महान जंगल ‘अक्षत’, खनन नहीं हो सकता - पर्यावरण व वन मंत्रालय
महान जंगल ‘अक्षत’, खनन नहीं हो सकता - पर्यावरण व वन मंत्रालय

Mahan forest cannot be mined - Ministry of Environment and Forests
महान जंगल ‘अक्षत’-आरटीआई से ग्रीनपीस को मिली जानकारी
नई दिल्ली, 24 फरवरी। जिस महान कोयला खदान के खिलाफ आंदोलन (Movement against mahan coal mine) करने की वजह से प्रिया पिल्लई को सरकार ने एंटी-नेशनल कहा है, उसी कोल ब्लॉक को आज खुद वर्तमान पर्यावरण मंत्रालय भी रोकना चाह रहा है। ग्रीनपीस (mahan forest greenpeace) को प्राप्त सरकारी दस्तावेजों के अनुसार विवादास्पद कोयला खदान महान कोल ब्लॉक को संभवतः नीलाम नहीं किया जा सकता है।
एक आरटीआई के सहारे प्राप्त पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 22 दिसंबर 2014 को दिनांकित कार्यालय ज्ञापन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भले ही महान प्रोजेक्ट को दूसरे चरण की मंजूरी मिल चुकी है, महान ब्लॉक को नीलामी से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि यह ‘अक्षत’ या उस तरह के जंगल की श्रेणी में आता है, जहां खनन नहीं किया जा सकता है। इसे मंत्रालय ने ‘नो गो एरिया’ कहा है जहां अभी तक खनन शुरू नहीं हुआ है। यह तीसरी बार है जब वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोयला मंत्रालय को महान में खनन नहीं करने को कहा है।
अगर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय (Ministry of Forest and Environment) के इस सुझाव का पालन होता है, तो यह महान जंगल क्षेत्र (Mahan forest area) को बचाने के लिये चल रहे आंदोलन और महान के वनसमुदायों की बड़ी जीत होगी जो पिछले कई वर्षों से 4 लाख पेड़ों और वन क्षेत्र के आसपास बसे 50 हजार से ज्यादा लोगों की जीविका को बचाने के लिये महान वन क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं।
इस आंदोलन की हिस्सा रही प्रिया पिल्लई (priya pillai activist) को सरकार ने हाल ही में लंदन जाने से रोक दिया था क्योंकि वो महान वन क्षेत्र को बचाने के लिये संघर्ष कर रही हैं।
इस खबर पर खुशी जताते हुए प्रिया ने कहा,
“यह महान के लोगों के लिये बेहतरीन खबर है जो अपने जंगल को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। यह हमारे उस तथ्य की पुष्टि करता है जिसके तहत हम इस भारत के सबसे प्राचीन साल जंगल को कोयला खदान से बचाना चाहते हैं। अगर महान को अक्षत रखा जाता है तो इसी तरह छत्रसाल, डोंग्रीताल जैसे इस क्षेत्र के दूसरे कोयला ब्लॉक को भी अक्षत घोषित किया जाना चाहिए। इससे एक बार फिर साबित हुआ है कि महान और वहां के लोगों के अधिकारों को बचाने की हमारी लड़ाई राष्ट्रीय हित में है तथा पर्यावरण एवं मानवाधिकार को बचाना अपराध नहीं है”।
अमिलिया निवासी व महान संघर्ष समिति के सदस्य कृपानाथ यादव कहते हैं,
“हमलोग इस खबर को सुनकर बहुत खुश हैं। महान जंगल हमारी जिन्दगी का आधार है। इस खबर से हमें विश्वास हुआ है कि यह सही मौका है जब हम अपनी विरासत और घर की रक्षा कर सकते हैं। साथ ही, सरकार को हमारी वनाधिकार की मांग पर ध्यान देना चाहिए।”
अब गेंद कोयला मंत्रालय के पाले में है जिसे पर्यावरण व वन मंत्रालय की सिफारिश पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी है। महान कोल ब्लॉक को साल 2006 में हिंडाल्को व एस्सार पावर के संयुक्त उपक्रम को आवंटित किया गया था। इस ब्लॉक से 14 सालों तक एस्सार पावर प्लांट और हिंडाल्को के अल्यूमिनियम प्रोजेक्ट को कोयला आपूर्ति होनी थी।
महान जंगल को बचाने के लिये दस लाख से ज्यादा लोगों ने ग्रीनपीस इंडिया के जंगलिस्तान अभियान (Greenpeace India's Junglistan campaign) के तहत हस्ताक्षर किये थे।
महान कोयला खदान का विरोध कर रहे सिंगरौली, मध्य प्रदेश के ग्रामीणों का प्रिया पिल्लई और ग्रीनपीस इंडिया लगातार समर्थन कर रहे हैं। इसी खदान को रोकने के लिये जारी संघर्ष के तेज होने को प्रिया के ‘ऑफलोडिंग’ से जोड़ कर देखा गया था। प्रिया लंदन ब्रिटिश सांसदों को इसी मुद्दे के बारे में जानकारी देने जा रही थी।


