01 अगस्त से विद्युत वितरण कम्पनियों के लिए एल सी खोलने की बाध्यता और केंद्र सरकार की निजीकरण की नीतियों के विरोध में व्यापक संघर्ष की रणनीति 31 जुलाई को दिल्ली में तय होगी

लखनऊ, 30 जुलाई 2019. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (Federation of All India Power Engineers) ने केंद्र सरकार द्वारा 01 अगस्त से विद्युत वितरण कम्पनियों के लिए एलसी खोलने की बाध्यता का विरोध करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा एनटीपीसी और पावर ग्रिड के संयुक्त उपक्रम में केंद्र की विद्युत् वितरण कंपनी बनाने, एनटीपीसी के निजीकरण (NTPC's privatization), नीति आयोग के निजीकरण हेतु जारी किये गए स्ट्रेटेजिक पेपर, केंद्रीय विद्युत् मंत्रालय के निजीकरण हेतु जारी विजन डाकूमेंट और केंद्र सरकार की निजीकरण की चल रही नीतियों के विरोध में व्यापक संघर्ष की रणनीति 31 जुलाई को दिल्ली में तय होगी।

ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडेरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने आज यहाँ बताया कि 31 जुलाई को दिल्ली में नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इंजीनियर्स {National Coordination Committee of Electricity Employees and Engineers (एन सी सी ओ ई ई ई )} की मीटिंग में इन तमाम सवालों पर विस्तृत विचार विमर्श कर राष्ट्रव्यापी संघर्ष का व्यापक निर्णय लिया जायेगा। उन्होंने बताया कि एन सी सी ओ ई ई ई के बैनर तले देश के सभी बिजली कर्मचारी फेडरेशन और डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ तथा पावर इंजीनियर्स फेडेरेशन सम्मिलित हैं जिनकी कुल संख्या लगभग 25 लाख है।

उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने 28 जून को आदेश कर यह व्यवस्था कर दी है कि 01 अगस्त से उन्हीं विद्युत् वितरण कंपनियों को बिजली दी जायेगी को निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादन कंपनियों के नाम बैंक में लेटर ऑफ क्रेडिट (एल सी ) खोलेंगी। केंद्र सरकार का यह भी आदेश है कि एल सी न खोलने वाली वितरण कंपनियों को खुले बाजार में पावर एक्सचेंज से बिजली खरीदने की भी अनुमति नहीं दी जाएगी। स्पष्टतः यह आदेश निजी घरानों के हित में दिया गया है, जिसका सर्वाधिक दुष्परिणाम आम उपभोक्ताओं और राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को उठाना पडेगा।

उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने 23 जलाई को एक स्पष्टीकरण जारी कर साफ़ कर दिया है कि एल सी खोलने का आदेश राज्य सरकार के बिजली उत्पादन घरों के लिए प्रभावी नहीं होगा। ध्यान रहे कि केंद्र के एन टी पी सी और एन एच पी सी के लिए पहले से ही एल सी खोलने के आदेश चल रहे हैं और अब जारी यह आदेश राज्य सरकार के बिजली घरों पर लागू नहीं हैं तो साफ है कि यह आदेश निजी घरानों के हित में जारी किये गए हैं और उपभोक्ता विरोधी हैं क्योंकि बिजली न मिलने पर सबसे अधिक बिजली कटौती किसानों और गरीब उपभोक्ताओं को ही झेलनी पड़ेगी।

शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि राज्यों की वितरण कंपनियों के कैश गैप के मुख्य कारण विद्युत् नियामक आयोग द्वारा स्वीकृत पूरी सब्सिडी न मिलना , राज्य के सरकारी विभागों द्वारा बिजली बकाये का भुगतान न करना , पूर्व में बहुत ऊंची दरों पर किये गए बिजली क्रय करारों (पी पी ए ) का पुनरीक्षण न होना और बिजली की वास्तविक मांग से कहीं अधिक के पी पी ए होना जिनके एवज में बिना एक भी यूनिट बिजली खरीदे बिजली वितरण कंपनियों को अरबों रु का भुगतान करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि केवल उत्तर प्रदेश में सरकारी विभागों पर बिजली का कुल बकाया 11000 करोड़ रु से भी अधिक है। इसी प्रकार उप्र में मांग के मुकाबले अधिक पी पी ए होने के कारण लगभग 4800 करोड़ रु अतिरिक्त फिक्स चार्ज का भुगतान करना पड़ रहा है। यदि सरकारी विभागों का बिजली बिल का बकाया मिल जाए , मनमानी दरों पर किये गए पी पी ए रद्द कर दिए जाएँ और अनावश्यक किये गए पी पी ए के एवज में फिक्स चार्ज न देना पड़े तो वितरण कंपनियों की माली हालत स्वतः ठीक हो जाएगी।

उन्होंने कहा कि केवल निजी घरानों के हित में सोचने के बजाये केंद्र सरकार को बिजली इंजीनियरों और कर्मचारियों से बात कर प्रतिगामी ऊर्जा नीति में परिवर्तन करना चाहिए जिससे आम उपभोक्ता को सस्ती और गुणवत्तापरक बिजली मिल सके जिसके लिए बिजली कर्मचारी व इंजीनियर्स संकल्पबद्ध है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि केंद्र सरकार ने अपनी कारपोरेट परस्त नीतियों में परिवर्तन न किया तो देश के 25 लाख बिजली कामगार और इंजीनियर व्यापक संघर्ष हेतु तैयार हैं जिसकी विस्तृत रूपरेखा कल दिल्ली में तय कर दी जाएगी।