मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के सनातनी-ब्राहमण तेवर!

बहादुर शाह ज़फर की 243वी जयंती पर विशेष

अमरेश मिश्रा

बुतखानों में जब गया मैं खेंचकर कश्क (टीका) ज़फर

बोल उठा वो बुत ब्राहमण ये नहीं तो कौन है!

कश्क (टीका) माथे पा है, ज़ुन्नार (जनेऊ) गले में है ज़फर

बन गये इश्क़ में उस बुत के ब्राहमण सचमुच!

चौंकिये मत!

यह दोनों शेर आख़री मुग़ल बादशाह, गंगा-जमुनी तहज़ीब की जीती-जागती मिसाल, और पक्के सनातनी, बहादुर शाह ज़फर की कलम से निकले हैं!।

देश में चल रही उथल-पुथल के बीच, यह जानना ज़रूरी है कि आज, यानी 24 अक्टूबर 2018 को, बहादुर शाह ज़फर की 243वी जयंती है।

ज़फर सिर्फ मुग़ल बादशाह ही नहीं, वर्ष 1857 से शुरू हुई भारत की प्रथम जंग-ए-आज़ादी के नेता, यानी आधुनिक भारत के पहले नायक, भी थे।

तीसरे मुग़ल बादशाह अकबर का ब्याह आमेर (आज का जयपुर), राजस्थान की राजपूत-सनातनी-हिन्दू राजकुमारी से हुआ था।

तब से यह परम्परा पड़ गई कि मुग़ल बादशाहों की सनातनी-हिन्दू रानियों से उत्पन्न पुत्र ही भारत पर राज करेगा।

अकबर के पुत्र जहांगीर की मां सनातनी-हिन्दू थीं। जहांगीर में सनातनी हिन्दू रक्त था।

यही बात शाहजहां, औरंगज़ेब और अन्य सभी मुग़ल बादशाहों पर लागू होती है।

बहादुर शाह ज़फर राजपूत मां की संतान थे। पक्के सनातनी थे। ब्राहमणों का सिर्फ सम्मान नहीं करते थे; बल्कि, जैसा ऊपर लिखे शेरों से ज़ाहिर है, खुद भी ब्राहमण बन जाते थे!

यही कारण था, कि अंग्रेजों की फूट डालो-राज करो नीति को धता बताते हुए, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल आर्मी के 1, 30,000 सिपाही, जिसमें 40% अवध, पूर्वांचल और बिहार के कान्यकुब्ज-सर्जूपारी ब्राहमण एवं भूमिहार थे, मंगल पांडे के अमर बलिदान के बाद, मई 1857 मे अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह कर, दिल्ली पहुंचे, और बहादुर शाह ज़फर को गद्दी पर बैठाया।

मई से सितम्बर 1857 तक, दिल्ली में सनातन धर्म और शाह वलीउल्लाह के क्रांतिकारी गठजोड़ से पैदा हुई, आज़ाद भारत की पहली किसान सत्ता स्थापित हुई। 19स्वीं सदी का अमेरिका, यानी उस समय का ब्रिटिश साम्राज्य, उखड़ गया। पूरी दुनिया में सनसनी फैल गयी।

जब तक बहादुर शाह ज़फर की सत्ता रही, अंग्रेज़ों द्वारा शुरू की गयी गो-कशी पर, ज़फर के लिखित आदेश पर, पूर्णत: बैन लग गया था।

संयोग देखिये: दो हफ्ते बाद, 7 नवम्बर को, बहादुर शाह ज़फर की 156वीं पुण्यतिथि है!

हम इन दो हफ्तों में, ऐसे-ऐसे खुलासे करेंगे कि भारत में नई सोच, नई राजनीति पैदा होगी!!!

नीचे दिया गया दुर्लभ चित्र रंगून, बर्मा का है, जहां ज़फर अंग्रेज़ों द्वारा क़ैद किये गये थे-यहीं उनकी 1862 में मृत्यु हो गयी!

(अमरेश मिश्रा, लेखक वरिष्ठ पत्रकार, इतिहासकार व फिल्म लेखक हैं)

कृपया हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें