मीडियापुत्र आम आदमी पार्टी
मीडियापुत्र आम आदमी पार्टी
"चैनल' पर चलती एक पार्टी - आम आदमी पार्टी!
केजरीवाल एक पार्टी के मुखिया की बजाय किसी मित्र मंडली जैसे क्लब के नेता नज़र आ रहे हैं
इल्मी से लेकर बिन्नी से निपटना बहुत आसान है, पर समाजवादी धारा से निकले लोगों से इस अंदाज में निपटना बहुत मुश्किल
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी जो भी राजनीति या अराजनीति करती है वह टीवी चैनल पर ज्यादा करती है। पार्टी की गोपनीय रणनीति का खुलासा भी चैनल पर होता है और भावी रणनीति का भी। कौन कब पार्टी से जाएगा, यह भी चैनल पर बताया जाता है और पार्टी की किस कमेटी में क्या हुआ, यह भी चैनल पर इसका कोई न कोई सदस्य बताता मिल जाएगा।
ये पार्टी पहले लोगों का स्टिंग करती थी, बाद में अपने नेताओं का करने लगी और अब अपने मुखिया का भी स्टिंग कर डाला। एक पत्रकार ने सही लिखा है कि देश और दिल्ली के आम आदमी को इतने लोकतांत्रिक और क्रांतिकारी तरीके पहले कभी उल्लू नहीं बनाया गया।
यह टिप्पणी बहुत आहत होकर की गई है, क्योंकि आम लोगों से इस पार्टी से बहुत उम्मीद थी और अभी भी है। आम आदमी पार्टी ने एक साल में जो साख बनाई थी वह एक महीने में मिट्टी में मिल गई। यह अराजनैतिक किस्म के लोगों के अहंकार का चरम था। अब यह पार्टी अब अहंकार के शीर्ष पर बैठे लोगो का समूह बन गई है। और अरविंद केजरीवाल एक पार्टी के मुखिया की बजाय किसी मित्र मंडली जैसे क्लब के नेता नज़र आ रहे हैं।
दरअसल अरविंद केजरीवाल राजनैतिक मार्केटिंग की रणनीति से निकले है और उन्हें ग़लतफ़हमी हो गई है कि इससे दीर्धकालीन राजनीति हो सकती है।समूचा अन्ना आंदोलन केजरीवाल की राजनैतिक मार्केटिंग के चलते ही तेजी से बढ़ा था।
याद करें 'मैं भी अन्ना' वाली टोपियां, टी शर्ट और बड़े-बड़े होर्डिंग्स। मंच पर भारत माता का चित्र, भारत का नक्शा और तिरंगा। अन्ना को गांधी में बदलने का प्रयास हुआ और पहला दौर सफल भी रहा। मीडिया में एक तबका इसे दूसरी और तीसरी आजादी की लड़ाई बताकर आगे भी बढ़ा रहा था। वह दौर कांग्रेस के भ्रष्टाचार के साथ राजनैतिक मूर्खताओं का दौर था जिससे यह आंदोलन देश भर में फ़ैल गया। पर जिस राजनैतिक दृष्टि की कमी तब थी वह बाद में भी जारी रही। अरविंद केजरीवाल को यह खुद और अपनी मित्र मंडली का करिश्मा ज्यादा लगा, जिसके चलते इस आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी पर यह असर आज तक है। इसके नेतृत्व में एक दौर में समाजवादी आन्दोलन के साथ जय प्रकाश आंदोलन के लोग जुड़े, पर राजनैतिक विचारधारा और दृष्टि को लेकर बहुत से अलग भी हो गए। फिर भी योगेंद्र यादव, आनंद कुमार, अजित झा, मेधा पाटकर, डा. सुनीलम जैसे लोग एक दौर में इसके अगले दस्ते में शामिल रहे, अन्ना हजारे के नेतृत्व में। दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास से लेकर संजय सिंह आदि थे। टकराव मूलतः इसी समाजवादी खेमे और अराजनैतिक खेमे के बीच शुरू हुआ जिसका सारा ब्यौरा रोज एक धारावाहिक की तरह चैनल पर चल रहा है। दिल्ली में जिस तरह का जनादेश आम आदमी पार्टी को मिला वैसा पहले कभी नहीं मिला था और इसके बाद अन्य राज्यों की बारी थी। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की बड़ी भूमिका बन रही थी, सबको साथ लेकर चलने की, पर अपने और मित्रों के अहंकार ने इस मौके को फिलहाल खो दिया है। अभी भी अगर अरविंद केजरीवाल दोनों खेमों को साथ लेकर चलने में नाकाम रहे तो आम आदमी पार्टी का प्रयोग और राज्यों में सफल हो पाएगा, यह कहना मुश्किल है। शाजिया इल्मी से लेकर बिन्नी से निपटना बहुत आसान है, पर समाजवादी धारा से निकले लोगों से इस अंदाज में निपटना बहुत मुश्किल। इसका अंदाजा आज आप के नेता आशुतोष को कई चैनलों पर बचाव की मुद्रा में देख कर साफ़ हो गया।
अंबरीश कुमार


