मुकुल रॉय को सीबीआई क्लीन चिट का मतलब
कोलकाता। अच्छे दिनों की सुनामी आयी है और दिन इतने अच्छे निकल रहे हैं कि सेहत के लिए बेहद खतरनाक हो रहे हैं। जिनके अच्छे दिन हैं, उनकी दसों उंगलियां घी में और सर भी कड़ाही में। बाकी आम जनता की हालत पतली है।
जीडीपी का एक फीसद जो आम जनता पर भारत में विकसित देशों के औसत दस फीसद के मुकाबले खर्च होता रहा है, उसमें भी कटौती है और बीमा में एफडीआई की वजह से दोगुणी तिगुणी प्रीमियम पर सेहत बीमा भरोसे हैं।
अच्छे दिन भारतीय जनगण के लिए भेहद भारी साबित होने लगे हैं।
ईमानदारी और शुचिता का फहराता झंडा अब शोकमुद्रा में है और देश में ही कालाधन सफेद करने के दुबई, हांगकांग और मारीशस बनकर तैयार है।
भारतीय रिजर्व बैंक हाशिये पर है और अर्थव्यवस्था सेबी के हवाले हैं।
गौर कीजिये कि चिटफंड घोटालों में देश भर की जनता को लूटने वाली हजारों हजार फर्जी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सेबी के हाथ खींच तान कर लंबे हुए बहुत अरसा बीता।
सीबीआई को पोंजी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पुलिसिया हक हकूक मिले शारदा फर्जीवाड़े की जांच सीबीआई के हवाले हो जाने से काफी पहले।
इस अवधि में सीबीआई की सक्रियता की तो सुर्खियां मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सासदों, आदि आदि अति महत्वपूर्ण लोगों को जब तब कटघरे में खड़ा करती रही हैं, लेकिन सेबी ने अब तक कहां क्या उखाडा़ और कहां कहां कोंदो बोया, इसकी कोई खबर नहीं हुई।
बहरहाल बंग विजय अभियान और संसदीय सहमति की रणनीति साधने में क्षत्रपों को नकेल डालने की रणनीति बेहद कामयाब रही है।
हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या।
बजट सत्र में क्षत्रपों की कथनी और करनी हमारे कहे लिखे मुताबिक ही मोदी और संघ परिवार के संकट टालने के निमित्त सीमाबद्ध हो गयी।
इसी दरम्यान सीबीआई ने जिन हस्तियों को गिरप्तार किया था, वे एक एक करके पर्याप्त सबूत के बिना जेल से छूटते चले जा रहे हैं।
देवयानी और सुदीप्तो के अलावा जेल में अब भी जो वसंत बहार किये हुए हैं, उनमें खास सांसद कुणाल घोष और मंत्री मदन मित्र के अलावा कोई नहीं है।
दीदी मोदी धार्मिक ध्रुवीकरण का ताजा स्टेटस यह है कि कोलकाता नगरनिगम और दूसरी पालिकाओं के चुनाव में वाम वापसी का अंदेशा दूर-दूर तक नहीं है और दसों दिशाओं में खिलखिला रहे कमल के बावजूद दीदी अपराजेय हैं।
संघ परिवार ने दीदी को अपराजेय जो बनाया सो बनाया, बंगाल का केसरिया कायाकल्प कर दिया। यह बंग विजय से कम बड़ी उपलब्धि नहीं है संघ परिवार के लिए कि वह बंगाल में निर्णायक राजनीतिक शक्ति बन गयी है, जबकि वह वाम जमाने में कहीं शाखा लगाने की हालत में नही रहा है।
हम पहले ही लिख चुके हैं कि सीबीआई शारदा फर्जीवाड़े मामले में अब एकदम निष्क्रिय है और संघ परिवार ने जो शारदा फर्जीवाड़े के मामले में लगातार पल छिनपलछिन दीदी और उनके परिजनों को कटघरे में खड़ा कर रहा था, वहां शारदा फर्जीवाड़े मामले में सन्नाटा का रामलीला ग्राउंड बन गया है और पुरुषोत्तम राम मुस्करा रहे हैं और खुल्ला छुट्टे बजरंगियों का खेल तमाशा देखने में मगन हैं।
इसी बीच, ईडी जो शारदा मामले में कुछ उखाड़ न सकी, अचानक अपने रंग में है। बंगाल में फिल्मों, खेलों और दुर्गोत्सव तक में बेशुमार निवेश करनेवाली चिटफंड कंपनी रोजवैली के विदेशी कारों के काफिला के मालिक गौतम कुंडु को गिरफ्तार कर लिया गया।
ईडी कह रहा है औरसीबीआई जो तमाम चिटफंड कंपनियों की जांच की जिम्मेदार है और सेबी जिसे इन कंपनियों के खिलाफ पुलिस की तरह कार्रवाई करने के अधिकार मिले हुए हैं, दोनों खामोश हैं।
ईडी के मुताबिक, रोजवैली ने शारदा से तिनगुणा ज्यादा पैसा जनता की जेब से निकाला है।
खास बात यह है कि इस बार कटघरे में देश के सबसे ईमानदार और सबसे गरीब मुख्यमंत्री त्रिपुरा के माणिक सरकार हैं जबकि इस बीच मोदी से मुलाकात के बाद दीदी अचानक बरी हो गयी है।
खास बात यह है कि शारदा मामले में सीबीआई के दोनों चार्ज शीट में इस मामले में अब तक गिरफ्तार तमाम लोगों के साक्ष्य मुताबिक जो मुख्य अभियुक्त हैं, पूर्व रेलमंत्री मुकुल रॉय राय, उन्हें सीधे क्लीनचिट दे दिया गया है और उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं है।
उलट इसके एक चार्ज शीट के मुताबिक तो पूर्व रेल मंत्री मुकुल रॉय राय गवाह बनाये गये हैं।
जाहिर सी बात है कि मुकुल रॉय को सीबीआई क्लीन चिट का मामला चिटफंड जांच सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा है।
जाहिर सी बात है कि संघ परिवार ने बखूबी चिटफंड प्रकरण को संसदीय सहमति का अचूक हथियार बना लिया है।
जाहिर सी बात है कि मुकुल रॉय को सीबीआई क्लीन चिट का मतलब है चिटफंड के तमाम मामलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है और जबभी संसदीय सहमति के लिए उनके इस्तेमाल से क्षत्रपों को नकेल डालने की जरुरत होगी, उन मामलों को ठंडे बस्ते से फिर निकाला जायेगा।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास