मोदी को ग्रीनपीस इंडिया की अंतरिम कार्यकारी निदेशक विनुता गोपाल का खुला पत्र
मोदी को ग्रीनपीस इंडिया की अंतरिम कार्यकारी निदेशक विनुता गोपाल का खुला पत्र
श्री नरेंद्र मोदी
माननीय प्रधानमंत्री, भारत
आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय,
हम आपके और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच होनेवाली मुलाकात की खबरों पर पूरी उम्मीद व सकारात्मक नजरिये से नजरें टिकाए हुए हैं, विशेषतर हमारी धरती के भविष्य से जुड़े इस बेहद महत्वपूर्ण समय में, जब जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के खतरों से निबटने की दिशा में निर्णायक कदम उठाये जाने वाले हैं। आप ना केवल दुनिया के विशालतम लोकतांत्रिक देश के निर्वाचित नेता के रूप में देखे जायेंगे, पर एक ऐसे देश के प्रतिनिधि माने जायेंगे, जहां जलवायु परिवर्तन के संकटों से नुकसान की आशंकाएं हैं। निश्चित ही आप को इस बात का आभास होगा कि 1.2 अरब भारतीय नागरिकों की उम्मीदें आप पर टिकी हुई हैं। इन लोगों के अलावा, दुनिया भर के करोड़ों लोग भी इस साल लिये जाने वाले निर्णयों से अनिवार्य रूप से प्रभावित होने जा रहे हैं। ऐसे में हमें आपसे उम्मीद है कि आप अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों को सफलतापूर्वक जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण रखने के लिए जरूरी महत्वाकांक्षी व समतामूलक वैश्विक समझौतों की ओर अग्रसर होने के लिए बाध्य करेंगे।
हम आपको नये व महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को तय करने के लिए बधाई देते हैं, और गुजारिश करते हैं कि आप एक विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा प्रणाली पर ध्यान दें, जो कि भारत की ऊर्जा निर्धनता की चुनौती से निबटने में सबसे तीव्र और सबसे ज्यादा लागत प्रभावी तरीका है। साथ ही हमारा मानना है कि कोयला-जनित ऊर्जा द्वारा जारी विकास आम भारतीय के हित में नहीं है, क्योंकि यह लोगों के स्वास्थ्य, समुदायों की जीविका और पर्यावरण पर ज्यादा नुकसान पहुंचाता है - इन्हीं कारणों से यह अक्षय ऊर्जा से कहीं ज्यादा खर्चीला साबित होता है। हमें उम्मीद है कि आप अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सिविल सोसायटी, निवेशकों व सभी वैश्विक साझेदारों - खासकर अमेरिकी सरकार - से बेहद जरूरी सहायता व समर्थन पाने में कामयाब होंगे।
अमरिकी राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा के नेतृत्व में अमेरिका ने हाल में इस दिशा में कई बेहतर कदम उठाये हैं, जैसे कि खासकर कोयला ऊर्जा कारखानों से उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा योजना (क्लीन पावर प्लान) की घोषणा, और परिवहन क्षेत्र के लिए नयी ईंधन कार्यदक्षता मापदंड आदि। परन्तु हम उम्मीद रखते हैं कि आप राष्ट्रपति ओबामा पर ज़ोर बनाये रखेंगे और उन्हें यह समझाने में सफल रहेंगे कि यह कदम एक सही शुरुआत के तौर पर स्वागतयोग्य तो हैं परन्तु मानवता के समक्ष आयी चुनौतियों की तुलना में अपर्याप्त हैं, और यदि जलवायु परिवर्तन के लिए अमेरिका की जिम्मेवारी पर गौर करें तो आगे उन्हें कई ऐसे कदम उठाने होंगे। ओबामा प्रशासन द्वारा उठाये गये कुछ कदमों से जलवायु परिवर्तन की समस्या और बदतर हो गयी है, जो अमेरिका द्वारा उठाये गये इन उपायों को निष्प्रभावी कर देते हैं। जैसा कि ग्रीनपीस अमेरिका ने बीते अगस्त 2015 में कहा है कि ‘अगर ओबामा प्रशासन भावी पीढ़ी के लिए इस धरती को बेहतर व सुरक्षित बनाना और अपने पीछे जलवायु परिवर्तन संबंधी सकारात्मक वसीयत छोड़ना चाहता है तो इसे सार्वजनिक मालिकाने के जीवाश्म ईंधनों के उत्खनन व दोहन को रोकना होगा...।’
