महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने को अग्रसर आदित्य ठाकरे!

Chief Minister Devendra Fadnavis resigns in Maharashtra. Aditya Thackeray looking forward to becoming Chief Minister of Maharashtra!

नई दिल्ली/मुंबई। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफा देने से यह तो स्पष्ट हो गया है कि वहां पर भाजपा की सरकार नहीं बनने जा रही है। ऐसे में दो ही विकल्प बचे हैं। एक सूबे में राष्ट्रपति शासन लगे और दूसरा एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना की सरकार।

21 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम (Maharashtra assembly election results) आने के बाद जिस तरह से शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत (Shiv Sena spokesman Sanjay Raut) लगातार एनसीपी मुखिया शरद पवार के संपर्क में रहे। शरद पवार दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले। मुंबई कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का शिवसेना के रुख को सही बताया और जिस तरह से आज सुबह से संजय राउत शरद पवार के साथ रहे। जिस तरह से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस नेताओं की सरकार बनाने की कवायद शुरू हो गई है उससे उससे लगने लगा है कि महाराष्ट्र में भाजपा को सबक सिखाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस समर्थन देकर शिवसेना की सरकार बनवा सकते हैं।

क्या है आदित्य ठाकरे का गणित

288 सीटें वाली महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के 105, शिवसेना के 56, एनसीपी के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं। सरकार बनाने के लिए 145 विधायक चाहिए। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के विधायक मिलाकर 154 बैठ रहे हैं, जो सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या से ज्यादा हैं।

अब तक के शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे का रुख और बयानबाजी रहे उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि वह हर हाल में अपने बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। आज तो उन्होंने शिवसेना का ही मुख्यमंत्री बनने की बात कहकर अपने तेवर स्पष्ट कर दिये। शिवसेना भले ही केंद्र में भी एनडीए में शामिल हो पर वह समय-समय पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभालती रही है।

उधर अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर अगले सप्ताह आने वाले फैसले को देखते हुए भी शिवसेना भाजपा पर निशाना साधने का स्पेस बना रही है। वैसे भी आज प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि वह अपना वादा निभा नहीं पाई है।

ठाकरे ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर भी निशाना साधा है। उनका कहना था कि हरियाणा में दुष्यंत चौटाला से मिलने के लिए उनके पास समय था पर उनके लिए नहीं।

शिवसेना का गठबंधन में आक्रामक होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि भाजपा ने एनडीए में दूसरे सहयोगी दलों को पूरी तरह से शांत कर रखा है।

लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मंत्रालय बंटवारे में जदयू को भाजपा का ठेंगा दिखाना शिवसेना देख चुकी है। यही सब वजह है कि इस बार उद्धव ठाकरे कोई चूक नहीं करना चाहते हैं।

उद्धव ठाकरे एक तीर से दो निशाने साध रहे हैं। एक से तो वह अपने बेटे को पहली बार विधायक बनते ही मुख्यमंत्री के पद पर बैठाना चाहते हैं दूसरे वह भाजपा को भी आईना दिखाना चाहते हैं। जिस तरह से शिवसेना के ढाई साल के मुख्यमंत्री पद मांगने पर और फडनवीस का पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहने की जिद पर अड़े रहे, ऐसे में यह शिवसेना को ज्यादा अखर रहा था।

वैसे भी नैतिकता के आधार पर शिवसेना की बात भाजपा को मान लेनी चाहिए थी। भाजपा की सरकार केंद्र के अलावा कई सूबे में चल रही है। शिवसेना भाजपा का मजबूत सहयोगी दल माना जाता है। ऐसे में भाजपा को शिवसेना की बात मानकर बड़े भाई का धर्म निभाना चाहिए था।

दरअसल उद्धव ठाकरे भी जानते हैं कि एनसीपी और कांग्रेस के साथ उनकी सरकार ज्यादा दिन नहीं चल पाएगी, पर इन सब परिस्थितियों में वह अपने बेटे को मुख्यमंत्री जरूर बना ले जाएंगे और भाजपा को भी अपनी ताकत दिखा देंगे। यदि किन्हीं कारणों से सरकार गिरती भी है और एनडीए की बनती है तो भाजपा पर शिवसेना का दबाव रहेगा।

वैसे भी उद्धव ठाकरे जानते हैं कि शिवसेना भाजपा की मजबूरी है। वह कितना भी झटका दे ले पर भाजपा इतनी जल्द उसको छोड़ने वाली नहीं है। यह गत सालों में भी हुआ है।

चरण सिंह राजपूत