मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है वैचारिक आतंकवाद
मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है वैचारिक आतंकवाद
In the current era, terrorism has been identified as the biggest problem in the world.
मौजूदा दौर में आतंकवाद दुनिया की सबसे बड़ी समस्या के रूप में चिन्हित किया जा चुका है। इस विश्वव्यापी जटिल समस्या में आमतौर पर यही देखा जा रहा है कि प्राय: आतंकवादी गतिविधियों में कर्ता की भूमिका अदा करने वाले व्यक्ति किसी न किसी अतिवादी विचारधारा से पूरी तरह प्रभावित होते हैं। ऐसे लोग अपनी ही विचारधारा के उपदेशकों, धर्मगुरुओं, अथवा नेताओं के अतिवादी विचारों से प्रेरित होते हैं।
अतिवादी विचारधारा के चरमपंथी सोच रखने वाले कई चतुर लोग अपने धर्म व समुदाय के लोगों को किसी न किसी मुद्दे के बहाने यह समझा पाने में सफल हो जाते हैं कि उन्हें, उनके परिवार को व उनके समुदाय को देश के ही अमुक समुदाय या वर्ग विशेष के लोगों से गंभीर खतरा है। और इस प्रकार वे किन्हीं दो समुदायों के लोगों के बीच नफरत की दीवार खड़ी करा पाने में कामयाब हो जाते हैं। परिणामस्वरूप दुनिया में आतंकवाद के तरह-तरह के बड़े से बड़े हादसे दरपेश आते हैं। यहां तक कि दो देशों के मध्य युद्ध तक छिड़ जाते हैं।
मज़े की बात तो यह है कि ऐसी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम तक पहुंचाने वाला व्यक्ति जिसे 'आतंकवादी बताया जाता है वह या तो कहीं स्वयं मानव बम के रूप में अपनी जीवन लीला समाप्त कर देता है या मुठभेड़ में ढेर कर दिया जाता है। या फिर ज़िंदा पकड़े जाने पर फांसी के फंदे पर चढ़ जाता है। या अपना पूरा जीवन जेल की सलाख़ों के पीछे गुज़ारता है।
परंतु इन आतंकवादी घटनाओं की सीधी जिम्मेदारी से वही चतुर तथाकथित बुद्धिजीवी, फिरकापरस्त, समाज विभाजक लोग जो कि हमें कहीं सफेद तो कहीं रंग-बिरंगे कपड़ों में नज़र आते हैं, साफ बच निकलते हैं। ऐसे लोग केवल बच ही नहीं निकलते बल्कि आतंकी घटनाओं के बाद कई बार सीनाज़ोरी करते हुए भी दिखाई पड़ते हैं। अपनी सांप्रदायिकतापूर्ण अतिवादी गतिविधियों से जुड़ी हिंसा व आतंकवाद को ऐसे सफेदपोश लोग समर्थन देते हैं, इसकी वकालत करते हैं तथा ऐसे मानवता विरोधी मिशन को निरंतर आगे बढ़ाते रहते हैं।
हम कह सकते हैं कि ऐसे लोग भले ही नेता, समाजसेवी, उपदेशक या धर्मगुरु के रूप में ही हमें क्यों न दिखाई दें परंतु दरअसल इनका लिबास, इनका दिखावापूर्ण आचरण तथा इनका व्यक्तित्व ठीक सांप पर चढ़े केंचुल के समान है। और अमानवीयता की राह पर चलने वाला यह अतिवादी वर्ग ही दरअसल आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रेरक तथा स्रोत है।
यदि इस सफेदपोश आतंकवादी विचारधारा के प्रचारकों-प्रसारकों, व पोषकों को समाप्त नहीं किया गया अथवा उन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि शीघ्र ही मानवता की दुश्मन यह शक्तियां समय से पूर्व ही पूरी पृथ्वी के समूल नाश का कारण बन जाएं।
दुर्भाग्यवश अतिवादी विचारधारा के प्रसार की यह त्रासदी किसी एक देश या समुदाय में फैली बुराई नहीं है। बल्कि इस समय इस समस्या का दंश दुनिया के कई प्रमुख एवं विश्व की बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, सिख तथा यहूदी जैसे समुदाय झेल रहे हैं। अतिवादी विचारधारा के हर समय के प्रचार-प्रसार ने पाकिस्तान को आज उस कगार पर पहुंचा दिया है जहां इस समय दुनिया के तमाम देश पाकिस्तान से कन्नी काटने लगे हैं। न केवल अमेरिका बल्कि पाक परमाणु मिशन में उसका सहयोग देश चीन भी अब आतंकवादी पोषण को लेकर पाकिस्तान को आंखें दिखाने लगा है।
