मन मेरा मदनोत्सव

भला हो बाबा वैलेंटाइन और हमारे बाबा मदन का एक दम से सेक्यूलर जैसे हो गए। हाय रे संघ परिवार इस अवसर को तूने कैसे गंवाया। बाबा वैलेंटाइन और बाबा मदन का सिर नहीं फुड़वाया। अब जो हो गया सो हो गया। ई राजनीति वाले भी बड़े ठंडे ठंडे हैं। इन अंग्रेजों ने मदन माह फरवरी या फागुन का ऐसा कबाड़ा किया है कि मत पूछो। अभी तो माघ का ही बोलीबाली है। फागुन की ठिठोली शुरू नहीं हुई।

फागुन की सबसे बढ़िया ठिठोली है छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती – इस जानकारी के साथ कि यह जयंती अंग्रेजी दिनांक के अनुसार है यानी फाल्गुन कृष्ण 1 फाल्गुन मासारंभ 19 फरवरी। पता नहीं कैसे वीर मराठा इसे सहता होगा कि शिवाजी के ऊपर अंग्रेजों ने ऐसा कब्जा कर लिया कि उनका जन्म दिन अंग्रेजी तिथि के अनुसार हो गया। हर साल बदलता भी होगा। जब जब हिंदी अंग्रेजी का फ्यूजन होता है तो ऐसा होता है। यह दोनों की ठिठोली है।

मराठा मन पर अंग्रेजों की बढ़िया ठिठोली। चिंता न करें।

मराठा मन ने मराठा संस्कृति को भी बनाए रखा है। यह नागपुर पहुंच कर भारतीय संस्कृति हो जाता है। फागुन ही नहीं फरवरी भी बदल जाता है। अब हो जाता है मार्च की तारीख 22। यह चैत्र का कृष्णपक्ष 3 होता है। मार्च ठिठोली का माह नहीं होता है। इसकी वजह है कि हर साल फरवरी की आखिरी तारीख के साथ भारत सरकार राष्ट्रीय ठिठोली बजट पेश करती है।

इस बजट में घुमा फिर कर यही बात होती है कि इनकम टैक्स कितना घट गया।

यह तो बाद में पता चलता है कि कमाई का साठ पैंसठ फी सदी सेवा कर की शक्ल में पहले ही ले लिया जाता है। और भी कुछ बड़ी बड़ी बात हो जाती है भारत निर्माण की। काला धन की। उसे कहीं से वापस लाने की। यह भी कि वापस ला कर रखोगे कहां, अपने पास रखने की जगह होती तो लोग पहले ही जाने क्यों देते। अब तक मदनोत्सव निकल चुका होता होगा।

श्रीनगर भारत के सीआरपीएफ के नारे भारत माता की जय के साथ सदा अजेय होने का दावा करता हुआ सैलानियों को बुला रहा होता है। कमाल होती है सैलानी संस्कृति कि श्रीनगर में गोस्ताबा की दुकान मुश्किल से मिलती है – एक / दो बची हैं। पर पटा हुआ है शुद्ध वैष्णव ढाबे से। यह सैलानीपन भी बढ़िया ठिठोली है कि जहां भी जाओगे ,घर जैसा खाना पाओगे।

लेकिन अभी फरवरी बहुत बाकी है। फागुन भी 19 फरवरी से शुरु होगा। इस समय अनेक राज्यों के लिए बजटीय ठिठोली का समय होता है। होता होगा। केंद्र को इससे क्या मतलब कि आपके राज्य का योजना आकार वही हो जो आप चाहें। आप होते हैं कौन जी। एक पिछड़ा राज्य के मुख्य मंत्री। आपके राज्य से किसी का नाम है काला धन में। बहुत छूट दे दी – इससे ज्यादा नहीं। हमें जरा उन राज्यों के बारे में सोचने दीजिए जहां इस साल चुनाव है। माल वहां दे कि आपको दे।

यह कोई तर्क है कि पिछला साल ( 2010-11 ) में 20 हजार करोड़ रुपया था तो 2011 -12 में 24000 करोड़ कैसे हो जाएगा। 4 हजार करोड़ तो हम खेलों में लुटाते हैं। भारत निर्माण मे लगाते हैं। क्या करोगे बिहार में इतना पैसा ले जा कर। जमीन की कीमत बढ़ाओगे। अपार्टमेंट की कीमत बढ़ाओगे। नहीं नहीं बिहार को अमीर न बनाऔ। लोग क्या कहेंगे। पहले देश में एक झुमरीतलैया होता था, अब झारखंडी हो गया। एक ही बिहार होता था गरीब गरीब पिछड़ा पिछड़ा। उसको तो बचा कर रखो। तभी तो अपनी गरीबी में होगा मन मेरा मदनोत्सव !

जुगनू शारदेय