बिजेंद्र त्यागी देश के जाने माने फोटो पत्रकार हैं. उन्हें कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनुभव है. नॉर्थ ब्लोक में चलने वाले सत्ता संघर्ष को उन्होंने बहुत नज़दीक से देखा है, सोनिया गांधी के त्याग की असलियत और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने की दुर्घटना पर उन्होंने इस आलेख में चीर फाड़ की है. प्रधानमंत्री बेशक ईमानदार हैं, लेकिन उनकी ईमानदारी का रहस्य त्यागी जी ने इस आलेख में खोला है. आइये ध्यान से पूरा आलेख पढ़ते हैं, इस डिस्क्लेमर के साथ कि अन्य सभी लेखों की तरह इस लेख से भी "हस्तक्षेप" का कोई लेना-देना नहीं है—-

कांग्रेस के युवराज/ पप्पू का करिश्मा बिहार चुनाव में नहीं चला

पप्पू कब तक झूठ बोलते रहोगे। अब तो बाज आ जाइये। या झूठ बोलने में अपनी मां और इंदिरा जी का रिकार्ड तोड़ोगे। जैसे 2004 में कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुने जाने के पश्चात भी जब राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने उन्हें प्रधनमंत्री पद के लिए शपथ दिलाने से मना कर दिया, तो राष्ट्रपति भवन से सोनिया जी बैरंग लौट आयी। दूसरे दिन फिर कांग्रेस पालियामेंट्री पार्टी की मीटिंग हुई। उस मीटिंग में सोनिया गांधी की जगह एक नया नाम पेश किया गया, परन्तु उस बैठक में मीडिया को दूर रखा गया था। वह नाम था वर्ल्ड बैंक के भारतीय प्रतिनिधि मनमोहन सिंह का। क्योंकि वह रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं। चाहे नरसिंहराव के समय में वित मंत्री रहे हों उनका एक मात्र उद्देश्य अमेरिकन हितों की रक्षा करना रहा है। दिलचस्प बात यह है कि जब चन्द्रशेखर प्रधनमंत्री थे तब अमेरिकी सरकार और विश्व बैंक से नई दिल्ली में एक पत्र आया था।

जैसी लोग चर्चा करते हैं कि यह पत्र मनमोहन सिंह ने अमेरिकन हितों की रक्षा के हेतु प्रधानमंत्री को नहीं दिखाया था। क्योंकि प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर अमेरिकी नीतियों को भारत पर थोपने के विरुद्ध थे। जैसे कि भारतीय कृषि में स्वदेशी बीजों का प्रयोग न करना और भारतीय कृषि में अमेरिकन बीजों को प्रोत्साहन देना। क्योंकि विदेशी बीज भारत भूमि के लिए उपयोगी नहीं थे।

चन्द्रशेखर स्वदेशी बीजों और खेती की वकालत करते थे और भी कई कारण थे जिससे अमेरिकन सरकार चन्द्रशेखर सरकार से इसलिए भी नाराज थी क्योंकि चन्द्रशेखर ने अमेरिकन जहाजों की इराकी युद्ध में तेल की सप्लाई बन्द कर दी थी। दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में अमेरिकन बमबारी के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे थे। उधर अमेरिकन राष्ट्रपति बुश का प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को फोन आया।

अमेरिकन राष्ट्रपति बुश ने पूछा आपने हमारे जहाजों को तेल न देने के लिए क्यों मना किया?

तो चन्द्रशेखर का जवाब था राष्ट्रपति महोदय आपके विमान भारत से तेल भरवा कर निहत्थी इराकी जनता पर बम वर्षा कर रहे हैं। निहत्थे नागरिकों पर बम वर्षा करना कहां तक न्यायोचित है? आप तो अहम की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमने अपने देश के नागरिकों के गुस्से को देखा है, आपकी विस्तार वादी नीति के विरुद्ध भारतीय जनता में आक्रोश है इसलिए हमने भारतीय जनता का आक्रोश देखते हुए तेल की सप्लाई बन्द कर दी है।

उन्हीं दिनों विश्व बैंक का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर से मिला था। बातचीत के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर से कहा अगर आपने अमेरिकन और विश्व बैक की शर्तों को नहीं माना तो हम विश्व बैंक से भारत को मिलने वाली सारी सुविधाओं को बन्द कर देंगे। इस पर चन्दशेखर का जवाब था कि आप जो चाहे रोक लगा दें परन्तु हम विश्व बैंक की इन नीतियों का विरोध करते हैं। यह नीतियां यहां पर लागू नहीं होंगी क्योंकि हमारे देश की जनता इस का विरोध करती है। रही सहायताएं बन्द करने की बात, हमारे देश की जनता नमक और प्याज के साथ और चने खाकर जीवन यापन कर सकती है।

