मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बिना शर्त रिहाई की मांग की माकपा ने
रायपुर, 27 दिसंबर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने तेलंगाना डेमोक्रेटिक फोरम नामक संस्था से जुड़े वकीलों, पत्रकारों, छात्रों सहित 7 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को छत्तीसगढ़-तेलंगाना की सीमा पर दुम्मागुड़म (तेलंगाना) में तेलंगाना पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने, बाद में उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस को सौंपने और यहां कोंटा में उनकी गिरफ़्तारी दर्शाकर छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून के तहत उन्हें जेल भेजने के कृत्य की कड़ी निंदा की है.
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि तेलंगाना और छत्तीसगढ़ पुलिस का यह कृत्य न केवल क़ानून का मखौल उड़ाना है, बल्कि क़ानून का आपराधिक उल्लंघन भी है और इसके लिए अदालत को भी गुमराह किया गया है. ऐसा लगता है कि देश में पुलिस राज कायम किया जा रहा है. दोनों राज्यों के जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को इसके लिए सजा दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा है कि छत्तीसगढ़ में माओवादियों के दमन के नाम पर आम नागरिकों, राजनैतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बड़े पैमाने पर हमले हो रहे हैं, जिसके खिलाफ पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कड़ी टिप्पणियां की हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव और बस्तर आईजी को भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने तलब किया है. माकपा ने कहा कि देश के किसी भी हिस्से में हो रहे हिंसा-अत्याचार की घटनाओं की जांच-पड़ताल करना, इसके प्रतिकार के लिए शांतिपूर्ण और जनतांत्रिक आंदोलन विकसित करना और इसके लिए आम नागरिकों को संगठित करना इस देश के नागरिकों का संविधानप्रदत्त अधिकार है और किसी भी सरकार और प्रशासन को इस पर प्रतिबंध लगाने की इज़ाज़त नहीं दी जा सकती.
माकपा ने इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की निःशर्त रिहाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से आग्रह किया है कि इस मामले का स्वतः संज्ञान लें.