मध्य पूर्व के हालात स्वतंत्रता पूर्व भारत जैसे- वली नस्र
मध्य पूर्व के हालात स्वतंत्रता पूर्व भारत जैसे- वली नस्र
सांप्रदायिकता एक 1400 वर्ष पुरानी अदावत नहीं है, यह आधुनिक राजनीति है- वली नस्र
नई दिल्ली। मध्य पूर्व के मामलों के विशेषज्ञ वली नस्र का कहना है कि मध्य पूर्व के मौजूदा संकटग्रस्त हालात के लिए संप्रदायवाद जितना जिम्मेदार है, उतनी ही जिम्मेदार औपनिवेशिक शासन की विरासत भी है।
तेहरान (ईरान) में पैदा हुए 55 वर्षीय वली नस्र Vali Nasr का कहना है कि मध्य पूर्व के हालात और भारत के आजादी मिलने के पहले के हालात एक जैसे हैं।
प्रतिष्ठित समाचार पत्र देशबन्धु में प्रकाशित खबर के मुताबिक जयपुर साहित्य सम्मेलन में भाग लेने भारत आने के दौरान वली नस्र ने यह बात कही।
अमेरिका की जान हापकिन्स यूनिवर्सिटी के स्कूल आफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के डीन वली नस्र ने कहा,
"उपनिवेशवाद ने मध्य पूर्व में केवल देशों के नक्शों को ही प्रभावित नहीं बल्कि अपने द्वारा स्थापित आंतरिक ढांचे में संप्रदायवाद को भी मजबूत किया था। जैसे, सीरिया में अलवियों को बढ़ावा देना, फ्रांस के मातहत लेबनान में ईसाईयों को बढ़ावा देना, और ऐसी ही अन्य कार्रवाईयां।"
देशबन्धु में प्रकाशित खबर के मुताबिक उन्होंने आगे कहा,
"उपनिवेशवाद और संप्रदायवाद का संघर्ष धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद से था..इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि मध्यपूर्व का संप्रदायवाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की सांप्रदायिकता जैसा है..बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का मुद्दा।"
2009-11 के दौरान बराक ओबामा प्रशासन के विदेश नीति सलाहकार रह चुके नस्र ने कहा, "इराक की हिंसा भारत के विभाजन के समय की हिंसा जैसी है।"
अरब जगत की राजनीति और इस्लामिक आंदोलनों के जानकार नस्र ने कहा कि शिया और सुन्नियों के बीच का विवाद धर्म के बिंदुओं पर नहीं बल्कि सत्ता के बंटवारे पर है। उन्होंने कहा कि 2003 में इराक पर अमेरिका के हमले और अरब देशों के जनांदोलनों ने संप्रदायवाद के दरवाजों को और खोल दिया।
नस्र ने कहा, "अरब जनांदोलन की शुरुआत लोकतंत्र की मांग के साथ हुई, लेकिन इसके बाद क्या? यही मुख्य मुद्दा है।"
नस्र ने यह बात स्वतंत्रता पूर्व भारत और मध्य पूर्व के हालात की तुलना करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के साथ-साथ कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच इस बात पर भी तीखा मतभेद था कि आजादी के बाद की राजनैतिक तस्वीर क्या होगी।
देशबन्धु में प्रकाशित खबर के मुताबिक 'शिया रिवाइवल: हाऊ कनफ्लिक्ट विदइन इस्लाम विल शेप द फ्यूचर' के लेखक नस्र कहते हैं कि इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों का उभरना सुन्नी कट्टरपंथियों की वह कोशिश है जिसके तहत वे शिया ईरान की सद्दाम हुसैन के पतन के बाद इराक में बढ़ती पकड़ को कमजोर करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति ने सुन्नी ताकतों, विशेषकर सऊदी अरब के लिए चुनौती पैदा की। भारत के लखनऊ में, जिसे शिया संस्कृति की दृष्टि से महतवपूर्ण माना जाता है, शिया-सुन्नी विवाद के अध्ययन के लिए समय बिता चुके नस्र ने कहा, "शिया और सुन्नियों या ईरान और सऊदी अरब के बीच का छद्म युद्ध दक्षिण एशिया तक फैल गया और पाकिस्तान अभी भी इसकी चपेट में है।"
बता दें कुछ दिन पहले ही वली नस्र ने "The War for Islam" एक लेख लिखकर कहा था कि “सांप्रदायिकता एक 1400 वर्ष पुरानी अदावत नहीं है, यह आधुनिक राजनीति है” (sectarianism is not a 1400-year-old feud, it is modern politics)
sectarianism is not a 1400-year-old feud, it is modern politics https://t.co/4Ji5l2xF7j
— Vali Nasr (@vali_nasr) January 22, 2016


