मोदी ने भारत को जहाँ मंदी के मुँह पर लाकर खड़ा किया है, अमेरिका भी वहीं खड़ा दिखेगा

अमेरिका में ट्रम्प की जीत से तात्पर्य

अरुण माहेश्वरी

ब्रिटेन में ब्रेक्सिट के बाद अमेरिका में ट्रम्प की जीत विश्व पूँजीवाद की दुर्दशा को बताने के लिये काफी है।

यह बताती है कि पूँजीवादी देशों में आम आदमी यथास्थितिवादी राजनीति से पूरी तरह से ऊब चुका है। उसका जीवन इतना दुष्कर हो चुका है कि अब इससे बुरे की वह कल्पना नहीं कर पा रहा है।

पारंपरिक राजनीतिक नेतृत्व और ढर्रेवर विचारधाराओं की जगह वह किसी भी जीव-जंतु और जंगलीपने तक को आज़माने के लिये तैयार है।

ट्रम्प जैसे एक लंपट और विभाजनकारी चरित्र की जीत से जाहिर है कि पूँजीवाद अब नागरिक जीवन में न्यूनतम शालीनता की रक्षा में भी असमर्थ हो चुका है। जीवन के सारे नैतिक मूल्य और तथाकथित पवित्र रिश्तें हवा में विलीन हो जा रहे हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी पूँजीवादी शक्ति के नेतृत्व में ट्रम्प की तरह के एक अविश्वसनीय व्यक्ति का आना पूरी दुनिया को एक अनिश्चय के कगार पर खड़ा कर देना है।

जो चल रहा था वह चल नहीं सकता, मान लेने का सीधा अर्थ है पूंजीवाद चल नहीं सकता।

और ट्रम्प का रास्ता भी पूंजीवाद से कोई अलग रास्ता नहीं होगा।

अर्थात, आज मोदी ने भारत को जहाँ लाकर खड़ा किया है, अमेरिका भी आगे वहीं खड़ा दिखेगा। मतलब यह महाशक्ति खुद एक गहरी मंदी में फँसने के साथ ही पूरी दुनिया को परस्पर अविश्वास, युद्ध और अस्थिरता की परिस्थिति में झोंक देगी।

लगता है जैसे समय आ रहा है जब पूँजीवाद के वामपंथी विकल्प को तेज़ी से तैयार किया जाए।
सर्वहारा के राज्य को क़ायम करने की नई रणनीति बनाई जाए। यह वामपंथ के एक नए अवतार का समय साबित हो सकता है।