मीडिया और भक्त मोदी का मास्टरस्ट्रोक बताते रहेंगे, लेकिन सच्चाई यही है कि ज़मीन अब खिसक चुकी है

शाहनवाज़ आलम

मोदी ने कल आज़मगढ़ में जिस तरह एक अपुष्ट और कमज़ोर खबर को मुद्दा बनाकर राहुल गांधी पर निशाना साधने और कांग्रेस को मुसलमानों की पसंद वाली पार्टी बताने की कोशिश करते हुए हिन्दू मुस्लिम के घिसे पिटे डायलॉग से अपने भाषण का पूरा समय निकाला उसमें किसी सकारात्मक रणनीति से ज़्यादा अपनी नाकामी को छुपाने की दीनता ज़्यादा थी। दरअसल विकास के नाम पर अखिलेश यादव द्वारा पहले ही जिस योजना का उद्घाटन किया जा चुका हो उसका दुबारा उद्घाटन करते वक़्त विकास वगैरह के दावे करने पर अपनी संभावित बेइज़्ज़ती से वे घबराए हुए थे।

दूसरी बात ये कि अब हर नाकामी के लिए नेहरू और इंदिरा को कोस कर भी काम नहीं चल सकता था। ऐसे में एक कृत्रिम मुद्दा का सहारा लिया गया और पहली बार बिना नेहरू और इंदिरा का नाम लिए सीधे सीधे राहुल गांधी पर हमला बोला गया। सबसे अहम कि इस सीन के निर्माता निर्देशक भी वो खुद नहीं बन पाए बल्कि रक्षा मंत्री की मदद लेनी पड़ी। जबकि इससे पहले हर सीन और डायलॉग का क्रेडिट उनके हिस्से ही आता रहा है। इस तरह कल वो पहली बार किसी दूसरे पर निर्भर दिखे।

वैसे किसी PM द्वारा आंतरिक और स्थानीय आयोजन में रक्षा मंत्री पर दयनीयता की हद तक की निर्भरता का यह वाहिद नज़ीर होगा।

पूरे भाषण में मोदी उस स्कूली बच्चे की तरह दिखे जिसने मिले होमवर्क को दिखाना न पड़े इसलिए टीचर से दूसरे लड़कों की शिकायत करके किसी तरह घंटा बज जाने का इंतज़ार कर रहा हो।

इस तरह आज़मगढ़ की रैली ने मोदी की कमज़ोरी को सामने ला दिया है। ये कमज़ोरी अब लगातार दिखेगी और उसी अनुपात में विपक्षी नेताओं पर टीका टिप्पणियों में अश्लीलता और हल्कापन भी दिखेगा। हां, मीडिया और भक्त इन्हें मास्टरस्ट्रोक बताते रहेंगे। लेकिन सच्चाई यही है कि ज़मीन अब खिसक चुकी है। भाजपा UP से 2019 में शायद आधा दर्जन सीट भी न जीत पाए। हां, अगर संघ मोदी को दीन दयाल उपाध्याय बना दे तब कुछ हो सकता है।