डाउ कैमिकल्स के वकील अब समूचे देश को भोपाल गैस त्रासदी में बदलने लगे!
मिथाइल आइसोसाइनाइट जैसा निःशब्द कत्लेआम का इंतजाम यह बजट!
भोपाल गैस त्रासदी के वक्त भी लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि मौत कितनी खामोश होती है।
#UnionBudget2016 पर पलाश विश्वास की समीक्षा
मुश्किल यह है कि डाइरेक्ट टैक्स कोड बजट में लागू करने के बाद प्रणव मुखर्जी के बजट को हमने पोटाशियम सायोनाइड कहकर बजट प्रक्रिया पर एक किताब इसी शीर्षक से लिखी थी, जो बहुत पढ़ी भी गयी। इसके अलावा देश भर में बजट विश्लेषण करते हुए हमने बजट को पोटाशियम सायोनाइड ही लिखा था।
डाउ कैमिकल्स के वकील जो अब समूचे देश को भोपाल गैस त्रासदी में बदल रहे हैं, तो इस बजट को मिथाइल आइसोसाइनाइट या मिक कहना चाहिए।
इसमें भी मुश्किल यह है कि आम जनता मिक से समझेगी नहीं। बेहतर है कि इसे हम मुक्त बाजार का जहरीला बजट बुलेट कहें। ऐसा बुलेट जो देशद्रोही हो या देश प्रेमी, हर भारतीय नागरिक को खेत बना देगा बिना भेदभाव का।
इसे समरसता भी कह सकते हैं।
इस बजट में गरीब, गांव और किसान की बात कहकर भोपाल गैस त्रासदी की पुनरावृत्ति देश भर में करने की तैयारी है।
टीवी पर न जाने कैसे विशेषज्ञ, विश्लेषक और अर्थशास्त्री मोदी को अग्निपरीक्षा में सफल बताते हुए इस अमानवीय बजट को अभूतपूर्व बता रहे हैं, जिससे कारपोरेट इंडिया की भी हवा खराब है।
अर्थव्यवस्था कोई जुमले का शोरबा है नहीं कि जुमले उछालने से बुलेट ट्रेन की तरह रफ्तार पकड़ लेगी अर्थव्यवस्था जबकि बुनियादी समस्याएं जस की तस हैं।
जिन आंकड़ों के भरोसे धड़धड़ नंबर बांटे जा रहे हैं, वे उतने ही फर्जी हैं, जितने कि अच्छे दिनों के ख्वाबी पुलाव। इन आंकड़ों का लब्वोलुआब यह है कि बजट में अमीरों पर कर का बोझ डाला गया है। एक करोड़ से ज्यादा आय वाले लोगों पर सरचार्ज 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत किया गया है। डीजल कारें, ब्रैंडेड कपड़े और गहने मंहगे हो जाएंगे।
अमीरों पर कितना बोझ और उन्हें कितनी और कैसी राहत इस पर कोई चर्चा हो नहीं रही है। किसानों के विकास के लिए 35984 करोड़ रुपए के मुकाबले कर माफी, कर छूट, टैक्स होली डे और मोनोपॉली, पीपीपी मॉडल के तहत कितने लाख-लाख करोड़ का बंदरबांट हो रहा है, इसका लेखा जोखा कोई नहीं है।
अमीरों की खाल खींचने का नाटक कुछ ऐसा हैः
छोटी कारें और अन्य वाहन अब महंगे हो जाएंगे। सबसे अधिक बढ़ोतरी डीजल वाहनों पर होगी।
गौर करें कि सबसे अधिक बढ़ोतरी डीजल वाहनों पर होगी।
वित्त मंत्री ने पेट्रोल, एलपीजी और सीएनजी से चलने वाली छोटी कारों पर एक प्रतिशत का उपकर लगाने का प्रस्ताव किया है। इसके अलावा कुछ निश्चित क्षमता की डीजल कारों पर 2.5 प्रतिशत तथा उच्च क्षमता वाले वाहनों व एसयूवी पर चार प्रतिशत उपकर लगाने का प्रस्ताव किया गया है।
इसके अलावा जेटली ने 10 लाख रुपये से अधिक कीमत की लग्जरी कारों तथा दो लाख रुपये से अधिक की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद पर एक प्रतिशत की दर से स्रोत पर कर लगाने का प्रस्ताव किया है।
तो दावा यह है कि गरीबों के लिए वित्त मंत्री ने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने की घोषणा की है।
इस बजट में जितना दिखाया गया है, उससे बहुत ज्यादा छुपाया गया है। बजट में चार-चार एनेक्सर हैं, जिसका खुलासा आम जनता को कभी होने की उम्मीद नहीं है। पढ़े लिखे लोग भी बजट घोषणाओं से इतने ज्यादा उल्लास में हैं, जितना वे हिंदुत्व के जयघोष से हुआ करते हैं या मंकी बातों से जिन्हें वैदिकी ज्ञान मिलता रहता है और ज्ञानविज्ञान से इन देशप्रेमियों को कुछ लेना देना नहीं होता।
प्रणव मुखर्जी ने कर प्रणाली को सुधारने का जो बीड़ा उठाया, उसका आशय अभी लोग वैसे ही नहीं समझते हैं, जैसे विनिवेश, विनियमन और विनियंत्रण की ग्रीक त्रासदी समझ से बाहर है।
गांवों की तरफ तबाही का अश्वमेध इस बजय बुलेट भव्य राममंदिर अभियान है। भोपाल गैस त्रासदी के वक्त भी लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि मौत कितनी खामोश होती है। रुपरसगंध हीन निःशब्द मिथाइल आइसोसाइनाइट की तरह देश भर में आम लोगों के लिए यह हसीन मौत का दस्तक है।
मसलन इस बजट के मुताबिक प्रत्यक्ष कर प्रस्तावों में 1060 करोड़ की कमी होगी जबकि अप्रत्यक्ष करों में 20, 600 करोड़ का इजाफा हो जायेगा।
सीधा मतलब यह है कि राजस्व वसूली आम लोगों से होगी अप्रत्यक्ष कर सुनामी के मार्फत और कर सुधारों के तहत टैक्स चोरों को टैक्स होलीडे का चाकचौबंद इंतजाम।
मजे की बात है कि अप्रत्यक्ष करों में यह भारी इजाफा सेस की बदौलत होना है और यह वसूली आम जनता से होगी।
सबसे पहले यह समझ लें कि देश की अर्थव्यवस्था मेहनतकश बाजुओं के दम है। औद्योगिक या कृषि उत्पादन में वृद्धि का कोई नक्शा नहीं है, गांवों और किसानों के नाम सारा प्रसाद कारपोरेट के खाते में जा रहा है। निर्यात क्षेत्र में लगातर गिरावट है। सेवाक्षेत्र में ठहरा व बना हुआ है जो नवउदारवाद की सर्वोच्च प्राथमिकता है और जो या तो एफडीआई या फिर अमेरिका से होने वाले आउटसोर्सिंग पर निर्भर है।
हालत कितनी खराब होगी, इसका अंदेशा अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव परिदृश्य है, जहां जीत के क्रमशः प्रबल दावेदार बन रहे रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने मुसलमानों के लिए अमेरिका बंद के ऐलान के बाद भारत के लिए रोजगार बंद नारा दिया हुआ है।
बजट अनुदान के जो आंकड़े हैं, वे राजकोष की माली हालत और राजस्व प्रबंधन के दायरे में नहीं है। ज्यादातर रकम बाजार से बांड के जरिये वसूली जानी है। बांड चल गये तो अनुदान देने की हालत बनेगी। फिर ऐसे तमाम अनुदान में राज्यसरकारों की भागेदारी अनिवार्य है। उनका हिस्सा नहीं मिला तो घोषित प्रोजेक्ट भैंस गई पानी जैसा है।
अर्थव्यवस्था के विकास में कारपोरेट इंडिया का योगदान पंद्रह फीसद भी नहीं है। लेकिन सारी रियायतें उन्हीं के लिए। इस पर मजा यह कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था जमींदोज हो जाने के बावजूद राजकोषीय घाटे को तीन फीसद तक बनाये रखने के बहाने आम जनता पर अप्रत्यक्ष करों का पहाड़ जैसा बोझ, जिससे हर सेवा, हर चीज मंहगी हो जानी है।
मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा उम्मीद आय कर स्लैब में बदलाव को लेकर थी लेकिन वित्त मंत्री ने आय कर स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया है बल्कि सर्विस टैक्स में 0.5 फीसदी का इजाफा कर जोर का झटका दिया है। बजट में सर्विस टैक्स 14.5 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी कर दिया गया है। यानी सर्विस टैक्स से जुड़ी सभी सेवाएं महंगी हो जाएंगी। सर्विस टैक्स में 0.5 फीसदी का कृषि कल्याण कर लगाया गया है।
