मोदी माओवादी बजरिए चीनी रास्ते!
मोदी माओवादी बजरिए चीनी रास्ते!
पलाश विश्वास
मित्रों हिंदी में एक दिन के अंतराल के बाद लिख रहा हूं। हालात इतनी तेजी से बदल रहे हैं और हमारे पास पेशेवर साधन संसाधन संपन्न विद्वतजनों का प्रतिबद्ध हुजूम भी नहीं है। हम कुछ नहीं कर सकते, हाँ सूचना वंचित वंचितों को मौजूदा हालात बता सकते हैं, बाकी उनकी मर्जी।
मुश्किल यह है कि अपनी अटल हिंदी प्रेम के बावजूद हम हिंदी में पूरे राष्ट्र को संबोधित नहीं कर सकते। दूसरी भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंगेजी में भी यह बहस चलानी है।
जिस तेजी से अभिव्यक्ति पर चहारदीवारी बनायी जा रही है और रोबोटिक तरीके से सबकुछ नियंत्रित किया जा रहा है, दूसरों को संप्रेषित करने, दूसरों से संवाद की स्थिति बनाने से पहले लिखना शब्द दर शब्द शब्दशः मुश्किल ही नहीं, असंभव होता जा रहा है।
टीआरपी मनोरंजन के लिए सारी खिड़कियां खुली हैं, हमारे लिए कहीं कोई रोशनदान भी नहीं है। हम जिस तरह कयामत की जद में हैं हवा पानी के भी मोहताज हो जायें शायद, दो गज जमीन तो अब इस दुनिया में चैन के साथ सोने को मिलने वाली नहीं है।
तालाबंद जुबान के साथ जीकर भी क्या करना है और ययाति की तरह हम यौवन का प्रत्यारोपण भी नहीं कर सकते कि देश दुनिया को भूलकर सांढ़ संस्कृति में निष्णात हो जायें।
मैं हिंदी के अलावा अंग्रेजी और बांग्ला में थोड़ा बहुत लिख लेता हूं। इसलिए अब रोज हिंदी में लिखना नहीं हो सकेगा। मुद्दों के भूगोल के हिसाब से भाषा बदलती रहेगी।
जरूरत हुई और साथी आगे नहीं बढ़ें तो अजनबी भाषाओं में भी लिखने की नौबत आ सकती है। मेरे जो थोड़े से हिंदी पाठक हैं शायद, उनसे माफी चाहूंगा।
पूर्वोत्तर और कश्मीर के कारण कल अंग्रेजी में लिखना पड़ा। हिंदी में तो सोशल मीडिया में छप जाता है, लेकिन अंग्रेजी के लिए अपने ब्लाग ही भरोसा है।
दरअसल हमारी सबसे प्रिय महिला इरोम शर्मिला की लड़ाई में पल छिन हम सारे भारतीय चाहे अनचाहे शामिल हैं। अदालत से फिलहाल उनकी रिहाई हुई है। लेकिन मणिपुर की सरकार केंद्र के इशारे से उच्चतर अदालत में जा सकती है।
सशस्त्र सैन्य बल विशेषाधिकार कानून से हिंदी पट्टी के हिंदुओं का वास्ता नहीं पड़ता। लेकिन दंगाग्रस्त इलाकों के सेना के हवाले कर देने के बाद मलियाना और हाशिमपुरा जैसे कांड देश भर में मुसलमानों के खिलाफ दोहराये जाते हैं तो कारपोरेट घरानों के हितों की सुरक्षा और आदिवासियों की बेदखली के खिलाफ जो सैन्य अभियान जारी है, वह अब बाकी भारत में शुरु होने जा रहा है, उससे देर सवेर इसे राष्ट्रहित का पर्याय मानने वाले लोग भी समझ जायेंगे कि आखिर सैन्यीकरण का मकसद और मामला दरअसल क्या है।
अभी तो अमेजेन, वालमार्ट, फ्लिपकार्ट और दूसरी रिटेल कंपनियों को ड्रोनमाध्यमे जो होम डेलिवरी दी जा रही है, वह दरअसल भारतीय खुदरा बाजार में एकाधिकारवादी अमेरिकी हमला है जो दरकार के मुताबिक किसी भी वक्त कोई भी शक्ल अख्तियार कर सकता है क्योंकि हम सभी डिजिटल बायोमैट्रिक नागरिक हैं और हमारी कोई गोपनीयता नहीं है।
