'मुंडी काट' खरबपति बाबा रामदेव के नाम प्रो. शम्सुल इस्लाम का खुला पत्र
आप के व्यक्तित्व में पिछले कुछ समय में जो ज़बरदस्त विकास हुआ है, उस के लिए मुझे आरम्भ में ही आप को बधाई देने दीजिए। आप सचमुच में अब मर्दानगी से भरपूर मर्द बन गए हैं ! एक समय था जब आप 6 जून 2011 के दिन दिल्ली पुलिस के ख़ौफ़ से डर कर राम लीला मैदान से अपने श्रद्धालुओं को पुलिस के रहमोकरम पर छोड़ महिलाओं के कपड़े पहन कर भागे थे। लेकिन अब जैसा कि, हरियाणा के रोहतक शहर से मीडिया की रपटों से ज़ाहिर होता है, आप निपुण बहादुर बन गए हैं। आप ने एक प्रकार से युद्धघोष करते हुए आरएसएस द्वारा रोहतक में बुलाई गई हिन्दुओं के बीच 'सद्भावना' पैदा करने के लिए मीटिंग में उन लाखों-लाख देश-वासियों की मुण्डिओं को काटने का इरादा ज़ाहिर किया जो 'भारत माता की जय' का नारा लगने से इंकार कर रहे हैं।
आप की अक़लमंदी और दूर दृष्टता की दाद देनी होगी कि एक मीटिंग जो हिन्दुओं की विभिन्न जातियों और समूहों के बीच सौहार्द, जो कि पिछली फरवरी के महीने तार-तार हो गया था, को आप ने, आरएसएस के प्रिय शगल, मुसलमानों को धमकाने वाले सम्मेलन में बदल दिया। रोहतक के 'सद्भावना' सम्मेलन का उद्देश्य था हिन्दुओं के बीच सौहार्द्र स्थापित करना, लेकिन आप ने इसे भी एक हिंदुत्व प्रचारक के तौर पर देश के सब से बड़े अल्प-संख्यक समुदाय के विरुद्ध ज़हर उगलने के मंच में बदल दिया। आप ने यह सब इस के बावजूद कर दिखाया कि फ़रवरी 2016 में हरियाणा में जो खून की होली खेली गयी, उससे मुसलमानों का दूर-दूर तक भी कोई सम्बन्ध नहीं था।
बाबा! आप और आप के मंच पर बैठे सहयोगी धन्य हैं कि उन्होंने रोहतक की बैठक का मुसलमान विरोधी चरित्र ज़रा सा भी हलका नहीं होने दिया। जब इंग्लैंड से आयीं प्रसिद्ध लेखिका और शतरंज खिलाड़ी सुश्री अनुराधा बेनीवाल (मूल रूप से हरयाणवी) ने अपने सम्बोधन में कहा कि "हम <उनका तात्पर्य हरियाणा के हिन्दुओं से था> ने अपने हमसायों, भाइयों और दोस्तों के संस्थान जलाए। अगर हमें मामले की तह तक जाना है और इस का हल निकलना है तो हमें खुद से, समाज से और सरकार से कुछ सवाल पूछने होंगे" तो उन्हें अपना भाषण बंद करने के लिए कहा गया, क्योंकि वे मुसलमान विरोधी 'मुद्दे' से भटक रही थीं।
बाबा! आप महान हैं, आसमान में हिंदुत्व के चमकते सितारे, जो मुसलमान विरोध की आग को ज़रा सा भी मद्धम नहीं होने देंगे, कहीं भी और कभी भी !
बाबा! आप से कुछ तुच्छ चीज़ों के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ, आशा है निराश नहीं करेंगे। आप की सुविधा के लिए मैंने यह मुद्दे क्रमबद्ध कर दिए हैं।
(1 ) मेहरबानी करके यह बताने का कष्ट करें कि जब फरवरी 2016 में लगातार 10 दिन तक हरियाणा जल रहा था, तब आप और आप के हमजोली आरएसएस वाले कहाँ थे? आप को यह जानकारी तो होगी ही कि इस दौरान अनगिनत महिलाओं को बे-हुरमत किया गया, 30 से ज़्यादा हरियाणवी अपनी जान गवां बैठे और लगभग 30 हज़ार करोड़ की संपत्ति तबाह कर दी गयी या लूट ली गयी। हज़ारों लोग बेरोज़गार, बेघर हो गए और बेहिसाब दुकानदार व कारखानेदार दरिद्र हो गए। इस मुश्किल और शर्मनाक समय में हरियाणा की आरएसएस/भाजपा सरकार ने पल्ला झाड़ लिया। भारतीय सेना जिस का काम देश की सरहदों की हिफाज़त करना है, उसे इस ज़रूरी काम को छोड़ कर हरियाणा में अपने ही लोगों पर गोली चलाने पर मजबूर होना पड़ा। उस समय आरएसएस और आप कहीं भी 'भारत माता की जय' का मंत्र जपते नहीं दिखे। बाबा आप और 'हिन्दुओं के विश्व के सब से बड़े संगठन' आरएसएस के 'देशभक्त' कहाँ थे तब? प्लीज, बताइए ना।
(2 ) आप ने आरएसएस द्वारा बुलाई सभा में उन लोगों को जो 'भारत माता की जय' का नारा का विरोध करते हैं को धमकाते हुए यह युद्ध-घोषणा भी की 'कोई भारत माता का अपमान करे, एक नहीं, हम हज़ारों-लाखों के शीश क़लम करने का सामर्थ रखते हैं"। यह माना जाना चाहिए कि इस नारे से आरएसएस की भी सहमति है।