पाक में कई आतंकवादी गुट जो कि अलग-अलग विचारधारा का समर्थन करते हैं, एक-दूसरे के समुदाय के दुश्मन बने बैठे हैं।
नतीजा यह है कि कहीं पाकिस्तान में मस्जिद और दरगाहों में नमाजि़यों व तीर्थ यात्रियों की हत्याएं मानव बमों या विस्फोटों के द्वारा कर दी जाती हैं तो कहीं अंधाधुंध गोलियां चलाकर बेगुनाह लोगों को सामूहिक कत्ल कर दिया जाता है। कहीं बाज़ारों में धमाका तो कहीं सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमला तो कहीं सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया जाता है। पाक आतंकवादियों ने तो बेनज़ीर भुट्टों से लेकर अपने देश की मेहमान क्रिकेट टीम तक को नहीं बख्शा।
वैचारिक आतंकवाद की विचारधारा ने ही आज पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किए जाने की चौखट तक पहुंचा दिया है।
नार्वे की राजधानी ओस्लो में गत् 22 जुलाई को एंडर्स बेरिंग ब्रेविक नामक एक कट्टरपंथी ईसाई युवक द्वारा 70 से अधिक आम लोगों की गोलियां चलाकर सामूहिक रूप से हत्या कर दी गई। यह ईसाई युवक वैचारिक रूप से कट्टरपंथी ईसाई विचारधारा रखने वाला व्यक्ति था। इसका विश्वास बहु संस्कृतिवाद पर कतई नहीं है तथा यह इस व्यवस्था का विरोधी है। सोचने का विषय है कि ईसाईयत पर चलने वाला यह व्यक्ति ईसा मसीह के अमन, शांति, प्रेम, सहयोग व परस्पर भाईचारा जैसे बताए गए मौलिक ईसाई सिद्धांतों को मानने के बजाए बहुसंस्कृतिवाद के विरोध में ही अपने परचम को बुलंद करने में अधिक विश्वास रखता है। उसके प्रेरणास्रोत ईसा मसीह अथवा ईसाईयत की वास्तविक राह पर चलने वाले वे लोग कतई नहीं हैं जो विश्व शांति की बातें करते हैं तथा सहिष्णुशीलता के साथ रहना पसंद करते हैं।
यही वजह है कि ब्रेविक ने अपने 1500 पृष्ठ के घोषणापत्र में 102 पृष्ठों में केवल भारत का ही उल्लेख किया है। ब्रेविक भारत में सक्रिय आक्रामक तथा सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी शक्तियों से बहुत प्रभावित है। गुजरात दंगे तथा मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर देश में होने वाले हमले अथवा राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित दंगे उसके लिए कौतूहल का विषय हैं। वह अतिवादी हिंदुत्ववादियों के संघर्ष में अपना सहयोग भी देना चाहता है। तथा इन सांप्रदायिक ताकतों को सामरिक सहयोग भी देना चाहता है। स्वयं को सच्चा ईसाई बताने वाला यह व्यक्ति अपने मिशन को इंतेहा तक पहुंचाने के लिए आतंकवादी गतिविधियों को विश्वव्यापी स्तर तक चलाने, इस मकसद के लिए पूरे विश्व में युद्ध छेडऩे यहां तक कि व्यापक विनाश के हथियारों के प्रयोग तक के हौसले रखता है।
आखिर कुछ सफेदपोश लोग तो मानवता विरोधी विचारधारा के प्रचारक व प्रसारक ऐसे हैं जिन्होंने एक नवयुवक को इतना ज़हरीला इंसान बना दिया जिसके विचार इस कद्र विध्वंसक बन गए। इसी प्रकार इस्लाम धर्म में भी तमाम ऐसे तथाकथित रहनुमा मिल जाएंगे जो इस्लाम को कभी ईसाईयत से कभी यहूदियों से तो कभी हिंदुओं से सबसे बड़ा खतरा बताकर इन समुदायों के लोगों के विरुद्ध संघर्ष छेडऩे की पुरज़ोर वकालत करते हैं।
ओसामा बिन लाडेन, अमन अल जवाहिरी, मुल्ला उमर, अज़हर मसूद, हाफिज़ सईद आदि उन्हीं इस्लामी स्वयंभू ठेकेदारों में से हैं। इसी प्रकार भारत में भी आरएसएस व विश्व हिंदू परिषद द्वारा प्रेरित असीमानंद,प्रज्ञा ठाकुर व कर्नल पुरोहित आदि भी उसी श्रेणी के लोग हैं जो धर्म के नाम पर अपने समुदाय के लोगों को इस हद तक वरगला देते हैं कि उनके अनुयायी किसी न किसी लालच, भय तथा कथित धर्म प्रेम के चलते किसी की भी जान लेने पर आमादा हो जाते हैं। परिणामस्वरूप कभी भारत में 6 दिसंबर 1992 जैसी बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना घटती है तो कभी गोधरा व गुजरात जैसे हिंसक सांप्रदायिक दंगे हो जाते हैं। कभी मक्का मस्जिद, अजमेर धमाके, मालेगांव व समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की घटनाएं घटित होती हैं। कभी किसी एक ऐसी ही अतिवादी मानसिकता के जिम्मेदार व्यक्ति की वजह से पुलिस सेना तथा प्रशासनिक व्यवस्था तक बदनाम हो जाती है। और तो और अतिवादी विचारधारा कभी-कभी किसी शासक को उस हद तक भी ले जा सकती है जबकि उसके संरक्षण में समुदाय विशेष के लोगों का सामूहिक नरसंहार हो जाए। भारत के गुजरात राज्य के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी 2002 से कुछ ऐसे ही आरोपों से घिरे हुए हैं। परंतु उन्हें अपनी विचारधारा व अपनी पक्षपातपूर्ण करनी पर अफसोस या ग्लानि नहीं बल्कि गर्व महसूस होता है।
पिछले दिनों भारत में ही एक नेता रूपी सफेदपोश व्यक्ति सुब्रमणयम स्वामी ने भी समाचार पत्र में प्रकाशित अपने एक आलेख के द्वारा ज़हरीले विचारों की अभिव्यक्ति कर डाली।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के अध्यापक स्वामी का मत है कि भारत में रहने वाले जो मुसलमान अपने पूर्वजों को हिंदू नहीं मानते उनके मताधिकार समाप्त कर देने चाहिए।
देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को झकझोर कर रख देने वाली 6 दिसंबर 1992 की बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना जिसने भारत में हिंदुओं व मुसलमानों के मध्य दरार पैदा कर दी, स्वामी उस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे के समर्थक हैं। वे भी हिंदुत्ववादी शक्तियों के सुर से अपना सुर मिलाते हुए इस्लामी आतंकवाद को ही भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे हैं।
परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद, अबुल कलाम आज़ाद, भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, तथा वर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के देश भारतवर्ष में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में असहिष्णुता तथा वैमनस्यपूर्ण विचारधारा के प्रचार का यह स्तर किसी साधारण व्यक्ति का नहीं बल्कि भारत के एक जाने-माने विवादित राजनेता सुब्रमणयम स्वामी का है।
यह और बात है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों, पूर्व छात्रों, शिक्षकों तथा वहां पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों तक ने सुब्रमणयम स्वामी को हार्वर्ड विश्वविद्यालय से बर्खास्त करने तथा विश्वविद्यालय का संबंध उनसे तोड़ लेने व उनसे डिग्री वापस लेने तक की मांग कर दी है।
दरअसल ऐसे ही लोग सांप्रदायिकता,नफरत, विद्वेष तथा समाज को समुदाय के नाम पर विभाजित करने के सबसे बड़े जिम्मेदार हैं तथा आतंकवाद को बढ़ाने में इनकी भूमिका आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों से कहीं बड़ी व महत्वपूर्ण है। लिहाज़ा ज़रूरत है मानवता को बचाने के लिए ऐसी प्रदूषित विचारधारा के लोगों पर लगाम लगाने की।
तनवीर जाफरी