हमारी सारी कुंडली, हमारे सारे कवच कुंडल बेदखल हो गये हैं और आर्थिक सुधारों के दूसरे तीसरे चरण में इस देश का हाल इराक अफगानिस्तान जैसा होने लगा तो कोई अचरज है नहीं।
गाजा पट्टी का नजारा तो यूपी में शाहज्यू महाराज दिखा ही रहे हैं, जिस पर विशेषज्ञों का मानना है कि यूपी में भारी बहुमत के साथ भाजपा के सत्ता में आते ही भयमुक्त प्रदेश बन जायेगा उत्तर प्रदेश और यरुशलम के मंदिर दखल से पहले राममंदिर अवश्य बन जायेगा।
अबकी दफा असुरक्षित मुसलमान थोक भाव से देश भर में गुजरात की तर्ज पर केसरिया होने लगे जान माल की हिफाजत के लिए तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है।
जैसा कि प्रधानमंत्री ने ऐलान कर दिया है कि अब चीन का रास्ता ही हमारा रास्ता है। जी नहीं, यह न माओ का रास्ता है और न चारु मजुमदार का रास्ता है। यह चीन की प्राचीरों को मुक्तबाजार के लिए खोल देने का रास्ता है।
अब मुक्तबाजारी चीन में रोजगार और श्रम की दशा दिशा क्या है, वह छुपा नहीं है। विकास दर की छलांग के साथ कृषि प्रधान चीन में कृषि और कृषि जीवी संस्कृति का जो अवसान हो रहा है, वह भी विश्वप्रसिद्ध है। गांवों से शहरों को घेरने का मामला है नहीं यह, बल्कि इसके उलट शहरीकरण के जरिये गांवों के सफाये का मामला है यह, जो आर्थिक सुधारों से साफ जाहिर है।
हम जो बार-बार चीन के खिलाफ बेमतलब छायायुद्ध की बात करते हैं और अपने संघी मित्रों को गरियाने का मौका देते हैं, उसका सच तो अपने सेनाध्यक्ष ने ही उगल दिया है।
मीडिया में लगातार स्क्रालिंग और ब्रेकिंग न्यूज, प्रिंट में युद्ध विशेषज्ञों के चीनी खतरे पर टनों कागद कारे का सच भी सामने आ गया है।
सेनाध्यक्ष के मुताबिक कहीं कोई चीनी घुसपैठ नहीं है। बाकी आधिकारिक सूचना है कि सीमा की व्याख्या में फर्क हो जाने की वजह से घुसपैठ का हल्ला हो रहा है।
अंग्रेजों की बनायी मैकमोहन लाइन जो 1962 के भारत चीन युद्ध की वजह बनी, आज भी भारत चीन सीमा पर तनाव की मुख्य वजह बनी हुई है। बाकी कोई तनाव नहीं है।
हथियारों के सौदों का औचित्य साबित करने के लिए यह छायायुद्ध जारी है।
इसके बावजूद रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को कहा कि चीनी सैनिक भारतीय सीमा के अंदर आए थे, लेकिन उन्हें भारतीय भूमि के अतिक्रमण से रोकने के लिए भारतीय सेना का दृष्टिकोण पर्याप्त है।
लद्दाख में भारतीय सीमा में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की रपट पर सवाल पूछे जाने पर मंत्री ने कहा, "सेना प्रमुख इस बारे में विस्तृत तौर पर स्पष्टीकरण दे चुके हैं कि यह रपट एकदम सही नहीं है।" तो इसका भी तात्पर्य समझ लें।
उन्होंने हालांकि कहा कि चीनी सैनिक उस सीमा के अंदर दाखिल हुए थे, जो भारतीय मानी जाती है।