बाबा! सच यह है कि आरएसएस को यह नारा हाल ही में याद आया है।
अँगरेज़ राज के खिलाफ़ आरएसएस और उसके सहयोगियों ने यह नारा कभी नहीं लगाया।
आरएसएस और इस की बिरादरी के लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के बजाए इस महान संग्राम से ग़द्दारी ही की। यह सच्चाई आरएसएस के विरोधियों द्वारा तो बताई ही जाती है, स्वयं आज़ादी से पहले के आरएसएस के दस्तावेज़ों में भरपूर तरीक़े में मौजूद है। आरएसएस के दूसरे मुखिया और सब से अहम विचारक, गुरु गोलवलकर जो 1942 में आरएसएस के मुखिया बने, ने ख़ुद स्वीकारा:

“नित्यकर्म में सदैव संलग्न रहने के विचार की आवश्यकता का और भी एक कारण है। समय-समय पर देश में उत्पन्न परिस्थिति के कारण मन में बहुत उथल-पुथल होती ही रहती है। सन् 1942 में ऐसी उथल-पुथल हुई थी। उसके पहले सन् 1930-31 में भी आंदोलन हुआ था। उस समय कई लोग डाक्टर जी के पास गये थे। इस ‘शिष्टमंडल’ ने डाक्टर जी से अनुरोध किया कि इस आंदोलन से स्वातंत्रय मिल जायेगा और संघ को पीछे नहीं रहना चाहिए। उस समय एक सज्जन ने जब डाक्टर जी से कहा कि वे जेल जाने के लिए तैयार हैं, तो डॅाक्टर जी ने कहा-‘ज़रूर जाओ। लेकिन पीछे आपके परिवार को कौन चलायेगा?’ उस सज्जन ने बताया‘दो साल तक केवल परिवार चलाने के लिए ही नहीं तो आवश्यकता अनुसार जुर्माना भरने की भी पर्याप्त व्यवस्था उन्होंने कर रखी है।’ तो डॅाक्टर जी ने कहा-‘आपने पूरी व्यवस्था कर रखी है तो अब दो साल के लिए संघ का ही कार्य करने के लिए निकलो’। घर जाने के बाद वह सज्जन न जेल गये न संघ का कार्य करने के लिए बाहर निकले।“

असहयोग आंदोलन (1920-21) व भारत छोड़ो आंदोलन (1942) महान भारतीय स्वतंत्र संग्राम के दो मील के पत्थर माने जाते हैं। इन आंदोलनों में लाखों देशभक्त भारतीयों ने आज़ादी के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। लेकिन आज़ादी के इन प्रतीकों के बारे में गोलवलकर का क्या कहना था, बाबा उसे भी जान लें।
इस महान हिन्दुत्ववादी ने फ़रमाया:

"तो संघर्ष के बुरे परिणाम हुआ ही करते हैं। 1920-21, के आंदोलन के बाद लड़कों ने उद्दण्ड होना प्रारम्भ किया, यह नेताओं पर कीचड़ उछलने का प्रयास नहीं है। परन्तु संघर्ष के बाद उत्पन्न होने वाले ये अनिवार्य परिणाम हैं। बात इतनी ही है कि उन परिणामों को क़ाबू में रखने के ठीक व्यवस्था नहीं कर पाए। 1942 के बाद तो क़ानून का विचार करने की ही आवश्यकता नहीं, प्रायः लोग सोचने लगे"

इस प्रकार गोलवलकर यह चाहते थे कि देश के लोग पतित अँग्रेज़ राज के दमनकारी और तानाशाही क़ानूनों को मानें।
आरएसएस 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में कितनी घटिया सोच रखता था, उस का अंदाज़ा गोलवलकर के इस बयान से लगाया जा सकता है:

“सन् 1942 में भी अनेकों के मन में तीव्र आंदोलन था। उस समय भी संघ का नित्य कार्य चलता रहा। प्रत्यक्ष रूपसे संघ ने कुछ न करने का संकल्प लिया। परन्तु संघ के स्वयंसेवकों के मन में उथल-पुथल चल ही रही थी। संघ यह अकर्मण्य लोगों की संस्था है, इनकी बातों में कुछ अर्थ नहीं ऐसा केवल बाहर के लोगों ने ही नहीं, कई अपने स्वयंसेवकों ने भी कहा। वे बड़े रुष्ट भी हुए।“

इस तरह स्वयं गुरू जी से हमें यह तो पता लग जाता है कि आरएसएस ने भारत छोड़ो आंदोलन के पक्ष में परोक्ष रूप से किसी भी तरह की हिस्सेदारी नहीं की, लेकिन आरएसएस के किसी प्रकाशन या दस्तावेज या स्वयं गुरू गोलवरकर के किसी वक्तव्य से आज तक यह पता नहीं लग पाया है कि आरएसएस ने अप्रत्यक्ष रूपसे भारत छोड़ो आंदोलन में किसी तरह की हिस्सेदारी की थी।
आरएसएस/भाजपा के राज पुरोहित बाबा, आप के गुरू गोलवरकर ने स्वयं भी कभी यह दावा नहीं किया कि आरएसएस अंग्रेज विरोधी था। अंग्रेज शासकों के चले जाने के बहुत बाद गोलवरकर ने 1960 में इंदौर में अपने एक भाषण में कहा,

"हमें स्मरण होगा कि हमने प्रतिज्ञामें धर्म और संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र की स्वतंत्रता का उल्लेख किया है। उसमें अंग्रेजों के जाने न जाने का उल्लेख नहीं है।"

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की खिल्ली उड़ाने में गोलवलकर अकेले नहीं थे। उनके गुरु और आरएसएस के पहले प्रमुख, हेडगेवार के भी बिलकुल ऐसे ही विचार थे। हेडगेवार की आरएसएस द्वारा छापी गयी जीवनी में बहुत स्पष्ट रूप से बताया गया है कि,

"संघ स्थापना के बाद डॉ. साहब अपने भाषणों में हिन्दू संगठन के संबंध में ही बोला करते थे। सरकार पर प्रत्यक्ष टीका नहीं के बराबर रहा करती थी।"

खरबपति बाबा! आप अपने सम्बोधनों में कई बार भारतीय आज़ादी के महान शहीदों जैसे कि भगत सिंह और रानी लक्ष्मी बाई का ज़िक्र करते हैं। लेकिन आपके हमजोली आरएसएस के विचारक शहीदी की समस्त परंपरा को रद्द करते हैं। गोलवलकर ने तो एक अध्याय ही लिख डाला है जिस का शीर्षक ही है 'बलिदानी महान परन्तु आदर्श नहीं', जिस में पूरी शहीदी परंपरा का मज़ाक़ उड़ाया गया है। गुरूजी के अनुसार:

“निःसंदेह ऐसे व्यक्ति जो अपने आप को बलिदान कर देते हैं श्रेष्ठ व्यक्ति हैं और उनका जीवन दर्शन प्रमुखतः पौरुषपूर्ण है। वे सर्वसाधारण व्यक्तियों से, जो कि चुपचाप भाग्य के आगे समर्पण कर देते हैं और भयभीत और अकर्मण्य बने रहते हैं, बहुत ऊंचे हैं। फिर भी हमने ऐसे व्यक्तियों को समाज के सामने आदर्श के रूप में नहीं रखा है। हमने बलिदान को महानता का सर्वोच्च बिन्दु, जिसकी मनुष्य आकांक्षा करें, नहीं माना है। क्योंकि, अंततः वे अपना उदे्श्य प्राप्त करने में असफल हुए और असफलता का अर्थ है कि उनमें कोई गंभीर त्रुटि थी।“

बाबा, प्लीज बताएं आप किस ओर हैं ?
रामदेव बाबा! यह भारत का सौभाग्य है कि आप उस समय नहीं थे जब गांधीजी, जवाहरलाल नेहरु और सरदार पटेल जीवित थे। वे 'भारत माता की जय' का नारा न लगाकर 'जय हिन्द' का प्रयोग अपनी चिट्ठी-पत्री, बात-चीत और भाषणों में करते थे। अगर आप उस समय होते तो उनकी जान को खतरा लाज़मी था। आज़ादी के बाद देश के हर राष्ट्र-पति और प्रधान मंत्री जब भी देश के लोगों को सम्बोधित करते हैं तो अंतिम शब्द "जय हिन्द' ही होते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी भी प्रधान मंत्री रहते हुए लाल क़िले से अपने भाषण की समाप्ति 'जय हिन्द' से ही करते थे। यह सब भी खुशनसीब रहे हैं कि तब तक आप जैसे बाबा अवतारित नहीं हुए थे।
बाबा, में जानता हूँ कि आप हिंदुत्व और पतंजलि की प्रोडक्ट्स को बेचने में बहुत व्यस्त हैं, आप का ज़्यादा समय ना लेकर मैं आख़री जिज्ञासा आप के सामने रखता हूँ। प्लीज़, देश को यह बताने का कष्ट करें कि अंग्रेजी राज में कब-कब और कहाँ-कहाँ हिन्दुत्ववादी संगठनों, जैसे कि आरएसएस और हिन्दू महासभा ने, 'भारत माता की जय' का नारा बुलंद किया था।
चलिए 'भारत माता की जय' की बात छोड़िए अंग्रेज़ों के खिलाफ कोई और नारा ही लगाया हो तो साझा करें। यह भी बताने का कष्ट करें कि आरएसएस के दो मुखिया, हेडगेवार और गोलवलकर (या आरएसएस के कोई दूसरे नेता) कब-कब अँगरेज़ विरोधी नारे लगते हुए सरकारी दमन का शिकार हुए थे।
मुझे आप के जवाब का इंतज़ार रहेगा।
शम्सुल इस्लाम
06-04 -2016
References:

http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/if-no-law-would-have-cut-the-heads-of-those-who-dont-say-bharat-mata-ki-jai-ramdev
http://www.tribuneindia.com/news/nation/chess-champ-steals-sadbhavna-show/217543.html
MS Golwalkar, Shri Guruji Samagar Darshan, (hereafter referred as SGSD) volume IV, Bhartiya Vichar Sadhna, pp. 39-40.
Ibid, p. 41.
Ibid, p. 40.
SGSD, volume IV, p. 2.
CP Bhishikar, Sanghavariksh Ke Beej: Dr. Keshavrao Hedgewar, Suruchi, 1994 p. 24.
MS Golwalkar, Bunch of Thoughts, Sahitya Sindhu, Bangalore, 1996, p. 283.