के बिना यह कारपोरेट राष्ट्र नरसंहार गिलोटिन है।
देश और राष्ट्र एक नहीं है।
देश मतलब स्वदेश है, जो जनपदों का समूह है और राष्ट्र का मायने अबाध पूंजी प्रवाह है। कंपनीराज है। जिसमें नागरिक शहरी और महानगरीय है, जनपद हाशिये पर। जल जंगल जमीन हवा पानी माटी की जड़ों से कटे हुए नागरिक समाज का कैशलैस डिजिटल राष्ट्र है यह, जिसकी प्लास्टिक क्रयक्षमता अंतहीन है और क्रय शक्तिहीन, जल जंगल जमीन खेत खलिहान से बेदखल गांव देहात, पहाड़ और समुंदर, द्वीप और मरुस्तल और रण, अपढ़ अधपढ़ जनपदों की इस उपभोक्ता बाजार में तब्दील राष्ट्र को कोई परवाह नहीं है।
गांवों जनपदों के रोने हंसने चीखने पर निषेधाज्ञा है। उसके लोक पर कर्फ्यू है। उसके हकहकूक के खात्मे के लिए निरंकुश अशवमेध सैन्य अभियान राष्ट्र का युद्धतंत्र है, जिसका महिमामंडन अध राष्ट्रवाद की असहिष्णुता की नरसंहार संस्कृति है, नस्ली सफाया अभियान है और उसका सियासती मजहब भी है।
यही हिंदुत्व का कारपोरेट पुनरूत्थान है। कारपोरेट निजीकरण विनिवेश उदारीकरण ग्लीबकरण का ग्लोबल मनुस्मृति विधान है।
हिंदुत्व का यह कारपोरेट पुनरूत्थान भारत अमेरिका इजराइल का त्रिभुज है। जो ग्लोबल हिंदुत्व का त्रिशुल कारपोरेट है और बाकी दुनिया के साथ महाभारत है तो घर के भीतर घर घर महाभारत है, जिसे हम रामायण साबित कर रहे हैं।
यह परमाणु विध्वंस का हिरोशिमा नागासाकी राष्ट्र है, यह जनपदों का देश नहीं, स्मार्ट महानगरों, उपनगरों का शापिंग माल पूंजी उपनिवेश है। राष्ट्र नहीं, अनंत पूंजी बाजार है, पूंजी बाजार का निरंकुश सैन्यतंत्र है। जहां कोई चौपाल, पंचायत या घर है ही नहीं। परिवार नहीं है, समाज भी नहीं है। न परिवार है, न दांपत्य है, न रिश्ते नाते हैं और न लोक गीतों की कोई सुगंध है। सिर्फ प्रजाजनों के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक है।
देश का मतलब उसका इतिहास, उसका लोक है, उसकी बोली उसकी मातृभाषा है और राष्ट्र का मतलब अकूत प्राकृतिक संसाधनों के लूटखसोट का भूगोल है। विज्ञापनों का जिंगल है। पूंजी महोत्सव का विकास है। अब वह राष्ट्र अर्थव्यवस्था की तरह शेयर बाजार है, जो खूंखार भालुओं और छुट्टा सांढों के हवाले है।
बाजार का धर्मोन्माद अंधियारा का कारोबार, राष्ट्र का सैन्य तंत्र और निरंकुश राजकाज है। अंधियारे का कारोबार भाषा और संस्कृति है, विधा और माध्यम हैं। तो सत्यमेव जयते अब मिथ्यामेवजयते है। मिथ्या फासिज्म का रंगरेज चरित्र है जो कायनात को धोकर अपने रंग से रंग देता है।
यही अब यूपी का समां है। कयामती फिजां है। सामाजिक बदलाव अब निरंकुश मनुस्मृति समरसता है और सामाजिक बदलाव का रंग भी केसरिया है। इसीका चरमोत्कर्ष यदुवंश का रामायण और महाभारत दोनों हैं। मुगलिया किस्सा भी वहींच।