दूसरी ओर अगर देखें तो 1965 में पीएल 48 के अन्तर्गत जो गेंहू आता था हमने उसे भी रूकवा दिया था। भारतीय नीतियों के कारण खाद्यान में हम आत्म निर्भर हो गये।

अमेरिकन या विश्व बैंक का प्रतिनिधिमंडल हक्का-बक्का रह गया था क्योंकि प्रधानमंत्री पर उनकी धौंस नहीं चली थी। चन्द्रशेखर की सरकार को राजीव गांधी ने इसलिए गिरवाया था क्योंकि हरियाणा के सिपाहियों का जासूसी कराने का आरोप इसलिए लगाया था क्योंकि चन्द्रशेखर ने वोफोर्स तोपों मे दलाली का राजीव गांधी का केस वापिस नहीं लिया और दूसरी अमेरिकन दबाव प्रधनमंत्री चन्द्रशेखर सरकार को दिया गया। तत्पश्चात हुए चुनाव के दौरान मद्रास में लिट्टे ने राजीव की हत्या कर दी थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो अपनी माता श्री की हत्या के एक महीना सात दिन के पश्चात ही यूनियन कार्बाइड के चेयर मैन एन्डरसन को भोपाल में हुई गैस त्रादसी के समय सहायता देकर भगा दिया था, क्योंकि उन पर अमेरिकन दबाव का जादू चल गया था।

इन सब बातों का पता स्वर्गीय प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को पता था। रही विश्व बैंक के पत्र की बात मनमोहन सिंह विश्व बैंक और आई एम् ऍफ़ के हितों की भारत में रक्षा करते थे। इसलिए विश्व बैंक द्वारा भेजा गया पत्र उन्होंने प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को नहीं दिखाया था। परन्तु प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर को कहीं से इस पत्र की भनक लग गयी थी। उन्होंने अपने योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोहन धरिया से पूछा तो दूसरे दिन मोहन धरिया के माध्यम से यह पत्रा प्रधन मंत्री को मिल गया। फिर उन्होंने मनमोहन सिंह को पत्र के बारे में पूछा तो मनमोहन सिंह का जवाब था सर मुझे तो इस पत्र को प्रधानमंत्री को न दिखाने का निर्देश था।

इस पर चन्द्रशेखर का कहना था आप भारत सरकार के पदाधिकारी हैं और विश्व बैंक के निर्देश का पालन करते हैं क्या यह लज्जा जनक नहीं है? इस पर मनमोहन सिंह बगलें झांकने लगे थे।

सोनिया गांधी ने अपने को प्रधानमंत्री पद की शपथ न दिलाए जाने के विरुद्ध उन्होंने दूसरे दिन संसद भवन में कांग्रेस पालियामेंट्री पार्टी की बैठक में मनमोहन सिंह को पार्लियामेन्ट्री पार्टी का नेता चुनवा दिया। फिर क्या था कांग्रेस के हारमोनियम, तबला, सारंगी और नगाड़े बजाने वाले अपने सभी वाद्य यंत्रों को बजा कर सोनिया गांधी को महान त्यागी बताकर जयघोष की घोषणा कर दी। क्योंकि मनमोहन सिंह तो उनकी उंगलियों पर नाचने वाली कठपुतली बन गये। कांग्रेस के किसी भी नेता को आगे लाकर प्रधन मंत्री की कुर्सी इसलिए नहीं थमायी क्योंकि अगर कांग्रेस का पुराना नेता अगर एक बार बैठ गया तो वह कुर्सी नहीं छोड़ेगा। इसलिए एक डमी प्रधनमंत्री को उन्होंने शपथ दिलवायी थी।

रही मनमोहन सिंह की ईमानदारी की बात। उनके परिवार में दो बेटियां हैं। एक अमेरिका में रहती है। दूसरी भारत में विश्व बैक हो या आईएमएफ़ हो जिसने वहां पर कुछ वर्षों तक काम किया है। उसे लाखों रूपए बिना आयकर के पेंशन मिलती है। इसलिए मनमोहन सिंह को अपना निष्ठावान समझ कर प्रधनमंत्री बनवाया था। और अपने आप त्यागी बन गयीं। प्रचार करवाया कि प्रधानमंत्री पद की कुर्सी की सोनिया जी को परवाह नहीं है।

फिर कांग्रेस के ढपली, सारंगी, तबला, हारमोनियम बजाने वाले लोगां ने राहुल गांधी का जयघोष करना शुरू कर दिया। क्योंकि सोनिया गांधी ने उन्हें खद्दर का कुर्ती पाजामा पहनाकर पार्टी के मंच पर महामंत्री के रूप में खड़ा कर दिया। फिर तो क्या था सभी मेंढकों की भांति टर्र-टर्र करने लगे। हमारे युवा नेता प्रधनमंत्री बनने लायक हैं। शायद जैसे उन्होंने यशोगान राजीव गांधी का किया था। ढपली बजाते रहे, हारमोनियम बजाते रहे राजीव गांधी के हितों की रक्षा न करते हुए अपनी-अपनी सीटें पक्की और दोनों हाथों से देश को लूटने का कार्य किया।

उसी प्रकार महात्यागी सोनिया गांधी को बताकर नगाड़े बजाये। आज वही लोग राहुल गांधी को खजूर के पेड़ पर चढ़ा रहे हैं परन्तु बिहार के चुनाव में 400 करोड़ रूपए खर्च करने के पश्चात भी कुल चार सीटें प्राप्त हुई। वह करिश्मा सपफल नहीं हुआ। राहुल गांधी के लिए हारमोनियम बजाने वाले कांग्रेस के महामंत्री दिग्विजय सिंह से एक बार पूछा गया कि आपकी पुरानी तबला-हारमोनियम बजाने की आदत अभी गयी नहीं। आप दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। आपको तो सरकार चलाने का अनुभव है क्या आप जैसे लोगों को यह शोभा देता है। आप अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री थे और दस सालों में मध्य प्रदेश में कांग्रेस को नेस्तनाबूत कर दिया। क्या फिर राहुल गांधी को आगे करके उप प्रधानमंत्री पद का सपना देख रहे हैं। या नेस्तनाबू करने के पश्चात मध्यप्रदेश में आपने भीष्म पितामह की भांति प्रतिज्ञा की थी कि 10 वर्ष तक कोई पद नहीं लूंगा।

इस पर दिग्विजय सिंह कतराने लगे थे। क्योंकि दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। इसलिए देर-सबेर प्रधनमंत्री की कुर्सी पर उनकी निगाहें हैं। उनका यह सपना कभी पूरा होगा या नहीं, या मुंगेरी लाल के सपनों की भांति हवा में उड़ जाएगा।

परिवार गांधी को नोटों पर छापकर अपने आप गांधी बन गये। क्या गांधी की किसी बात की परवाह आप लोग करते हैं?

कॉमनवेल्थ खेलों में 75 हजार करोड़ का घपला, २जी स्पेक्ट्रम घोटाला, जिसमें लाखों करोड़ का सरकार को चूना लगा। क्या इन घोटालों की जानकारी कांग्रेस की राजमाता को नहीं है। या ईमानदारी की छवि रखने वाले मनमोहन सिंह को नहीं थी या सुप्रीम कोर्ट के आदेश या निर्णय को अनदेखा करना जिसमें माननीय कोर्ट का आदेश था कि जो गेहूं या खाद्यान्न भीग गया है उसे गरीबों में बांट दो। परन्तु उसकी भी अनदेखी करके उसे शराब या बीयर पफैक्ट्रियों के हवाले करने की नीति का होने वाले भारतीय सम्राट को पता नही है। परन्तु सभी लाचार भीष्म पितामह की भाति मुंह बंद किए बैठे हैं क्योंकि इस मिली-जुली सरकार के एक भी मंत्री को हटाने की हिम्मत नहीं है क्योंकि सत्ता की कुर्सी का एक भी पाया निकल गया तो उसी दिन सत्ता चली जाएगी।

बिहार के चुनावों में 400 करोड़ खर्च करने के पश्चात कांग्रेस को जब केवल 4 सीटें मिली तो मस्तिष्क में बेचैनी है कि राहुल का कार्ड थोथा निकल गया और उसकी हवा निकल गई। कल कांग्रेस सर्किल में दबी जुबान से एक आवाज बुदबुदाने लगी कि कांग्रेस की नैया को अब प्रियंका गांधी पार लगाएंगी?

फिराख गोरखपुरी ने एक बार कहा था- ‘‘इस टूटे खंडर में रखे हैं कुछ बुझे हुए चिराग, बस अब इसी से काम चलाओ, बड़ी उदास रात है।’’

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लेखक बिजेंद्र त्यागी देश के जाने-माने फोटोजर्नलिस्ट हैं. पिछले चालीस साल से बतौर फोटोजर्नलिस्ट विभिन्न मीडिया संगठनों के लिए कार्यरत रहे. कई वर्षों तक फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट के रूप में काम किया और आजकल ये अपनी कंपनी ब्लैक स्टार के बैनर तले फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हैं. "The legend and the legacy: Jawaharlal Nehru to Rahul Gandhi" नामक किताब के लेखक भी हैं विजेंदर त्यागी. विजेंदर त्यागी को यह गौरव हासिल है कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर अभी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीरें खींची हैं. वे एशिया वीक, इंडिया एब्राड, ट्रिब्यून, पायनियर, डेक्कन हेराल्ड, संडे ब्लिट्ज, करेंट वीकली, अमर उजाला, हिंदू जैसे अखबारों पत्र पत्रिकाओं के लिए काम कर चुके हैं.