मोदी-विरोधी महागठबंधन में वामपंथ की पुरजोर मौजूदगी ही जनभावना के अनुकूल
मोदी-विरोधी महागठबंधन में वामपंथ की पुरजोर मौजूदगी ही जनभावना के अनुकूल
मोदी-विरोधी महागठबंधन में वामपंथ की पुरजोर मौजूदगी ही जनभावना के अनुकूल
मोदी के खिलाफ महागठबंधन के प्रति जनता को आश्वस्त करना फासीवाद के खिलाफ लड़ाई का एक प्रमुख काम है
29-30 नवंबर को किसान मुक्ति मार्च में विपक्ष के 21 दलों के नेताओं की उपस्थिति फासिस्ट मोदी सरकार के विरुद्ध भारत की जनता के स्तर पर तैयार हो चुके महगठबंधन की घोषणा है।
महागठबंधन का हर संकेत और उसमें खास तौर पर वामपंथ की पुरजोर मौजूदगी ही मोदी-विरोधी जनभावना के राजनीतिक विकल्प में रूपांतरण के बीच की हर दरार को पाटने का काम करता है। इसे अकेले कांग्रेस के भरोसे छोड़ना एक बड़ी भूल होगी।
भारत में फासीवाद को पराजित करने के अपने प्रमुख राष्ट्रीय दायित्व को निभाने के लिये वामपंथ को महागठबंधन के निर्माण के प्रति जनता को पूरी तरह से आश्वस्त करना चाहिए। इस विषय को चुनावबाज स्थानीय नेताओं की संकीर्णताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
कांग्रेस को क्रोनी पूंजीवाद मुर्दाबाद के नारे को प्रमुखता देनी होगी
Congress will have to give prominence to the slogan of Kroni capitalism Murdabad
जरूरत कांग्रेस को भी अपने चुनाव घोषणापत्र में नव-उदारवाद की सीमाओं से निकल कर जन-कल्याणकारी नीतियों पर बल देने की है ; क्रोनी पूंजीवाद मुर्दाबाद के नारे को प्रमुखता देते हुए कृषि सुधार के व्यापक कार्यक्रम को पेश करने की है।
वामपंथ में जो तत्व कांग्रेस को छोड़ कर मोदी को पराजित करने की थोथी क्रांतिकारी बात करते हैं, वे मोदी-विरोधी पूरी लड़ाई को आधारहीन बना देने के दोषी हैं। वे प्रकारांतर से मोदी के हाथ के खिलौने का काम करेंगे; भारत में फासीवाद का रास्ता साफ करेंगे। जनता के दुश्मन की भूमिका अदा करेंगे।
वामपंथ की राजनीति का आज एक ही लक्ष्य हो सकता है - मोदी-आरएसएस के फासीवाद को परास्त करो।
Left politics can be the only target today - defeat Modi-RSS fascism.
किसानों के आक्रोश का विस्फोट भारत के व्यापक कृषि संकट का सूचक है। इस संकट के निदान का राजनीतिक रास्ता फासीवाद को बिना परास्त किये असंभव है। यहीं राजनीतिक संघर्ष आज सभी जनतांत्रिक राजनीतिक दलों को एक साथ ला सकता है। मजदूरो, किसानों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं और सभी वंचित जनों के आंदोलन इस राजनीतिक लक्ष्य को घर-घर तक पहुंचाने का काम करेंगे और जनता के जीवन को संकट से मुक्त करके पूरे राष्ट्र को फासीवाद से बचायेंगे।
कुछ तथाकथित क्रांतिकारी किसान नेता समझते हैं कि वे अकेले अपने संघर्ष के बूते वोट में जीत कर फासीवाद को परास्त कर देंगे। वे मूर्खों के स्वर्ग में वास करते हैं और अपने चुनावबाजी के रोग पर पर्दादारी के लिये जन-संघर्षों के नाम का इस्तेमाल करते करते हैं। वे शुद्ध रूप से अर्थनीतिवाद को ही राजनीतिक संघर्ष का पर्याय समझते हैं।
हाल में राजस्थान में वामपंथ के ऐसे ही चुनावबाज किसान नेताओं का चरित्र खुल कर सामने आया है। जिस पार्टी का अभी विधानसभा में एक विधायक नहीं है, उसका नेता साफा बांध कर मुख्यमंत्री पद को पाने के लिये घोड़ी पर चढ़ा हुआ है ! ये वहां पूरी तरह से भाजपा और उसकी नेता वसुंधरा के हाथ के कठपुतले बन कर फासिस्टों की सेवा का अपराध कर रहे हैं।
हम फिर से दोहरायेंगे कि फासीवाद के खिलाफ इस लड़ाई को सिर्फ कांग्रेस पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। अन्य दलों को भी आज अपनी राजनीति का परिचय देने की जरूरत है और चुनावबाजी के मूर्खतापूर्ण रोग से मुक्ति की भी।
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