गौरतलब है कि कारपोरेट वकील एकमुश्त रक्षा और आर्थिक मंत्री जो कह रहे हैं, वह भारतीय सेनाध्यक्ष के बयान और इस पर भारत सरकार के आधिकारिक अवस्थान के विरुद्ध है और जाहिर है कि उनके खिलाफ विशेषाधिकार भंग का नोटिस देने वाला कोई नहीं है।
फिलहाल संजोग से रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने वाले तंत्र के सर्वेसर्वा हैं ये कारपोरेट वकील तो मौद्रिक और वित्तीय कवायद भी उनकी जेबों से शुरु होती है और वहीं खत्म होती है।
उधर प्रधानमंत्री फिर राजीव गांधी की तकनीकी क्रांति के मोड में हैं और भारत को सुपर पॉवर तकनीकी क्रांति मार्फत बनाना चाहते हैं एक तरफ, तो दूसरी तरफ भारतीय युवासमाज और देश के भविष्य को एकमुश्त थ्री फोरफाइव एक्स में निष्णात करने की तैयारी है उनकी समूची उत्पादन प्रणाली को पीपीपी अनंत गंगा अविरल विशुद्ध पूँजी धारा में तब्दील करके।
इसका नमूना यह कि दूरसंचार कंपनी एयरसेल ने तमिलनाडु व जम्मू-कश्मीर में 4जी सेवा शुरू कर दी है। इस तरह यह निजी क्षेत्र की एकमात्र दूरसंचार कंपनी हो गई है जो तीनों मौजूदा प्रौद्योगिकियों 2जी, 3जी व 4जी के तहत इन बाजारों में सेवाएं उपलब्ध करा रही है।
इसी बिजनेस फ्रेंडली तकनीक ब्लिट्ज चमत्कार वैज्ञानिक चकाचौंध मध्ये दैनिक टेलीग्राफ कोलकाता में वरिष्ठतम पत्रकार केपी नैयर ने जो लिखा है, वह तो कान खड़े करने के लायक है। कश्मीर के अलगाववादियों से पाकिस्तान की बातचीत के लिए जो भारत पाक वार्ता बंद करने का फैसला है, उसका मकसद दरअसल धारा 370 खत्म करके कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के प्राचीन संघी मास्टर प्लान को अंजाम देना है।
खास बात यह है कि कश्मीर में भी पूर्वोत्तर की तरह सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून लागू है। जाहिर है कि इरोम शर्मिला की लड़ाई जितनी मणिपुर के लिए है, उससे कम कश्मीर के लिए नहीं है। बाकी देश के लिए भी यह लड़ाई कितनी जरुरी है, इसका खुलासा अभी होना बाकी है हालांकि।
कोयला घोटाले के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री को चोर कहने से भी परहेज नहीं किया था भाजपाइयों संघियों ने। उनसे बार-बार इस्तीफा मांगा गया और संसद चलने नहीं दी गयी।
जैसे परमाणु संधि के मद्देनजर सत्ता में आते ही केसरिया नजरिया कारपोरेट हो गया, उसी तरह कोयला घोटाला भी डिसमिस।
बाकी सारे स्कैम जिसके खिलाफ मैदान में अन्ना अरविंद उतारे गये कांग्रेस की खटिया खड़ी करने के लिए, वे तमाम घोटाला भी रफा दफा मान लीजिये।
कोयला घोटाला के सिलसिले में मनमोहन सिंह से कोई पूछताछ अब नहीं होगी और न इस मामले में फंसे कारपोरेट घरानों से।
संजोग देखिये और भारत अमेरिकी युगलबंदी देखिये कि अमेरिका ने भी सिख नरसंहार मामले में मुकदमा न चले सके, इसके लिए मनमोहन को इम्मयुन घोषित कर दिया है।


