लोकसभा चुनाव 2014 (Lok Sabha Elections 2014) की बिसात बिछ चुकी है। विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा एक से बढ़कर एक रणनीतियों तथा तिकड़मबाज़ियों का इस्तेमाल किया जाने लगा है। हर बार की तरह इस बार भी इन चुनावों में अपनी बढ़त हासिल करने के लिए झूठ, मक्कारी, फ़रेब, झूठे आश्वासन, मतदाताओं को सब्ज़ बाग़ दिखाना जैसी रणनीतियां अपनाई जाने लगी हैं। कमोबेश सभी पार्टियों के नेता चुनावी रंग में रंगने के बाद इन हथकंडों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अंतर केवल इतना है कि कोई दल व नेता यदा-कदा ज़रूरत पड़ने पर झूठ व मक्कारी का सहारा ले रहे हैं तो कुछ नेता ऐसे हैं जिनकी बुनियाद में ही झूठ, मक्कारी, फरेब, पाखंड तथा नफ़रत भरी हुई हैं। हालांकि आए दिन ऐसे झूठ का पर्दा भी फ़ाश होता रहता है। परंतु लगता है कि झूठ की राजनीति (Politics of lies) करने वालों ने ऐ बेहयाई तेरा ही आसरा की नीति पर चलते हुए स्वयं का इस वातावरण में ही आत्मसात कर लिया है। गोया कोई कुछ भी कहता रहे, आरोप लगाता रहे, इनके झूठ पर झूठ बोलने को बार-बार बेनक़ाब करता रहे, इनकी पोल-पट्टी खोलता रहे परंतु इनकी सेहत पर रत्ती भर फ़र्क़ पड़ता दिखाई नहीं देता।

अफ़सोस की बात तो यह है कि अपना झूठ-फ़रेब पकड़े जाने पर यह जनता को उस झूठ से संबंधित कोई सफ़ाई देने की ज़रूरत भी महसूस नहीं करते।

सवाल यह है कि क्या झूठ-फ़रेब, मक्कारी और पाखंड को अपनी राजनीति का आधार बनाने वालों को उस भारतवर्ष की बागडोर सौंपनी चाहिए जिस महान देश के इतिहास की बुनियाद राजा हरिशचंद्र जैसे सत्यवादी महापुरुष के चरित्र पर टिकी हो?

Industrialists are developing in the name of development

हज़ारों करोड़ रुपयों का सरकारी धन ख़र्च कर वाईब्रेंट गुजरात (Vibrant Gujarat) की प्रचार मुहिम के द्वारा अपनी राजनैतिक छवि को सुधारने व चमकाने का विदेशी कंपनी को ठेका देने वाले नरेंद्र मोदी इस समय देश के एकमात्र ऐसे नेता बन चुके हैं जो भले ही अपने-आप को 2002 के गुजरात दंगों में अपनी संदिग्ध भूमिका के चलते हिंदू हृदय सम्राट की छवि बनाने में सफल रहे हों परंतु वे अपने विवादित, भ्रम फैलाने वाले तथा झूठ के बल पर अपनी लोकप्रियता का विस्तार करने वाले देश के एकमात्र नेता बन चुके हैं। उनके झूठ का कभी उन्हीं के राज्य के नेता व अधिकारी पर्दाफाश करते हैं तो कभी देश की अदालतें, एजेंसियां, अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री, एनजीओ तथा उनके विरोधी राजनैतिक दल उनके झूठ को बेनकाब करते रहते हैं।

और अब नरेंद्र मोदी के झूठ व दुष्प्रचार का खंडन तो दूसरे देशों से भी किया जाने लगा है।

नरेंद्र मोदी गुजरात के विकास संबंधी विज्ञापनों के माध्यम से गुजरात को विकसित राज्य बताने की कोशिश करते रहते हैं। और इसके लिए वे जनता की हज़ारों करोड़ रुपये की ख़ून-पसीने की कमाई ख़र्च कर रहे हैं। और विकास के नाम पर गुजरात राष्ट्रीय राजमार्ग तथा अंबानी, अदानी व टाटा जैसे औद्योगिक घरानों के उद्योगों को दिखा रहे हैं। जबकि हक़ीक़त यह है कि गुजरात के आम आदमी की दशा अब भी वही है जोकि किसी पिछड़े हुए राज्य के आम लोगों की होती है। विकास के नाम पर उद्योगपतियों का विकास हो रहा है। जबकि सूत्रों के अनुसार मोदी राज में गत् दस वर्षों में आठ सौ किसान आत्महत्या कर चुके हैं। परंतु मोदी तंत्र द्वारा अब भी यही प्रचारित किया जा रहा है कि गुजरात का किसान देश के सबसे अधिक संपन्न किसानों में है।

