मायावती ने देश के सेकुलरिज्म के खिलाफ इतनी साजिशें रची हैं और गुनाह किया है कि उन पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता
मायावती ने देश के सेकुलरिज्म के खिलाफ इतनी साजिशें रची हैं और गुनाह किया है कि उन पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता

Mayawati has created so many conspiracies against the country's secularism and has committed that she can not be trusted
मायावती ने देश के सेकुलरिज्म के खिलाफ इतनी साजिशें रची हैं और गुनाह किया है कि उनपर भरोसा ही नहीं किया जा सकता.
सपा और बसपा का वोटर सांप्रदायिकता के मसले पर बीजेपी के वोटर की तरह ही सोचता है.
2014 में उसने बीजेपी के साथ शिफ्ट होकर इस धारणा को पुष्ट कर दिया कि #मुसलमानों को इन से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए.
यही नहीं सपा और बसपा का वोटर अखिलेश और माया को सिर्फ यूपी की पॉलिटिक्स के योग्य पाता है.
वह यह स्वीकार कर चुका है कि केंद्र में हिंदूवादी सरकार का होना ही उसके हित में है. जिस भावना को अखिलेश और मायावती तोड़ नहीं पाए हैं.
अखिलेश यादव की सांप्रदायिकता कुछ यूं समझिए कि वह सत्ता में आने पर गाय खरीदने के लिए लिए जाने वाले कर्ज को ब्याज मुक्त करेंगे. भैंस खरीदने वाले कर्ज को ब्याज मुक्त नहीं करेंगे.
सांप्रदायिकता को लेकर कांशीराम हमेशा स्पष्ट वक्ता थे.
कांशीराम का कहना था कि सांप्रदायिकता दलितों की समस्या नहीं है.
हम यह जानते हैं कि जाति की राजनीति की अंतिम शरण स्थली संघ की गंगोत्री है.
इसका मतलब यह है कि कांशी राम संघ के पेड वर्कर थे या फिर कांशीराम को यह मालूम था कि हम जिस राजनीति को प्रश्रय दे रहे हैं अंत में भाजपा के साथ खड़ी हो जाएगी.
आज अगर बसपा का वर्कर बीजेपी के साथ खड़ा होता है तब इसमें कोई अचंभा करने वाली बात नहीं है.
मायावती लाख कोशिश करें अब दलितों को दलित नहीं बनाया जा सकता.
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