मुहब्बत के खिलाफ कोई मजहब हो तो बताइये
इसी सेक्सी सेनसेक्स के भरोसे हरिकथा विकास अनंत में स्वाहा जिंदड़ी ओ जहां!
हम तो उल्लू के पट्ठे, म्लेच्छ, अछूत और आप जनाब हिंदू राष्ट्र के सिपाही, जरा उस महजबीं के रोशन चेहरे का ख्याल भी करें, जिनके खातिक चांद मंगल शनि तक सीढ़ियां बनाने कबंध हो गये आप!
ग्रीस के असर से गिरा चीन का बाजार, सेंसेक्स हुआ धड़ाम!
कल तक वे दावे करते रहे कि ग्रीस का भारत पर कोई असर होगा नहीं और हम चीखते रहें कि महामंदी का आलम है भइया और वे जो हुक्मरान हैं, देश बेचो बगुलाब्रिगेड है, वो हमारा सबकुछ बाजार में झोंके हैं।
अब लीजियेः
चीन के शेयर बाजारों में बुधवार सुबह आई भारी बिकवाली के चलते ट्रेडिंग रोक दी गई है। यह कदम दिन के कारोबार के दौरान शंघाई बाजार में 8 फीसदी से ज्यादा गिरावट आने के बाद उठाया गया। शेयर बाजार के जानकारों का मानना है कि यह गिरावट चीन के बाजारों पर ग्रीस संकट के चलते मंडराते खतरे के कारण देखने को मिली है।
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हमउ साल दर साल भौंके रहल बानी के डालर पर कयामत की इबारत है और तेलकुंओं की आग मध्यपूर्व के भारत समेत इस महादेश को निगलने काथिर वरनम वन की तरह बढ़ी चली आ रही है। ड्रैकुला के खूनी दांत की चमक यह सेनसेक्स है। हमउ कहत रहे। मुक्त बाजाक की कंडोम आस्था कयामत है। हमउ कहत रहे। उड़ा दो हमारा सर।
हम उल्लू के पट्टे हैं जी जो हर कहीं जहां भी संभव दौड़े दौड़े हर सेक्टर जा जाके बताते रहे कि आसमान गिरने जा रहा है और आप हमें दिखाते रहे आसमान का रंग कित्ता तो नीला है। हम कहते रहे कि हिमालय एटमो बम है और आप हसीं हिल स्टेशन से अपनी सेल्फियां दागते रहे। हमारी जजरें खराब है जनाब कि हम इंसानों की बस्ती कहीं नहीं देख रहे और आपकी यह जन्नत हमारे लिए दोजख से बुरी चीज हुई ठहरी जहां कयामत बरपते हुए सिर्फ हमीं देख रहे हैं।
माफ कीजियेगा कि हम बूढ़ापे में फिर मुहब्बत का राग अलापने लगे।
एक पांव कब्र में तो दूजा श्मशानघाट।
फिर भी करें तो क्या मुहब्बत से शुरु इंसानियत तो मुहब्बत के इंतकाल से फसाना खत्म। आशियाना की जड़ों में फिर वही मुहब्बत तो कायनात की तमाम बरकतों और रहमतों में वही मुहब्बत फिर। आस्था का आधार कहीं नफरत हो तो बताइये। मजहब चाहे कोई हो, मुहब्बत के खिलाफ कोई मजहब हो तो बताइये।
हमें उस नीली झील से इतनी मुहब्बत न होती तो हिमालय के हर जख्म के साथ हम मर नहीं रहे होते रोज रोज।
जो गालियां बरसाने में कसूर नहीं करते कभी, गालियां फिर फिर खाने के लिए फिर फिर उन्हीं को आवाज दे न रहे होते हम, जो उनसे मुहब्बत न होती।
हमारी महजबीं अब कोई हो न हो, हर दिल में जो रोशन महजबीं हैं, हमें उसकी खैरियत की फिक्र है, तो आपका रब हमें माफ करें कि हमारा कोई खुदा नहीं है।
यह तो वैसे ही हुआ कि जैसे रिटायर होने से ऐन पहले हम पढ़ रहे हैं नये सिरे से आखेर खबरें क्या होती हैं।
यह तो वैसे ही हुआ कि जैसे रिटायर होने से ऐन पहले हम पढ़ रहे हैं नये सिरे से आखेर क्या परोसा जाये और क्या नहीं।
यह तो वैसे ही हुआ कि जैसे रिटायर होने से ऐन पहले हम पढ़ रहे हैं नये सिरे से आखेर कि मैपिंग होनी हैं अभी पूरे देश की ताकि पूंजी अबाध हो, यह सुनिशिचत हो और एफडीआई हो सही सलामत और चांदी की बरसात रहे जारी, ऐसा जनमत हो।
यह तो वैसे ही हुआ कि जैसे रिटायर होने से ऐन पहले हम पढ़ रहे हैं नये सिरे से आखेर इतिहास और भूगोल, विज्ञान और गणित अपनी आस्था के हिसाब से हकीकत का रंग बदले हैं हुक्मरान की मर्जी और मिजाज के मुताबिक।
के आखेर हम भी कबंधो है, जिसका न दिल न दिमाग।
यह तो वैसे ही हुआ कि जैसे हमारे ब्लागों पर नैनीताल की ताजा तस्वीरों को पोस्ट होते देख विश्व मशहूर कलाकार हमारे सुमित गुहा गूगल और न्यूज चैनल और तमामो अखबार ब्राउज किये परेशां परेशां कि नैनीताल कहीं खबरों में नहीं है।
हमें न उस झील से इतनी बेपनाह मुहब्बत है कि परियां सारी की सारी उनकी लहरों पर उतरती हमीं देखते हैं और किसी कि आंखों में न वे परियां है, न वो नूर है और न कोई पर्दानशीं फऱहा महजबीं दिख रही किसी को कहीं!