मजे की बात यह है कि यह स्वच्छता अभियान पूरी तौर पर खैरात बांटने जैसा आयोजन है, जिसके तहत पैसा कहां जाता है, इसका कोई हिसाब लेकिन वित्त मंत्रालय के पास होता नहीं है।
इसी तरह भुलावे के मुद्दे बहुतेरे हैं।
मसलनः
कम कीमत पर जेनेरिक दवा उपलब्ध कराने के लिए देश भर में 2016-17 में 3, 000 जन औषधि स्टोर खोले जाएंगे।
गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों के इलाज के लिए सरकार एक नई स्वास्थ्य सुरक्षा योजना शुरू करेगी। सरकार ने उर्वरक सब्सिडी भी अब सीधे किसानों के बैंक खातों में पहुंचाने की पहल की घोषणा की है।
सारे नंबर इन्ही मुद्दों पर लिये दिये जा रहे हैं, जिन पर अमल कितना हो पायेगा और रुपया कहां से कहां पहुंचेगा, कुछ बताया नहीं जा सकता।
सर्विस टैक्स बढ़ने का सीधा असर आम आदमी के जन-जीवन पर होगा। सर्विस टैक्स बढ़ने से हर सेवा महंगी हो जाएगी। मसलन हवाई यात्रा, एटीएम से पैसे निकालना, रेस्तरां में खाना, फिल्म देखना, मोबाइल बिल, जिम, ब्यूटी पार्लर जाना और रेल टिकट भी महंगा होगा। महंगाई की मार बीमा पॉलिसी पर भी पड़ेगी।
कोयला और बिजली के दाम बढ़ते जाने से मंहगाई बेइंतहा होने का अंदेशा है। खेती की लागत मिल नहीं रही। मनसैंटो और ठेका खेती के हरित क्रांति दूसरे चरण के बाद अब गांव के लोग बुनियादी जरुरतों औरसेवाओं को कैसे हासिल करेंगे इस थोपी हुई मंहगाई में, इसकी फिक्र वातानुकूलित बुद्धिजीवियों को नहीं है।
2008 की मंदी के बाद उद्योग जगत को साढ़े तीन लाख करोड़ की राहत दी गयी थी।
अब रेट्रो टैक्स लागून न होने के ऐलान के बाद यह राहत सालाना तीन पांच लाख करोड़ के मुकाबले कुल कितनी बैठेगी, इसका हिसाब डाउ कैमिकल्स के वकील ने नहीं दी है।
बहरहाल बैंकरप्ट कंपनियों को बाजार से निकलने के लिए पलायन का सुरक्षित रास्ता दिया जा रहा है ताकि वे बाजार से पैसा निकालकर किसी को भी भुगतान किये बिना विदेशी निवेशकों की तरह खुली लूट के लिए आजाद हो जायें।
चिटफंड कंपनियों पर अंकुश लगाने के लिए नया कानून बनाने के वायदे के साथ-साथ, सेबी के कानून बदलने के भरोसे के साथ साथ देस की पूरी अर्थव्यवस्था को मुकम्मल चिटफंड का कातिल कैसिनो बनाने का यह चाकचौबंद इंतजाम है।
दूसरी तरफ, विदेशी व्यापार घाटा घटने का नाम ले नहीं रहा है। मुद्रास्फीति शून्य के दावे के बावजूद मंहगाई सुरसामुखी है और रुपये का मूल्य लगातार गिरता ही जा रहा है। अब तो लगता है कि फर्जी विकास दर की तरह वित्तीय घाटे का आंकड़ा भी फर्जी है।
बलिहारी जुमले बाजी की। यह तो भारत के आत्महत्या करते किसानों के चरणों में सर काटकर अर्पण करने का संकल्प है। जबकि गरीबों को मध्यवर्ग से अलग खांचे में डालकर उन्हें हर तरह के कर रहात और सब्सिडी से वंचित करने का प्रावधान है और इसके लिए बाकायदा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करते हुए बुनियादी जरुरतों और सेवाओं को गैरकानूनी आधार कार्ड से जोड़ दिया वित्तमंत्री ने, जिसका राजनीतिक विरोध होने की संभावना शून्य है। कृषि संकट का हल बुनियादी ढांचे के नाम हाईवे की बेदखली और उसके जरिये प्रोमोटर बिल्डर राज है।