वास्तव में पंजाब व हरियाणा के किसान देश के सबसे संपन्न व सुखी किसान समझे जाते हैं। परंतु इन राज्यों की सरकारें इस प्रकार सरकारी धन खर्च कर अपने राज्य के किसानों के सुख-संपन्नता का भी ढिंढोरा नहीं पीटतीं।

गुजरात में राज्य परिवहन, सरकारी अस्पताल, शिक्षा, सफ़ाई आदि सभी क्षेत्रों में गुजरात बेहद पिछड़ा हुआ है। राज्य में कहने को शराब बंदी लागू है। परंतु कोई भी व्यक्ति जब और जहां चाहे शराब हासिल कर सकता है। ज़हरीली व ग़ैरक़ानूनी बनी शराब पीकर लोगों के मरने की खबरें गुजरात से आती रहती हैं।

राज्य में 24 घंटे विद्युत आपूर्ति का झूठा ढोल पीटा जाता है जबकि वहां के गांवों में 6-8 घंटे की बिजली आपूर्ति होती है। राज्य में गत् 6-7 दशकों से रहते आ रहे हरियाणा व पंजाब के तमाम सीमावर्ती किसानों से उनकी ज़मीनें छीनी जा रही हैं और उन्हें उद्योगपतियों के हवाले करने की साज़िश रची जा रही है। इसके बावजूद मोदी किसानों के मसीहा होने का भ्रम पाले हुए हैं।

नरेंद्र मोदी झूठ के आडंबर के द्वारा स्वयं को देश का सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त, भारतमाता का महान सपूत बताने से भी नहीं चूकते। जबकि धरती माता के अवैध खनन का कारोबार इन्हीं के संरक्षण में, इन्हीं के लोगों द्वारा पूरे राज्य में धड़ल्ले से किया जा रहा है। और जब अमित जेठवा जैसा कोई सामाजिक कार्यकर्ता इस अवैध व्यापार से पर्दा हटाने की कोशिश करता है तथा सच्चाई को सामने लाना चाहता है तो मोदी के क़रीबी गुजरात के ही एक भाजपाई सांसद पर उसकी हत्या करवाने का आरोप लगता है।

हद तो यह हो चुकी है कि नरेंद्र मोदी के बारे में अब यह कहा जाने लगा है कि वे अपने विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यहां तक कि उनपर हत्या व इनकांऊटर कराने तक के आरोप लगने लगे हैं।

मैं नहीं समझता कि देश के इतिहास में अब तक कोई दूसरा ऐसा नेता पैदा हुआ हो जिसे इतनी अधिक तीखी व तथ्यपूर्ण आलोचनाओं का सामना करना पड़ा हो।

नरेंद्र मोदी को अमेरिका द्वारा अभी तक अमेरिका जाने का वीज़ा नहीं दिया जा रहा है। अमेरिका का यह क़दम नरेंद्र मोदी की 2002 के दंगों में संदिग्ध भूमिका के चलते उठाया गया है। परंतु मोदी से मिलने यदि कोई अमेरिकी या किसी अन्य पश्चिमी देश को कोई प्रतिनिधि शिष्टाचारवश चला जाए तो इनके प्रवक्ता व शुभचिंतक तथा इनके प्रचार-प्रसार में लगा तंत्र कुछ इस अंदाज़ से ऐसी मुलाकातों को प्रचारित करने लगता है कि गोया पश्चिमी देश और अमेरिका नरेंद्र मोदी से भयभीत हो गए हों। और इनके समक्ष साष्टांग दंडवत करने लगे हों।

बड़े ही सुनियोजित तरीके से मोदी के प्रचार तंत्र ने पिछले दिनों देश में विकीलीक्स के संस्थापक जुलियान असांजे का हस्ताक्षर युक्त एक पोस्टर हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा में छपवा कर नरेंद्र मोदी को हीरो बनाने की एक और नाकाम कोशिश की। इस पोस्टर का सार यह था कि नरेंद्र मोदी ईमानदार नेता हैं तथा अमेरिका उनकी ईमानदारी के चलते उनसे भयभीत है।

असांजे द्वारा जारी किया गया विकीलीक्स का प्रमाणपत्र प्रतीत होने वाला यह पोस्टर जिसमें कि जुलियन असांजे का फ़ोटो व हस्ताक्षर भी छपा हुआ था, मोदी के उत्साही समर्थकों द्वारा अभी देश में चिपकाया ही जा रहा था कि इसी बीच जूलियन असांजे को इस पोस्टर की भनक मिल गई। और असांजे ने फौरन मीडिया के माध्यम से अमेरिका में बैठकर इस बात का खंडन किया कि उनकी ओर से न तो कभी मोदी को ईमानदार नेता कहा गया और न ही अमेरिका के मोदी से डरने जैसी बात कही गई है।

असांजे ने कहा कि उन्होंने या विकीलीक्स ने नरेंद्र मोदी के संबंध में कभी भी ऐसा कोई प्रमाण पत्र जारी ही नहीं किया। बजाए इसके विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे ने अपने 8 वर्ष पुराने एक गोपनीय केबल का खुलासा किया जिसमें कहा गया है कि नरेंद्र मोदी कुल मिलाकर एक संकीर्ण व संदेही व्यक्ति हैं। वे समग्रता व सर्वसम्मति के बजाए डर के साथ और डरा-धमका कर शासन चलाते हैं। वे रूखे व दूसरों को नीचा दिखाने वाले और कई बार तो पार्टी के उच्च स्तर के नेताओं तक के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले व्यक्ति हैं। वे सत्ता को जकड़ कर रखते हैं।

असांजे के इस प्रहार के बाद मोदी का वही प्रचारतंत्र जो कल तक इन झूठे पोस्टर्स को छपवाने व दीवारों पर चिपकाने में सक्रिय था अब अपना मुंह छिपाने की कोशिश करता दिखाई दे रहा है। और बेहयाई व मक्कारी का लिबास लपेटे यही राष्ट्रवादी अब यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को किसी के प्रमाण पत्र की कोई ज़रूरत नहीं है।

प्रश्र यह है कि यदि मोदी को असांजे के प्रमाण पत्र की कोई ज़रूरत नहीं थी तो उनके उत्साहित समर्थकों द्वारा ऐसे पोस्टर प्रकाशित ही क्यों करवाए गए थे? क्या हिंदी व अंग्रेज़ी के यह पोस्टर विकीलीक्स द्वारा भारत में दीवारों पर चिपकाने के लिए भेजे गए थे? मोदी द्वारा की जाने वाली इतिहास संबंधी गलतियों की पोल-पट्टी तो कई बार देश के इतिहास के कई जानकार खोल चुके हैं। कभी वे पाकिस्तान स्थित तक्षशिला को बिहार में स्थित बताते सुने गए तो कभी सिकंदर की सेना बिहार तक पहुंचाते सुने गए। ऐसी अनर्गल बातें वे अक्सर करते रहते हैं। देश के कई बुद्धिजीवी उन्हें अज्ञानी नेता भी बता चुके हैं। परंतु नरेंद्र मोदी इन दिनों हैलीकॉप्टर पर सवार होकर अपनी एकतरफा डींगें हांकने में मशगूल मीडिया के सवालों से दूर केवल अपने झूठ का प्रचार करने में तथा आडंबरयुक्त भाषण देने में व्यस्त हैं। अपना झूठ पकड़े जाने पर वे उस संबंध में सफाई देना भी मुनासिब नहीं समझते।

मैं नहीं समझता कि नरेंद्र मोदी से पूर्व देश के किसी दूसरे नेता को उसके झूठे और अनर्गल बयानों के चलते फेंकू जैसी उपाधि से नवाज़ा गया हो। परंतु यह मोदी महान ही हैं जो महाझूठ की बिसात पर विजेता बनने का दुःस्वपन देखने पर बुरी तरह आमादा हैं।

तनवीर जाफरी लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं