हरदा, २२ मई। हरदा जिले के वनग्राम ढेगा की आदिवासी महिला फूलवती और ललिता ने आज स्थानीय नारायण टाकीज चौराहे पर अपने गले में फांसी का फंदा डालकर सरकार से कहा कि उनके अत्याचार सहते-सहते वो थक गए हैं; बेहतर होगा सरकार उन्हें फांसी देकर एकबार में ही किस्सा खत्म करे। उनके साथ उनके गाँव के लोग भी थे।

महिलाओं ने बताया कि जो पुलिस और प्रशासन नर्मदा नदी को मिटा करोड़ों की रेता चुराने वाले पर कोई केस दर्ज नहीं कर पाता है और ना ही उसका काम ही रोक पाता है, वो ही उन्हें चैन से जीने भी नहीं देता। उन्होंने बताया: वैसे भी पुलिस और वन विभाग द्वारा लगाए गए केसों और अत्याचार से परेशान होकर फूलवती का पति रामभरोस कैंसर में मर गया और लड़की सुनीता ८वी में इलाके में टॉप करने के बाद आगे की पढ़ाई छोड़ मानसिक रूप से बीमार हो घर बैठ गई। पिछले १२-१३ सालों में उनके और उनके पतियों और लड़कियों पर वन विभाग और पुलिस ने १०-१० केस लगाए; उनके खेत उजाड़े ; उनके उपर हमलाकर उन्हें घायल किया। हाल ही में, १३ मई के दिन तो हद ही कर दी; बिना बताया आए और उन दोनों महिलाओं का घर जमींदोज़ कर उसमें लगी लकड़ी और ईटा सब ले गए। अब दुबारा घर बनाने के लिए पैसा कहाँ से लाए और घर का कर्जा हो गया वो अलग। उन पर लगे सारे केस झूठे साबित हुए जबकि उनके उपर हुए हमले को लेकर पुलिस ने उन्हें केस दर्ज नहीं करने दिया।

महिलाओं ने बताया 2007 में जब वो कंप्लेंट केस करने कोर्ट जा रहे थे उन्हें कोर्ट के सामने से ही उठाकर ले गई। वो अपना मामला सुप्रीम कोर्ट तक ले गए; कोर्ट ने हरदा जिले में उनकी शिकायत सुनने के लिए शिकायत निवारण प्राधिकरण भी बना दिया, लेकिन उसकी बात भी अधिकारी नहीं सुनते और अब तो उसे भी बंद करवा दिया।

आदिवासियों ने कहा उन्हें मरने के अलावा अब आगे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा।

आदिवासियो ने यह कार्यक्रम अपने श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद के बैनर तले किया। इस अवसर पर उन्होंने एक पर्चा भी बांटा जिसमें कहा आज हमको बताना चाहते हैं कि माँ नर्मदा की धार रोककर करोड़ों की रेत लूटने वाले ठेकेदार के सामने दुम दबाने वाले अधिकारी कैसे पिछले 12 सालों से अवैध उत्खनन के और कटाई के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले हम आदिवासी पर कहर ढा रहे है। आप आज भी जाकर देख सकते है, कैसे रहटगांव से बोरपनी रोड पर यह काम हुआ है। टेमगांव से लेकर चीरापाटला तक बनने वाले राष्ट्रीय राज्यमार्ग से लेकर उस ईलाके में बनने वाली प्रधानमंत्री योजना की हर सड़क में नदी से अवैध खनन किया गया है।

2008 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि जंगल में अवैध खुदाई के खिलाफ कार्यवाही करो लेकिन कुछ नहीं हुआ। उल्टा सरकार ने हमारे गाँव के एक-एक आदिवासी के ऊपर 10-10 झूठे केस लगाया। इन केस से फूलवती का पति तो कैंसर में मर गया और लडकी सुनीता आठवी में फर्स्ट क्लास पास होने के बाद पढाई छोड़ मानसिक बीमारी से पीड़ित हो गई।

अभी 13 मई के दिन वन विभाग और पुलिस के जवान आए और गाँव ढेगा में बिना नोटिस, सूचना के फूलवती और सूबेदार के घर को पूरा तोड़-फोड़ कर दिया। लकड़ी, ईटा सब समान ले गए- ऐसा लगा जैसा दूसरे देश की सेना ने हमला कर दिया हो। बड़ी मेहनत और कई सालो तक पैसा जमाकर या घर बनाया था। अब कैसे वापस घर बनेगा?

आदिवासियों ने कहा केंद्र सरकार का वन अधिकार कानून, 2006 बोलता है- जंगल आदिवासी का है। मगर वन विभाग अपनी अंग्रेज के समय की जमींदारी छोड़ने को तैयार नहीं है। और हम आदिवासी ने आज तक जंगल से अपने जीने के लिए दो वक्त की रोजी रोटी के अलावा कुछ नहीं कमाया, हाँ उसमें अवैध कटाई और खुदाई करने वाले नेता, अफसर और ठेकेदार की तिकड़ी ने जरूर करोड़ो कमाए। अब हम थक गए। इसलिए, आज हम वन ग्राम ढेगा के आदिवासी हरदा शहर में चौराहे पर खड़े होकर सरकार से फंसी लगाने की बात कह रहे हैं?

फूलवती आदिवासी की देश से गुहार कब थमेगा सरकारी अत्याचार

मैंने अपना पति खोया, लडकी मानसिक संतुलन खो बैठी

फूलवती ने बताया इन मामलों के तनाव से वो अपने पति रामभरोसे को कैंसर में खो बैठी; जवान लडकी सुनीता अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है। 2007 में अपनी चचेरी बहन के साथ उस इलाके में आठवी में प्रथम श्रेणी में पास होने वाली पहली सुनीता पहली लडकी थी; वो आगे पढ़ने हरदा भी आई, लेकिन वनविभाग के अत्याचार के चलते उसे आगे की पढ़ाई छोडनी पड़ी। उस पर चार झूठे मामले लगाए। तथा उसकी लड़की सुनीता, जो उस समय नाब्लिग थी, पर वनकर्मियों को आपहरण का मामला लगाया।

फूलवती ने कहा कि वन विभाग ना तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई जिला शिकायत निवारण प्राधिकरण से डरता है और ना वो केंद्र सरकर व्दारा बनाए वन अधिकार कानून को मानता है।

समाजवादी जन परिषद के अनुराग मोदी ने बताया कि श्रमिक आदिवासी संगठन वि. राज्य सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन 13 साल के सभी मामलों की जांच के लिए हरदा जिले में एक जिलास्तरीय शिकायत निवारण प्राधिकरण भी बनाया है, लेकिन विभाग उसे भी नहीं मानता। केंद्र सरकार ने सन 2006 में वनाधिकार कानून, 2006 बनाया जिसके अनुसार जंगल पर ग्रामसभा का पूरा अधिकार है और लोगों को निस्तार का अधिकार है फिर भी वन विभाग अंग्रेजों के जमाने जैसी कार्यवाही करता है।