मैदान छोड़ा, बहस से भी भागीं 'भाजपा की बलि-बेदी'
मैदान छोड़ा, बहस से भी भागीं 'भाजपा की बलि-बेदी'
कल तक जो लोग किरण बेदी को केजरीवाल के सामने लाने को मोदी का मास्टर स्ट्रोक मान रहे थे आज दोपहर तक वे बदहवास नजर आने लगे। पार्टी मुख्यालय पर जिस अंदाज में कार्यकर्ताओं ने मुर्दाबाद के नारे लगाए वह पार्टी के चाल चरित्र और चेहरे के नारे से मेल नहीं खाता है।
नई दिल्ली। दिल्ली के चुनाव में अराजनैतिक चेहरा भाजपा को अब भारी पड़ रहा है। एक तो प्रदेश नेतृत्व का एक हिस्सा बगावत पर आमादा है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार की सीट बदलने से पार्टी कार्यकर्त्ता बचाव की मुद्रा में आ गए हैं। पार्टी को जब अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी में मुकाबला ही करवाना था तो नई दिल्ली सीट से ही किरण बेदी का लड़ना एक चुनौती माना जाता जिससे वे बच निकलीं। अरविंद ने जब शीला दीक्षित को चुनौती दी तो उनके गढ़ में दी और यही तेवर आम जनता को पसंद भी आया। यह बात अलग है कि उस दौर में कोई यह आसानी से मानने को तैयार नहीं था कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित हर जाएँगी। इस करिश्मे ने ही केजरीवाल को ' केजरीवाल' बना दिया।
... और कल देर रात भाजपा इस चुनौती से भाग खड़ी हुई तो उसके पीछे किरण बेदी ही हैं जिन्हें पता है कि केजरीवाल से सीधे मुकाबले में हारने के बाद वे बलि की बेदी ही बनकर रह जाएगी। किरण बेदी का इस तरह मैदान छोड़ना और हर्षवर्धन की सुरक्षित सीट पर जाना क्या राजनैतिक संदेश दे रहा है यह अब किसी से छुपा नहीं है। अब वे बहस की चुनौती से भागकर कुछ 'डिलीवर' करने की बात कर रही है। दिल्ली में उनकी ही सरकार है जिसने सात महीने में दिल्ली राज्य सरकार के खाते में क्या डिलीवर किया है ये वे ही जानती होंगी।
कल तक जो लोग किरण बेदी को केजरीवाल के सामने लाने को मोदी का मास्टर स्ट्रोक मान रहे थे आज दोपहर तक वे बदहवास नजर आने लगे। पार्टी मुख्यालय पर जिस अंदाज में कार्यकर्ताओं ने मुर्दाबाद के नारे लगाए वह पार्टी के चाल चरित्र और चेहरे के नारे से मेल नहीं खाता है। रही सही कसर अरविंद केजरीवाल के नामांकन के लिए जुटी नौजवानों के उमंग और उत्साह ने पूरी कर दी। एक तरफ आंदोलन वाली जमात तो दूसरी तरफ पुलिसिया अंदाज जिसे संसद मनोज तिवारी झटके में बोल भी चुके है नेता चाहिए थानेदार नहीं। अब यह थानेदारनी पार्टी के लिए संकट पैदा कर रही है। आज सारे चैनल पर भाजपा के सारे प्रवक्ता एक सुर में 'डिबेट नही डिलवरी' का राग अलाप रहे थे। पर सब के सब भीषण दबाव और बचाव की मुद्रा में थे यह भी तथ्य है। दोपहर बाद एक चाय की दूकान पर जब बैठा तो छोटा टीवी देखता चाय वाला बोला, इ कोउन सी थानेदारनी ह जे केजरीवाल से बहस से भागत बा।'
मोदी ने इसी खेल में बड़े बड़ों को उखाड़ दिया था, अब उसी खेल में केजरीवाल उनके मोहरे को मात दे रहे हैं। दिल्ली के रोचक होते चुनाव का पहला दौर केजरीवाल के नाम जा रहा है भले ही भगवा ब्रिगेड और बेदी कुछ भी कहते रहे और सर्वे का खेल खेलते रहें। राजनीति तो राजनीति की तरह ही होती है। उसे आप किसी खास चैनल को साधकर नहीं कर सकते न ही कार्यकर्ताओं पर डंडा भाजकर। अचानक पार्टी में लाई गई बेदी को लेकर मोदी की नाक के नीचे आज शाह के खिलाफ जिस अंदाज में नारे लगे वह आगे की राजनीति का संकेत है। कार्यकर्ताओं को भी किनारे किया तो चुनाव का नतीजा देखने वाला होगा। फिलहाल दिल्ली का चुनाव रोचक होता जा रहा है और सीधी लड़ाई में केजरीवाल भाजपा के लिए भारी पड़ रहे हैं।
अंबरीश कुमार
जनादेश