मलब जो गिरता है झील में कहीं तो नासूर सा पैदा हो दिल में। भूस्खलन हो या बाढ़, या भूकंप या सुनामी या दुष्काल या महामारी या भुखमरी - जहां भी जो लाश निकलती है, वह लाश भी आखिर हमारी है!
हमें माफ करें न करें, गाली दे न दें, हमारे खिलाफ फतवे जारी करें न करें तनिको अपनी अपनी महजबीं की खैर मनाइये।
हमें माफ करें न करें, गाली दे न दें, हमारे खिलाफ फतवे जारी करें न करें तनिको अपनी अपनी महजबीं की खैरियत का कोई पुख्ता इंतजाम कीजिये।
हमें माफ करें न करें, गाली दे न दें, हमारे खिलाफ फतवे जारी करें न करें तनिको अपनी अपनी महजबीं की खातिर अपना खोया हुआ चेहरा खोज लाइये कहीं से मगर।
हमें माफ करें न करें, गाली दे न दें, हमारे खिलाफ फतवे जारी करें न करें तनिको अपनी अपनी महजबीं की खातिर टूटी हुई रीढ़ के कैंसर के खिलाफ आखिरी जंग के लिए कमसकम मंसूबा तो बांध लीजिये अगर हालात बदलना चाहे तो।
हम क्या करें जनाब कि हम देख रहे हैं कि महबूब जो भी हो, महबूबा जो भी हो, ड्राकुला के दांतों के दरम्यान उसका वजूद कैद लहूलुहान, जो आप देख नहीं रहे हैं।
हम क्या करें जनाब कि हम अब भी ख्वाब देख रहे हैं इस कायनात में सही सलामत इंसानियत का, अदब तहजीब का, आजाद लबों का और हसीं मुहब्बत का।
हम क्या करें जनाब कि हमीं जान रहे हैं कि हम जो जी रहे हैं , वह कोई जिंदगी नहीं दरअसल, हम मुक्त कारागार बाजार में उपभोक्ता कैदी है और महामंदी मौत की सजा है। जो मरे हुए हैं, उन्हें मौत से क्या डरना, वे बेखौफ हैं और फिजां व्यापमं है।
हमारी महजबीं अब कोई हो न हो, हर दिल में जो रोशन महजबीं हैं, हमें उसकी खैरियत की फिक्र है, तो आपका रब हमें माफ करें कि हमारा कोई खुदा नहीं है।
इसी सेक्सी सेनसेक्स के भरोसे हरिकथा विकास अनंत में स्वाहा जिंदड़ी ओ जहां!
गल सल गपशप मटरगश्ती और चांदनी रातें ओम स्वाहा!
स्वाहा पीएफ!
स्वाहा पेंशन!
स्वाहा ग्रेच्युटी!
स्वाहा सैलेरी!
स्वाहा बीमा!
स्वाहा जमा पूंजी!
स्वाहा जल जंगल जमीन!
स्वाहा देश सारा!
हम तो उल्लू के पट्ठे, म्लेच्छ, अछूत और आप जनाब हिंदू राष्ट्र के सिपाही, जरा उस महजबीं के रोशन चेहरे का ख्याल भी करें, जिनके खातिक चांद मंगल शनि तक सीढ़ियां बनाने कबंध हो गये आप!
ग्रीस के असर से गिरा चीन का बाजार, सेंसेक्स हुआ धड़ाम!
हमारी महजबीं अब कोई हो न हो, हर दिल में जो रोशन महजबीं हैं, हमें उसकी खैरियत की फिक्र है, तो आपका रब हमें माफ करें कि हमारा कोई खुदा नहीं है।
इसी सेक्सी सेनसेक्स के भरोसे हरिकथा विकास अनंत में स्वाहा जिंदड़ी ओ जहां!
गल सल गपशप मटरगश्ती और चांदनी रातें ओम स्वाहा!
स्वाहा पीएफ!
स्वाहा पेंशन!
स्वाहा ग्रेच्युटी!
स्वाहा सैलेरी!
स्वाहा बीमा!
स्वाहा जमा पूंजी!
स्वाहा जल जंगल जमीन!
स्वाहा देश सारा!
हम तो उल्लू के पट्ठे, म्लेच्छ, अछूत और आप जनाब हिंदू राष्ट्र के सिपाही, जरा उस महजबीं के रोशन चेहरे का ख्याल भी करें, जिनके खातिक चांद मंगल शनि तक सीढ़ियां बनाने कबंध हो गये आप!
पलाश विश्वास