महज पांच सौ कोरड़ के आबंटन से बेरोजगार युवा हाथों को रोजगार के ख्वाब उतने ही अच्छे दिन हैं, जितने सौ फीसद विनिर्माण एफडीआई के मार्फत भारत निर्माण का मिथकीय सच।
कृषि संकट का आलम जल जंगल जमीन से बेदखली का अनंत सिलसिला है। इंफास्ट्रक्चटर के नाम देशी विदेशी पूंजी के लिए खुल्ला मुनाफावसूली का प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज और यही है गांवों के विकास का असली राज। भारत निर्माण के हवा हवाई दावों के बावजूद विनिर्माण की दिशा हाईवे तक सीमाबद्ध है।

बेदखल खेतों का मुआवजा अगर बाजार की दरों के मुताबिकमिल जाये, तभी मंकी बातों के मुताबिक किसानों की आय औचक दोगुणी हो सकती है और कोई दूसरी सूरत नहीं है।
गरीबों से मध्यवर्ग को अलग करने का तात्कालिक नतीजा यह हुआ है कि आयकर में नौकरी पेशा लोगों के लिए पांच लाख तक की आय में महज तीन हजार की छूट है। जिस मध्यमवर्ग के दम पर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और एनडीए सत्ता में आया, उसी मिडिल क्लास की उम्मीदों पर सरकार ने पानी फेर दिया है। आम बजट 2016-17 में मध्यम वर्ग को मामूली राहत दी गई है उसके बदले में उस पर महंगाई का बोझ डाल दिया गया है।
रस्मी तौर पर महिलाओं को जो विशेष छूट दी जाती रही है, वह भी सिरे से गायब है।
मल्टी ब्रांड खुदरा बाजार में सौ फीसदी एफडीआई से कारोबारी शहरी और कस्बाई लोगों की शामत अलग आने वाली है।
दूसरी तरफ सब कुछ ओएलएक्स पर बेच देने की हड़बड़ी में विनिवेश लक्ष्य करीब 56 हजार करोड़ का बताया जा रहा है।
कर विवाद निपटारे के बहाने, करों को सरल बनाने के बहाने पहले ही कारपोरेट और वेल्थ टैक्स में भारी रियायतें दी जा चुकी हैं।
बड़ी कंपनियों को दी गयी राहतों को छुपाने के लिए कुछ चिप्पियां जरुर लगायी गयी हैं।
गौरतलब है कि गांवों, किसानों और गरीबों की भलाई के लिए तीन साल तक नई स्ट्राट अप कंपनियों को टैक्स माफी है और यह रकम कुल कितनी होगी, यानी कितने लाख करोड़, इसका खुलासा नहीं हुआ है।
इसी तरह बनियों की पार्टी का बिजनेस फ्रेंडली गवर्नेंस का चरमोत्कर्ष मल्टी ब्रांड खुदरा बाजार में सौ फीसदी एफडीआई जो है सो है, ई कामर्स के लिए दी जा रही इफरात छूट का भी कोई आंकड़ा नहीं है।
इस कारपोरेट कार्निवाल के मुकाबले अब कृषि पर सरकारी घोषणाओं का मतलभ भी समझ लें।
टैक्स फोरगान के आंकड़े अब होंगे नहीं और आम जनता को पता ही नहीं चलेगा कि उनकी गरदन चाक करके उनकी जेबों से पैसे निकालकर कुल कितने लाख करोड़ का उपहार पूंजी के हवाले है।
दलितों और अंबेडकर के नाम मगरमच्छ आंसू के मतलब रोहित वेमुला का संस्थागत हत्या के बाद भी जो लोग समझ नहीं रहे हैं, वे अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों के खाते में दिये जाने वाले अनुदान में कटौती का हिसाब नहीं मांगेंगे, जाहिर है।
मनुस्मृति राजकाज में भारत में ज्ञान विज्ञान के सारे दरवाजे बंद हैं और वैदिकी आयुर्वेदिक विशुध रामराज्य में उच्च शिक्षा और शोध का कोई मतलब भी नहीं है क्योंकि डिजिटल इंडिया में कारीगरी दक्षता की बदौलत बारहवीं पास करने के बाद बिना श्रम कानून, ठेके पर बंधुआ मजदूरी का रोजगार सृजन सिलसिला है। इसलिए उच्चशिक्षा के लिए लिए हजारेक करोड़ का प्रावधान भी जियादा है। महिलाओं और बच्चों के लिए मनुस्मृति राज में अलग से सोचने की जरुरत ही नहीं है। तो सामाजिक योजनाओं का हाल न ही पूछें।