एक साझे भविष्य की दिशा में सहकारी भावना के साथ कदम उठाते हुए, हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप राष्ट्रपति ओबामा से उनके प्रशासन द्वारा जारी उन कदमों पर पुनर्विचार करने का आग्रह करें, जो जलवायु परिवर्तन के खतरों के खिलाफ लड़ाई को हतोत्साहित करते हैं। अगर वाकई राष्ट्रपति ओबामा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व करने के प्रति गंभीर हैं, तो उन्हें निम्न मुद्दों पर निर्णायक कदम उठाने होंगे करना होगा:
1. अमेरिका सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत की आंतरिक जरूरतों के खिलाफ अब भी विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में एक मुकदमे में उलझा हुआ है, जो भारत की सौर ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहा है।
2. अमेरिका अब भी विशाल रूप से अपने समुद्री सीमावर्ती तटों पर, और गहरे सागर के भीतर, कई नये क्षेत्रों को तेल उत्खनन के लिए खोलने जा रहा है, जिनमें परिस्थिकीय नजरिये से नाजुक इलाके जैसे आर्कटिक क्षेत्र भी शामिल हैं। खासकर आर्कटिक से तेल भंडारों का दोहन जलवायु परिवर्तन की प्रकिया को इस कदर कुप्रभावित करेगा कि इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो जायेगा।
3. अमेरिका अब भी जीवाश्म ईंधनों को सब्सिडी प्रदान कर रहा है, खासकर अपने सरकारी जमीन पर विशाल कोयला भंडारों को लीज़ पर देने के कार्यक्रम के जरिये। केवल ओबामा सरकार के कार्यकाल में ही सरकारी मालिकाने के करीब 2.2 अरब टन कोयला भंडार को लीज़ पर दिया गया है।
आज हम सब अपनी भावी पीढ़ी के बेहतर भविष्य, और हमारी धरती की जीवन समर्थन प्रणाली को बचाये रखने की ऐतिहासिक संघर्ष में लगे हुए हैं, और ग्रीनपीस इस दिशा में जरूरी सभी कदमों के समर्थन के लिए लगातार प्रतिबद्ध रहेंगे। जलवायु परिवर्तन से निबटने और संयुक्त राष्ट्रसंघ के सह्रस्राब्दि विकास लक्ष्यों को पूरा करने की बात आती है, तो सरकार के लिये जरुरी है कि वह सिविल सोसाइटी के साथ स्वस्थ्य संवाद बनाए रखे। हम साथ मिलकर विश्व सरकारों की कोशिशों को बढ़ावा दे सकते हैं: विकसित देशों पर उनके जलवायु संबंधी दायित्वों को पूरा करने का दवाब बनाये रखकर, और विकासशील देशों में लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा कर सके
इसी सार्थक व रचनात्मक सहयोग की भावना से हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे भारत के गृह मंत्रालय द्वारा ग्रीनपीस इंडिया तथा अन्य वैधानिक गैर सरकारी संगठनों के साथ दबाव व भयावदोहन के अभियान पर। गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों की गतिविधियों से तथा इसके परिणामस्वरूप रचनात्मक संवाद की जगह कम होने से अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी व लोकतंत्र’ को सम्मान देने के मसले पर भारत की छवि धूमिल हो रही है। ऐसे कदम आपकी सरकार की लोकतंत्र और पर्यावरणीय मसलों के समर्थन व प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
सरकार व सिविल सोसायटी संगठनों के बीच एक सार्थक व सहयोगपूर्ण गंठबंधन भारत ही नहीं, पूरी धरती के उज्जवल भविष्य के लिए बेहद जरूरी है। ग्रीनपीस भारत सरकार के साथ साझा लक्ष्य व एक सरल उद्देश्य - सबों के लिए सुरक्षित, स्वच्छ और किफायती ऊर्जा को सुनिश्चित करने - की दिशा में साथ काम करने की उम्मीद रखते हैं।
निष्ठापूर्वक
विनुता गोपाल
अंतरिम कार्यकारी निदेशक, ग्रीनपीस इंडिया
और
एनी लियोनार्ड
कार्यकारी निदेशक, ग्रीनपीस अमेरिका


