मायावती की भाजपा के फासीवाद को बचाने की कोशिश कामयाब नहीं होगी
मायावती की भाजपा के फासीवाद को बचाने की कोशिश कामयाब नहीं होगी
मायावती की भाजपा के फासीवाद को बचाने की कोशिश कामयाब नहीं होगी
छत्तीसगढ़ में बसपा के पास केवल एक विधायक है।
वोट के लिहाज से देखें तो महज 4 परसेंट वोट के साथ बसपा सुप्रीमो कांग्रेस से वहां पर 20 सीटें मांग रही थीं।
आखिर जब इनके गृह प्रदेश यूपी में इनकी जमीन खिसक चुकी है तब कांग्रेस इन्हें छत्तीसगढ़ में इतनी सीट क्यों दें?
सच तो यह है कि इनके पास उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कोई जनाधार बचा ही नहीं है। फिर यह छत्तीसगढ़ में क्या कर पाएंगी? मध्यप्रदेश में क्या कर पाएंगी?
यह बहुत सोचने की बात है।
दलित समाज को ठग रहे हैं मायावती का बेशर्मी भरा बचाव करने वाले
एक बात और है कि मैं देख रहा हूं कि कई लोग मायावती के इस कदम का बेशर्मी भरा बचाव कर रहे हैं। लेकिन यह केवल दलित मतदाताओं की आकांक्षा से खिलवाड़ करना है। ऐसे लोग दलित समाज को ठग रहे हैं।
एक बात और है कि मायावती अब दलित हितों के नेता नहीं रह गई हैं। क्योंकि आम दलित कांग्रेस से गठबन्धन के पक्ष में था। लेकिन मायावती ने उस आवाज़ को व्यक्तिगत फायदे के लिए कोई महत्व नहीं दिया।
यह सीधे और सीधे दलित हितों के नाम पर आरएसएस और भाजपा के साथ सौदेबाजी करके अधिकतम लाभ कमाने की कोशिश है। इससे दलितों का भला नहीं होगा। दलित यह समझ चुका है।
दरअसल जिन बाबा साहब अंबेडकर ने आरएसएस के समाज विरोधी अमानवीय हिंदू धर्म के मूल्यों और उनके शोषण के खिलाफ जीवन भर लड़ाई की उन्हीं के नाम पर मायावती ने न केवल आरएसएस से समझौता किया बल्कि दलित अस्मिता के नाम पर दलितों को खूब ठगा।
उत्तर प्रदेश का दलित चाहता था कि कांग्रेस के साथ गठबन्धन हो। अगर यह गठबंधन होता तो ठगे जाने के बावजूद भी यूपी का मुसलमान बसपा के साथ आता। लेकिन मायावती ने धोखा दिया।
मायावती ने दलित समाज को धोखा देकर यह साबित कर दिया है कि यह उनका अंतिम चुनाव है अब इसके बाद जिग्नेश मेवानी और अन्य दलित युवा नेताओं के हाथ में दलित समाज की कमान आ जाएगी।
भाजपा के फासीवाद को बचाने की मायावती की यह कोशिश एकदम कामयाब नहीं होगी।
मायावती अपनी अंतिम पारी खेल रही हैं और बसपा का 19 के बाद खेल खत्म हो जाएगा।
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