यूपी में जैसा कि दावा है, अब चौदह साल के बाद यदुवंश के मूसल पर्व के परिदृश्य में फिर शायद हिंदुत्व का पुनरूत्थान है। त्रेता के अवसान के बाद रिवर्सगियर में फिर सतजुग है। रघुवंश का राजकाज बहाल है। बहुजनों का कलजुग काम तमाम है।
समाजवादियों और बहुजनों के आत्मघाती स्वजनवध महोत्सव की यह अनिवार्य परिणति है। सत्ता में साझेदारी में समता न्याय की मंजिल कहीं खो गयी है और नोटों की बरसात शुरु हो गयी है। नतीजा वही हिंदुत्व का पुनरूत्थान।
राष्ट्र की नींव पूंजी है और देश का ताना बाना उत्पादन संबंधों की विरासत है। कृषि समाज के अवसान और पूंजीवाद के उत्थान के साथ राष्ट्र का जन्म पूंजी के हितों के मुताबिक हुआ औद्योगिक क्रांति के साथ। अंग्रेजों ने देश का बंटाधार करके हमें राष्ट्र का उपनिवेश सौंप दिया और वही हमारा हिंदू राष्ट्र है तो गुलामी विरासत है।
भारत कभी राष्ट्र नहीं रहा है। भारत हमेशा देश रहा है। लोक में रचा बसा म्हारा देश। जहां की विरासत लोकतंत्र की रही है। सामंती उत्पादन प्रणाली में वह देश मरा नहीं और न वह लोक मरा कभी।
जिसे महान हिंदुत्व का लोकतंत्र कहते अघाते नहीं लोग, वह दरअसल लोक में रचे बसे जनपदों का लोकतंत्र है।
राष्ट्र ने जनपदों की हत्या कर दी तो लोकतंत्र का भी अवसान हो गया और अब सिर्फ निरंकुश हिंदू सैन्य राष्ट्र है। इसीलिए कालाधन निकालने नाम आम जनता पर आसमान से अग्निवर्षा पवित्र है।
सामंती उत्पादन और शासन प्रणाली में भी हवा पानी माटी में रचा बसा रहा है देश और जब तक भारत कृषि प्रधान रहा है तब तक जिंदा रहा है यह देश।
कृषि की हत्या के साथ देश की हत्या हो गयी।
जल जंगल जमीन की हत्या हो गयी।
हवा पानी माटी की हत्या हो गयी।
अब हम निरंकुश राष्ट्र के प्रजाजन हैं। संगठित कारपोरेट सत्ता वर्ग का मुक्त आखेटगाह है यह आम प्रजाजनों के लिए पवित्र वधस्थल जो अब हिंदुत्व का कारपोरेट पुनरूत्थान है। निरंकुश मनुस्मृति शासन है। अवध की सरजमीं पर अब उसका जयगान है। यह धर्म भी नहीं है। धर्म का कारपोरेट इस्तेमाल है। यही मजहबी सियासत है।
फासिज्म के राजकाज में भी राष्ट्र का एकाधिकारी नेतृत्व ईश्वर होता है।
उस ईश्वर की मर्जी संविधान है। उसे किसी से सलाह लेने की जरुरत नहीं होती और न उसे कायदे कानून संविधान संसद की परवाह होती है। आम जनता की तो कतई नहीं। उसे अपने खास दरबार के खास लोगों के कारोबार का राष्ट्र बनाना होता है।
ईश्वर के राष्ट्र में नागरिक नहीं होते, सिर्फ भक्तजन। स्वर्गवासी भक्तजन।
ईश्वर को समर्पित कीड़े मकोड़े किसी राष्ट्र के नागरिक नहीं हो सकते।
अंध राष्ट्रवादी भक्तजन। आत्ममुग्ध नरसिस के आत्मघाती भक्तजन।
मित्रों, चार्ली चैपलिन की फिल्म द डिक्टेटर फिर एक बार देख लें।
लिंक यह हैः
Charlie Chaplin The Great Dictator 1940 Full Movie - YouTube
the dictator charlie chaplin full movie के लिए वीडियो▶ 2:39:00


