मोदीजी, आजादी यानी फ्रीडम और स्वायत्तता यानी ऑटोनोमी दो अलग-अलग अर्थों वाले अलग-अलग शब्द हैं
मोदीजी, आजादी यानी फ्रीडम और स्वायत्तता यानी ऑटोनोमी दो अलग-अलग अर्थों वाले अलग-अलग शब्द हैं
पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री और वित्तमंत्री पी.चिदम्बरम #कश्मीर पर दिए अपने बयान से सुर्ख़ियों में हैं। उन्होंने गुजरात के राजकोट में कहा है कि कश्मीर के लोगों से मेरी बातचीत के जरिए मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि जब भी वे आजादी की मांग करते हैं तो इसमें ज्यादातर लोगों की आजादी का मतलब स्वायत्तता यानी ऑटोनोमी से होता है। इसलिए मेरा ख्याल है कि गंभीरता से इस पर विचार होना चाहिए कि हम उन्हें किन क्षेत्रों में अधिक ऑटोनोमी दे सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि यह पूरी तरह से संविधान के दायरे में रहकर होना चाहिए. #जम्मू_कश्मीर भारत का ही हिस्सा रहेंगे, लेकिन उन्हें थोड़े अधिक अधिकार मिलने चाहिए, जैसा कि #अनुच्छेद_370 में कहा गया है।
अगर गौर करें तो चिदम्बरम एक तरह से ऐतिहासिक तथ्यों को ही दोहरा रहे हैं। लेकिन #गुजरात और हिमाचल के चुनावों में अपना परचम लहराने को बेचैन #भारतीय_जनता_पार्टी ने उनकी बात को आधे-अधूरे ढंग से समझते हुए तुरंत उनकी आलोचना शुरू कर दी।
केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी,रेल मंत्री पीयूष गोयल, वित्तमंत्री अरुण जेटली तो पहले ही चिदंबरम पर निशाना साध चुके थे, भला प्रधानमंत्री मोदी इससे पीछे कैसे रहते। उन्होंने बेंगलुरु में आयोजित एक सभा में चिदंबरम और कांग्रेस पार्टी को खूब कोसा।
कोसते हुए मोदी ने कांग्रेस पार्टी को अलगाववादियों और पाकिस्तान का समर्थक तक बता दिया।
दूसरी तरफ ऐसा लगता है कि इस वक़्त कांग्रेस अपना पूरा ध्यान विधानसभा चुनावों पर लगाना चाहती है, और गुजरात-हिमाचल से बाहर की बातों पर वो किसी विवाद में शायद नहीं पडऩा चाहती, इसलिए प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इसे चिदम्बरम के निजी विचार बताते हुए पार्टी को विवाद से अलग कर लिया है।
खैर, भाजपा और कांग्रेस की राजनीतिक सुविधाएं अपनी जगह हैं, लेकिन इस कारण जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर खुले विचार-विमर्श का जो माहौल खत्म हो गया है, वह इस राज्य और भारत दोनों के लिए नुकसानदायक है।
आजादी यानी फ्रीडम और स्वायत्तता यानी ऑटोनोमी दो अलग-अलग अर्थों वाले अलग-अलग शब्द हैं। राजनीतिक संदर्भों में भी इन दो शब्दों को समानार्थी नहीं कहा जा सकता है। आजाद होना, पूरी तरह से बंधनमुक्त होना होता है, जबकि स्वायत्त होने में थोड़े बंधन शामिल होते हैं।
भारत को आजादी मिलने के बाद जब अलग-अलग रियासतों के विलय की प्रक्रिया चल रही थी, उस वक्त जम्मू और कश्मीर के लिए संविधान के विशेष अनुच्छेद यानी आर्टिकल-370 का प्रयोग किया गया, जिसमें इस प्रांत को दूसरे राज्यों के मुकाबले विशेष दर्जा दिया गया। जम्मू-कश्मीर के हालात भी उस वक़्त दूसरे राज्यों की तुलना में अलग ही थे। वहां पाकिस्तान के भेजे कबायली हमलावरों से निपटना था। लोकल हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध आबादी को भरोसा दिलाना था कि उनके हित भारत के साथ सुरक्षित रहेंगे, उनकी कश्मीरियत बरकरार रहेगी। अनुच्छेद-370 के तहत उन्हें अधिक स्वायत्तता दी गई, लेकिन भारत से आजाद कर अलग नहीं किया गया।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर की ऑटोनोमी पर चिदंबरम ने राजकोट में जो विचार व्यक्त किये हैं उसे वो पहले भी बोल चुके हैं। लेकिन अभी गर्म चुनावी माहौल में अवसरवादिता का हथौड़ा मारते हुए भाजपा उनकी और कांग्रेस की राष्ट्रभक्ति पर प्रश्नचिह्न लगा रही है। सरदार पटेल की जयंती भी करीब है, तो लगे हाथ उनकी विरासत को भी हथियाने के मौके तलाश रही है।
भाजपा शुरु से अनुच्छेद-370 के विरोध में रही है, लेकिन वह हकीकत से अब भी आंखें फेर रही है। जम्मू-कश्मीर में हालात वाकई बहुत गंभीर हैं। अगर किसी भी राज्य की आम जनता सामान्य जीवन परिस्थितियों में नहीं है, तो यह सरकार की सबसे बड़ी नाकामी कही जाएगी।
यह सही है कि तीन साल बाद ही सही, केंद्र ने फिर से यहां बातचीत की प्रक्रिया शुरु करने का फैसला लिया है। लेकिन वक्त की जरूरत कुछ और ज्यादा प्रयासों की हैं। अगर थोड़ी स्वायत्तता देकर जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति लाई जा सकती है, आम जनता का भरोसा जीता जा सकता है, तो सरकार को थोड़ा लचीलापन दिखाना चाहिए।
अगर कश्मीर शांत होता है, तो इसका असर आंतरिक और बाहरी दोनों स्तरों पर पड़ेगा। चुनाव आते-जाते रहते हैं, लेकिन भरोसा एक बार चला गया तो दोबारा हासिल करना बहुत कठिन होता है, ऐसा लगातार हम जम्मू-कश्मीर में देख रहे हैं। ऐसे में केंद्र में बैठी मोदी सरकार, और राज्य में भी पीडीपी के साथ सत्ता का सुख भोग रही भाजपा को, ज़रूरत है कि राजनीति से ऊपर उठकर, वहाँ के लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश करे..


