मणिपुर में हिंसा : डबल इंजन की सरकार की नाकामी
समाचार | आपकी नज़र | हस्तक्षेप | स्तंभ मणिपुर में हिंसा पर संपादकीय (Editorial on violence in Manipur): कश्मीर के बाद अब मणिपुर की बारी है? साल भर में खुल गई पीएम मोदी के वादों की कलई. जानिए क्या है मणिपुर में अशांति की वजह

इस वक्त पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हालात बिगड़े हुए हैं। मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के विरोध में राज्य में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए, जिसके बाद मणिपुर में हिंसा भी भड़क उठी। भड़की हिंसा के बाद मणिपुर के कई इलाकों में सेना तैनात है, और मोबाइल-इंटरनेट बंद हैं। मणिपुर हिंसा पर संपादकीय (Editorial on Manipur violence) लिखते हुए देशबन्धु ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। देशबन्धु का आज का संपादकीय किंचित संपादन के साथ साभार
इंटरनेट बंद करना भाजपा सरकार का अमोघ अस्त्र
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में इस वक्त हालात बिगड़े हुए हैं। को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के विरोध में राज्य में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए, जिसके बाद हिंसा भी भड़क उठी। बुधवार को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (All Tribal Students Union) ने 'आदिवासी एकजुटता मार्च' (Tribal Solidarity March) बुलाया था, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। अशांत मणिपुर में हालात काबू में करने के लिए सेना का फ्लैग मार्च कराया गया। बड़ी रैलियों पर प्रतिबंध के साथ कई जिलों में रात को कर्फ्यू लगाया गया है और अगले पांच दिनों के लिए पूरे राज्य में इंटरनेट को बंद कर दिया गया है। भाजपा सरकार के लिए विरोध-प्रदर्शनों पर नियंत्रण का यह सबसे आसान हथियार बन गया है कि इंटरनेट बंद कर दो।
कश्मीर के बाद अब मणिपुर की बारी है
कश्मीर में एक लंबे वक्त तक सरकार ने यही किया, अब मणिपुर की बारी है। अच्छा है कि इंटरनेट बंद होने से पहले ही राज्यसभा सांसद, ओलंपिक विजेता और मुक्केबाजी की विश्वचैंपियन रह चुकी एम सी मैरीकॉम (MC Mary Kom) ने बुधवार की आधी रात को ट्वीट किया कि मेरा राज्य मणिपुर जल रहा है, मदद कीजिए।
इस ट्वीट में मैरीकॉम ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को टैग किया है। मैरीकॉम को अंदाजा नहीं होगा कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इस वक्त कर्नाटक चुनाव में कितने व्यस्त हैं। जब वे दिल्ली में जंतर-मंतर तक नहीं आ पा रहे तो मणिपुर तो दूर है।
साल भर में खुल गई पीएम मोदी के वादों की कलई
वैसे पिछले साल जब मणिपुर में चुनाव होने थे, तो प्रधानमंत्री ने वहां दौरे करने का वक्त निकाल लिया था। एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा था कि ये चुनाव मणिपुर के आने वाले 25 साल को निर्धारित करने वाला है। स्थिरता और शांति की जो प्रक्रिया इन पांच सालों में शुरू हुई है उसे अब हमें स्थायी बनाना है इसलिए भाजपा की सरकार यहां बहुमत से बनना जरूरी है।
श्री मोदी ने ये भी कहा था कि बंद और ब्लॉकेड से मणिपुर का शहर हो या गांव, हर क्षेत्र को राहत मिली है। वरना कांग्रेस सरकार ने तो बंद और ब्लॉकेड को ही मणिपुर का भाग्य बना दिया था। चुनावी नतीजे भाजपा के पक्ष में ही आए और सरकार फिर से भाजपा की बनी, लेकिन साल भर बीतते ही सरकार की अक्षमता का नमूना भी सामने आ गया। एक ऐसे विवाद ने पूरे राज्य में अशांति का माहौल बना दिया, जो संवेदनशीलता और दूरदर्शिता के साथ संभाला जा सकता था।
जानिए क्या है मणिपुर में अशांति की वजह
मणिपुर में मैतेई, नागा और कुकी, ये तीन प्रमुख समुदाय है। इनमें नागा और कुकी आदिवासी हैं, जिन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है, इन दोनों समुदायों के ज्यादातर लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। जबकि मैतई हिंदुओं की आबादी वाला समुदाय है, जो अब तक गैरआदिवासी माना जाता था, लेकिन बीते मार्च महीने में मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतई समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का आदेश दिया। यह आदेश 19 अप्रैल को हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हुआ। इसके बाद से यहां असंतोष की चिंगारी सुलगने लगी जो अब आग का रूप ले चुकी है। क्योंकि अब इस राज्य में आदिवासी और गैरआदिवासियों के बीच जमीन और अन्य सुविधाओं के अधिकार का सवाल खड़ा हो गया है।
लगभग साढ़े 22 हजार वर्ग किमी में फैले मणिपुर में लगभग 10 इलाका घाटी का है और शेष 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाका है। राज्य के कानून के मुताबिक पहाड़ी इलाके में केवल आदिवासी ही बस सकते हैं, जबकि घाटी गैरआदिवासियों के लिए है और आदिवासी चाहें तो यहां भी रह सकते हैं। इस तरह 53 प्रतिशत आबादी वाले मैतेई समुदाय के लिए अब तक घाटी का ही इलाका था, लेकिन अब अजजा दर्जे के बाद वे पहाड़ी इलाके में भी जा सकेंगे।
इतना ही नहीं आदिवासियों के लिए आरक्षित नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में भी अब मैतेई समुदाय का हिस्सा होगा, जिसे लेकर राज्य के आदिवासी सशंकित है।
मैतेई लोन या मणिपुरी भाषा को केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल की परीक्षा में स्वीकृति मिली हुई है, संविधान की आठवीं अनुसूची में भी मैतेई भाषा को शामिल किया गया है। इन सब वजहों से यह धारणा बनी हुई है कि मैतेई समुदाय के लोग नागा और कुकी समुदाय की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हैं, और अब उन्हें आदिवासियों के अधिकारों में भी हिस्सा मिल जाएगा। इसी वजह से आदिवासी छात्र संगठनों ने इस फैसले का व्यापक विरोध किया।
क्या मणिपुर में संघर्ष से बचा जा सकता था?
मणिपुर में यह अनावश्यक टकराव टाला जा सकता था, बशर्ते ऐसा कोई भी कदम उठाने से पहले सभी संबंधित पक्षों को विश्वास में लेकर चर्चा की जाती।
किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाना चाहिए या नहीं, यह सवाल इतना सरल नहीं है कि आज खाने में लौकी बनाई जाए या गोभी। बल्कि यह एक गंभीर मसला है, खासकर ऐसे राज्य के लिए जहां पहले से आदिवासियों और गैरआदिवासियों के बीच हितों के टकराव चलते रहे हों। लेकिन इतने गंभीर मसले को सीधे अदालती कार्रवाई के लिए भेज दिया गया। क्या इस पर राज्य सरकार ने या जनजातीय मामले और पहाड़ी विभाग ने विभिन्न पक्षों को लेकर कोई चर्चा की या केंद्र और राज्य सरकारों ने इस पर विमर्श किया।
देश भुगत रहा है डबल इंजन की सरकार का खमियाजा
डबल इंजन की सरकार केवल चुनावी रेल खींचने के लिए तो नहीं होनी चाहिए। बिना विचार-विमर्श के फैसले थोप देने का नतीजा देश पहले भी भुगत चुका है। नोटबंदी से लेकर कृषि कानून तक हर बार यही देखा गया कि जब संबंधित पक्षों को भरोसे में लिए बिना आदेश दिया गया तो उसका नकारात्मक असर हुआ। देश में कहीं न कहीं असंतोष और आपसी मनमुटाव की आग सुलग ही रही है, इसे बुझाना जरूरी है।
Violence in Manipur: Government's failure of double engine


