मोदीराज के खात्मे के लिए क्या लालू वाकई गंभीर हैं !
मोदीराज के खात्मे के लिए क्या लालू वाकई गंभीर हैं !
एच. एल. दुसाध
आज की तारीख में अगर कोई राजनीतिक परिवार सबसे ज्यादा मुश्किलों में घिरा नजर आ रहा है तो वह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का ही है। बेनामी संपत्ति को लेकर इस परिवार की मुश्किलें लगातार बढती जा रही हैं। कुछ दिन पूर्व आयकर विभाग ने इस मामले में लालू यादव के दिल्ली,गुरुग्राम समेत 22 ठिकानों पर छापेमारी कर उनके परिवार को स्तब्ध कर दिया था। उसी आयकर विभाग ने अब उनकी बड़ी बेटी और राज्यसभा सांसद मीसा भारती और उनके पति शैलेश कुमार को बेनामी संपत्ति के मामले में पूछताछ के लिए समन जारी कर दिया है। ऐसा किये जाने पर लालू प्रसाद यादव ने अविचल भाव से कहा है कि भाजपा द्वारा यह सब राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से किया जा रहा है। कुछ ऐसी ही बातें उन्होंने उनके कथित 22 ठिकानों पर छापेमारी की खबर प्रकाश में आने के बाद कहा था।
तब उन्होंने कहा था,’आरएसएस और भाजपा को लालू के नाम से कंपकंपी छूटती है। इनको पता है लालू झूठ,लूट और जुमलों के कारोबार को ध्वस्त कर रहा है,तो दबाव बनाओ। लेकिन लालू झुकने और डरने वाला नहीं है। जबतक आखिरी साँस है, फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ता रहेगा। भाजपा में इतनी हिम्मत नहीं कि लालू की आवाज को दबा सके। लालू की आवाज दबायेंगे तो देश में करोड़ों लालू खड़े हो जायेंगे। मैं गीदड़भभकी से डरने वाला नहीं हूँ।’
इसी मामले में एक अन्य ट्विट में कहा था, ’मोदी देश का बंटवारा चाहते हैं। हम अभी जिन्दा हैं और ऐसा होने नहीं देंगे। मोदी सरकार रूपी लंका जला देंगे। ये झांसा देने वाले राजा हैं। हमारे बाप-दादाओं को भी ये लोग गाली देते थे। समझ लो, मैं डरने वालों में से नहीं हूँ... छापा.. छापा.. छापा.. छापा.. छापा.. किसका छापा? किसको छापा ? छापा तो हम मारेंगे 2019 में। मैं दूसरों का हौसला डिगाता हूँ, मेरा कौन डिगायेगा।’
22 छापों के बाद लालू यादव ने जिस हौसले का परिचय दिया, उससे वे और ताकतवर बनकर उभरे। वे और उनके समर्थक आयकर विभाग की छापेमारी को दलित-पिछड़ों के सम्मान के साथ जोड़ने में काफी हद तक सफल रहे और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोगों ने इसे राजगीर प्रशिक्षण शिविर प्रस्ताव से जोड़कर देखा।
काबिले गौर है कि नालंदा के राजगीर में 2-4 मई तक राजद की ओर से कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण शिविर आयोजित हुआ, जिसमें वर्तमान व पूर्व सांसद, विधायक, विधान पार्षद सहित 1400 लोगों ने भाग लिया। यह बिहार विधानसभा चुनाव -2015 की ऐतिहासिक विजय के बाद राजद कार्यकर्ताओं का सबसे महत्वपूर्ण समागम था। इसी में लालू प्रसाद यादव ने शंकराचार्य पदों में आरक्षण की मांग उठाकर मनुवादियों को बौखला दिया था। किन्तु इसमें भाजपा और संघ परिवार को बौखलाने वाली बात यह हुई थी कि इसमें बीजेपी और आरएसएस की विनाश की राजनीति के खिलाफ बिहार की तर्ज पर सर्वभारतीय स्तर का महागठबंधन बनाकर पूरे देश में लड़ाई तेज करने का संकल्प लेते हुए सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया था - ‘राजद अब सड़क और खेत-खलिहानों में उतर कर दक्षिणपंथी ताकतों के संविधान विरोधी कृत्यों का पुरजोर विरोध करेगा एवं 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी समाजवादी,समतावादी और लोकतान्त्रिक दलों को एकजुट कर दक्षिणपंथी ताकतों को दिल्ली से बाहर करेगा। इस सिलसिले में 27 अगस्त को पटना के गाँधी मैदान में एक विशाल सभा का आयोजन किया जायेगा’।
और लालू बिना विलम्ब किये राजगीर में लिए गए संकल्प को पूरा सक्रिय हो गए। इसके कुछ दिनों बाद ही आयकर विभाग ने उनके कथित 22 ठिकानों पर छापे मारे। ऐसा होने पर सामाजिक न्याय समर्थकों को लगा कि छापेमारी राजनीति से प्रेरित होकर की जा रही है ताकि जो लालू यादव बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बनाकर मोदीराज के खात्मे की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, उससे पीछे हट जाएँ। लालू कन्या मीसा भारती और उनके पति के खिलाफ आयकर विभाग का समन जारी होने के बाद उनके समर्थकों का यह यकीन शायद और पुख्ता हुआ है।
इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान में लोग लालू यादव को ही सामाजिक न्याय का चैम्पियन योद्धा मानते हैं। बिहार के सफल प्रयोग के बाद ऐसे लोगों को लगता है कि अप्रतिरोध्य मोदी को सिर्फ लालू ही सही चुनौती पेश कर सकते हैं। इसीलिए दलित बहुजन मोदीराज के खात्मे की उम्मीद में बेनामी संपत्ति के मामले में सामने आ रहे आरोपों को पूरी तरह नजरअंदाज कर उनके प्रति सहानुभूतिशील होते दिख रहे हैं। लेकिन सवाल पैदा होता है क्या वाकई लालू यादव मोदीराज के खात्मे के प्रति गंभीर हैं! ऐसा इसलिए कि उन्होंने अतीत में कई बार ऐसे बयान जारी किये जिससे लगा कि भाजपा का खात्मा और सामाजिक न्याय की नए सिरे से स्थापना हो सकती है, पर वैसा हुआ नहीं। इसका बड़ा प्रमाण है 2014 के वैशाली प्रशिक्षण शिविर में लिया गया संकल्प।
2014 के लोकसभा चुनाव में गहरी शिकस्त खाने के बाद जब अगस्त में अनुष्ठित होने वाले बिहार विधानसभा उपचुनाव पूर्व लालू-नीतीश महागठबंधन की तैयारी कर रहे थे, उन्हीं दिनों वैशाली में राजद कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शिविर आयोजित हुआ, जिसमें लालू यादव ने यह घोषणा कर, ‘मंडल ही बनेगा कमंडल की काट’, पूरे देश के सामाजिक न्याय समर्थकों में नए उत्साह का संचार कर दिया था। उन्होंने सिर्फ मंडल का नारा ही नहीं उछाला, उसे जमीनी स्तर पर उतारने के लिए उन्होंने निजी क्षेत्र सहित ठेकों और विकास की तमाम योजनाओं में एससी/एसटी, ओबीसी और अकलियतों के लिए 60 प्रतिशत आरक्षण की मांग उठाने के साथ अपने समर्थकों को इसके लिए सड़कों पर उतरने का आह्वान किया था। पर, राजद के लोग इसके लिए एक दिन भी सड़कों पर नहीं उतरे। यही नहीं लोग यह भी उम्मीद पाल लिए थे कि उपचुनाव मंडल बनाम कमंडल के मुद्दे पर लड़ा जायेगा, पर लड़ा गया धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर, जो भाजपा के लिए काफी मुफीद होता है। यह बात और है कि जब 25 अगस्त,2014 को उपचुनाव का परिणाम आया महागठबंधन भाजपा के 4 मुकाबले 6 सीटें जीतकर सामाजिक न्यायवादियों को ख़ुशी से झूमने का अवसर दे दिया। लेकिन सचाई यही है कि मंडल ही बनेगा कमंडल की काट का वैशाली प्रस्ताव महज एक शिगूफा साबित हुआ।
लालू यादव ने राजनीति को मंडल केन्द्रित करने का एक और प्रयास बिहार विधानसभा चुनाव-2015 पूर्व जुलाई 2015 में किया। तब उन्होंने जाति जनगणना के मुद्दे पर अपनी पार्टी के एक धरने में भाजपा के खिलाफ जंग का एलान करते हुए हुंकार भरा था-‘ मंडल के लोगों उठो और वोट से कमंडल फोड़ दो। इस बार का चुनाव कमंडल के खिलाफ मंडल का होगा। सामाजिक न्याय की बात करने वाले जान लें कि यह चुनाव को लेकर आन्दोलन नहीं छेड़ा गया है, यह मंडल से भी बड़ा आन्दोलन होगा। हम अपने बाप दादा का हक़ लेकर रहेंगे।’ उनकी इस घोषणा के बाद लोग मंडलवादी अर्थात सामाजिक न्यायवादी राजनीति तथा अपने पुरुखों के खोये अधिकार के पुनरुद्धार के प्रति नए सिरे से आशावादी बने। किन्तु लालू का बयान फिर शिगूफा साबित हुआ। राजनीति को मंडल केन्द्रित करने और अपने पुरुखों का अधिकार हासिल करने की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़े। यह तो गनीमत हुई कि मोहन भागवत बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान आरक्षण की समीक्षा सम्बन्धी बयान जारी कर लालू यादव को सामाजिक न्याय की राजनीति के सद्व्यहार के इस्तेमाल का अवसर दे दिया और वे भाजपा को बुरी तरह शिकस्त देने में कामयाब हो गए।
बहरहाल लालू यादव विधासभा चुनाव में अपनी जीत के प्रति भरपूर आशावादी थे इसलिए जिस दिन चुनाव परिणाम घोषणा आना था, उसी दिन सुबह घोषणा कर दिए – ‘बिहार में सरकार गठन करवाकर मोदी जी के खिलाफ जनान्दोलन छेड़ देंगे। बनारस से इसकी शुरुआत करेंगे। बनारस में घूम-घूमकर मोदी जी द्वारा लोकसभा चुनाव में किये गए वादों को याद दिलाकर पूछेंगे कि उन्होंने अपने कार्यक्रम में किये गए वादों को कितना पूरा किया है।’
चुनाव परिणाम आने के बाद फिर जब उन्होंने मोदी के खिलाफ घूम-घूमकर अभियान चलाने कि घोषणा किया, बहुजन समाज मोदीराज के खात्मे के प्रति फिर आशावादी बना। किन्तु उनकी वह घोषणा फिर शिगूफा साबित हुई। वे इस दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़े। यहाँ तक कि पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के महत्वपूर्ण चुनाव में भी वे लगभग दर्शक ही बने रहे। आखिर में जाकर नवम्बर 2015 के एक बड़े अन्तराल के बाद मई 2017 में मोदीराज के अंत के लिए सक्रिय होने का हुंकार भरा। लेकिन उनके अतीत को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि वे 2019 तक मोदीराज के खात्मे के लिए मंडलवादी राजनीति को लगातार धार देते रहेंगे। पर, यदि देते हैं,बहुजन मोदीराज के अंत के प्रति आशावादी हो सकता है।
is Lalu really serious for end of Modi Raj


