ममता बनर्जी खबर नहीं प्रौपेगैण्डा है
ममता बनर्जी खबर नहीं प्रौपेगैण्डा है
जगदीश्वर चतुर्वेदी
बांग्ला चैनलों में इन दिनों माओवादियों के नृशंस कर्मों का प्रतिदिन महिमामंडन चल रहा है। बांग्ला चैनलों में ममता बनर्जी और राजनीतिक हिंसा के अलावा सभी खबरें तकरीबन हाशिए पर डाल दी गयी हैं या नदारत हैं। बांग्ला चैनलों में टॉकशो से लेकर खबरों तक सभी कार्यक्रमों में ममता,माओवाद और हिंसा का महिमामंडन सुनियोजित रणनीति के तहत किया जा रहा है। यह ममता बनर्जी का सुनियोजित प्रौपेगैण्डा है। यह बांग्ला समाचार चैनलों के प्रौपेगैण्डा चैनलों में रूपान्तरण की सूचना है। यह पश्चिम बंगाल की जनता को सूचना दरिद्र बनाने की गंभीर साजिश है। बांग्ला चैनलों को देखकर यही लगता है कि ममता बनर्जी ही खबर है। इस अवधारणा के आधार पर तैयार प्रस्तुतियों में खबरों के अकाल का एहसास होता है। ममता बनर्जी के भाषण खबर नहीं प्रौपेगैण्डा हैं। ममता बनर्जी की मुश्किल है कि उनके पास मुद्दा नहीं है वे अपने भाषण और हिंसक घटनाओं को मुद्दा बनाने की असफल कोशिस कर रही हैं। वे यह भूल गयी हैं कि हिंसा को आज के दौर में मुद्दा नहीं बनाया जा सकता। यदि ऐसा हो पाता तो नरेन्द्र मोदी गुजरात का चुनाव कभी का हार गए होते। टीवी कवरेज में माओवादी हिंसा अपील नहीं करती ,बल्कि वितृष्णा पैदा करती है। यह वर्चुअल हिंसा है। टीवी पर हिंसा का कवरेज निष्प्रभावी होता है। टीवी वाले माओवादी हिंसा से जुड़े बुनियादी सवालों पर चर्चा नहीं कर रहे हैं। सवाल उठता है माओवादी संगठनों का मौजूदा हिंसाचार जायज है ? इस हिंसाचार से पश्चिम बंगाल के किसानों के जानो-माल की रक्षा हो रही है ? माओवादी संगठनों के प्रभाव वाले इलाकों में किसान और आम आदमी चैन की नींद सो रहे हैं ? प्रभावित इलाकों में माओवादी नेता साधारण लोगों से जबरिया धनवसूली क्यों कर रहे हैं ? माओवादियों के पास कई हजार सशस्त्र गुरिल्ला हैं और उनकी पचासों टुकडियां हैं, इन सबके लिए पैसा कहां से आता है ? गोला-बारूद से लेकर पार्टी होलटाइमरों और सशस्त्र गुरिल्लाओं के मासिक वेतन का भुगतान किन स्रोतों से होता है ? इसका जबाब बांग्ला चैनलों,तृणमूल कांग्रेस,माकपा और माओवादियों को देना चाहिए। माओवादियों और ममता बनर्जी के अनुसार आदिवासी अतिदरिद्र हैं। ऐसीस्थिति में वे कम से कम माओवादियों के लिए नियमित चंदा नहीं दे सकते। माओवादियों को कभी किसी ने शहरों में भी चंदा की रसीद काटकर या कूपन देकर चंदा वसूलते नहीं देखा। ऐसी स्थिति में वे धन कहां से प्राप्त करते हैं ? आज तक राजनीतिक,वैचारिक ,सामाजिक और धार्मिक बहुलतावाद के प्रति माओवादियों का घृणास्पद और बर्बर व्यवहार रहा है । वे भारत के बहुलतावादी सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने को नहीं मानते। वर्गशत्रु और उसके एजेण्ट को ‘ऊपर से छह इंट छोटा कर देने’ या मौत के घाट उतारदेने या इलाका दखल की राजनीति करने के कारण माओवादियों से भारत के बहुलतावादी तानेबाने के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। माओवादी जिन इलाकों में वर्चस्व बनाए हुए हैं वहां पर आज भी राजनीतिक स्वाधीनता नहीं है। उन इलाकों में विभिन्न रंगत के मार्क्सवादी,राष्ट्रवादी,उदारवादी और अनुदारवादी पूंजीवादी दल अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करते। आज बुर्जुआ संविधान के तहत जितनी न्यूनतम आजादी मिली हुई है माओवादी इलाकों में वह भी नहीं हैं। यह भ्रम है कि माओवाद प्रभावित 136 जिलों में सामाजिक-राजनीतिक शक्ति संतुलन माओवादियों के पक्ष में है। असल में वे आतंक की राजनीति करके इन इलाकों में लोकतंत्र को पंगु बनाए हुए हैं। साथ ही पृथकतावादी,फासिस्ट,अंधराष्ट्रवादी और अपराधी गिरोहों के साथ मिलकर समानान्तर व्यवस्था चला रहे हैं । राजनीतिक बहुलतावाद और लोकतंत्र एक सिक्के के ही दो पहलू हैं। माओवादियों की भारत के लोकतंत्र और बहुलतावाद में कोई आ>>
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