मौलाना खालिद मुजाहिद की हत्या : सपा सरकार की उल्टी गिनती शुरु - रिहाई मंच
मौलाना खालिद मुजाहिद की हत्या : सपा सरकार की उल्टी गिनती शुरु - रिहाई मंच

खालिद मुजाहिद की हत्या में अभियुक्त बनाये गये पुलिस अधिकारियों की हो तत्काल गिरफ्तारी- रिहाई मंच
खालिद के नाक-कान पर खून के धब्बे, गर्दन की टूटी हड्डी बयाँ करती है मौत से पहले का खौफनाक उत्पीड़न- रिहाई मंच
मड़ियाहूं/ जौनपुर/ बाराबंकी/ लखनऊ/ नई दिल्ली। सीरियल बम विस्फोटों के तथाकथित अभियुक्त मौलाना खालिद मुजाहिद की पुलिस स्कॉर्ट में हत्या पर भले ही सूबे की सपा सरकार ने सीबीआई जाँच की सिफारिश कर दी है लेकिन उसकी अब तक की कार्यप्रणाली को लेकर अवाम में जबर्दस्त गुस्सा है जिसका इजहार कल पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में हुआ। एक तरफ जहाँ रिहाई मंच ने खालिद मुजाहिद की हत्या को सपा सरकार की सरपरस्ती में एसटीएफ अधिकारियों को बचाने के लिये की गयी साजिशन राजनीतिक हत्या करार देते हुये कहा है कि इस शहीद मौलाना खालिद मुजाहिद के जनाजे से सपा सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो गयी है वहीं दूसरी ओर मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव की फेसबुकिया टीम ने जिस तरह से सोशल मीडिया पर मोर्चा लिया उसने भी प्रदेश सरकार के ऊपर सवालिया निशान लगा दिये हैं। उधर सवाल यह भी उठ रहे हैं कि सीबीआई जाँच की तुरन्त सिपारिश करना वाली राज्य सरकार हत्या में नामजद पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं कर रही और अभी भी निमेष आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार क्यों नहीं कर रही।
रिहाई मंच ने सरकार को चेतावनी देते हुये कहा कि सरकार इस मुगालते में न रहे कि मौलाना खालिद की हत्या करा कर इस आन्दोलन को रोक देगी। 2007 में खालिद-तारिक की रिहाई को लेकर शुरु हुआ बेगुनाहों की रिहाई का यह आन्दोलन जिसके नींव में खालिद के चचा जहीर आलम फलाही रहे हैं, को हम मंजिल तक पहुँचायेंगे क्योंकि यह दिन हमारे लिये शोक का नहीं बल्कि संकल्प का दिन है।
मंच ने बाराबंकी में खालिद मुजाहिद के पंचनामे पर सवाल उठाते हुये कहा कि जिस तरह से बाराबंकी प्रशासन ने पंचनामे में समाजवादी पार्टी से जुड़े नेताओं को पंच बनाया और इस तथ्य को परिजनों तथा वहाँ मौजूद सैकड़ों लोगों से छिपाया उससे जाहिर हो जाता है कि प्रशासन की नियत वास्तविक तथ्यों को छिपाने का था। रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि खालिद के चचा जहीर आलम फलाही समेत कई लोगों ने खालिद के शव का निरीक्षण किया, जिसके मुताबिक खालिद के कान और नाक के आस-पास खून के धब्बे थे, उनके गर्दन की हड्डी पर किसी भारी चीज से मारे जाने का जख्म के निशान के चलते वहाँ काला धब्बा और सूजन थी, बायें हाथ की कोहनी के ऊपर काला निशान और चेहरा शरीर के बाकी हिस्से के मुकाबले स्याह होना तथा सूजा हुआ था। इसके बावजूद पोस्ट मार्टम के पहले ही बाराबंकी के पुलिस अधीक्षक सैयद वसीम अहमद का यह कहना कि खालिद की मौत स्वाभाविक कारणों से हुयी है, भी प्रशासन को कटघरे में खड़ा करता है कि पुलिस का पूरा जोर मौलाना की हत्या के वास्तविक तथ्यों को शुरु छिपाना था।
रिहाई मंच के अध्यक्ष और खालिद के अधिवक्ता मोहम्मद शुएब ने कहा कि फैजाबाद जेल में साढ़े तीन बजे वो साथ थे और खालिद पूरी तरह स्वस्थ था और उसने अपने परिवार वालों को सलाम भी भेजा था। सबसे अहम बात कि फैजाबाद में वह कुर्ते-पैजामे में था जबकि सुबह जब पोस्टमार्टम के समय शव को परिजनों को दिखाया गया तो वो टी शर्ट और लोवर में था, जिसे मौलाना खालिद कभी पहनते ही नहीं थे। और उनके साथ दिखाये गये सामानों में भी कुर्ता-पैजामा नहीं था, जिससे साफ हो जाता है कि स्कॉर्ट ने जब हत्या की तो मौलाना खालिद के नाक-कान से निकला खून जो उनके कपड़े पर भी गिर गया, जिसे छुपाने के लिये उनके कुर्ते-पैजामे को छुपा दिया और मौलाना खालिद को टी शर्ट-लोवर पहना दिया गया। इन सब बातों से स्पष्ट हो जाता है कि खालिद की मौत स्वाभाविक नहीं बल्कि सपा सरकार के सरंक्षण में सुनियोजित आपराधिक षडयन्त्र के तहत की गयी जघन्य हत्या है।
रिहाई मंच को शक है कि जिस तरह से पंचनामे से ही तथ्यों को छिपाने की कोशिश शुरु हो गयी उससे प्रशासन की नियत पर संदेह बढ़ जाता है कि वह पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में भी इन तथ्यों को छिपाते हुये इसे स्वाभाविक मौत करार दे।
बाराबंकी में मौजूद रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब और प्रवक्ताओं शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि वहाँ मौजूद लोगों द्वारा जिलाधिकारी बाराबंकी से माँग के बावजूद कि वहाँ मुख्यमंत्री आकर परिजनों से मिलें और उनकी बात सुनें लेकिन संवेदनहीन अखिलेश को यह बात मंजूर नहीं हुयी। मंच ने कहा कि खालिद के चचा जहीर आलम फलाही द्वारा तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल, मनोज कुमार झा, चिरंजीव नाथ सिन्हा, एस आनंद और आईबी के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराने के बावजूद न अब तक इन अधिकारियों को और न ही इस हत्या को अजांम देने वाले पुलिस स्कॉर्ट को अब तक गिरफ्तार किया गया और न ही इनको निलम्बित किया गया।
मडि़याहू में मौजूद रिहाई मंच आजमगढ़ के संयोजक मसीहुदीन संजरी, तारिक शफीक, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, सालिम दाउदी, गुलाम अम्बिया, सादिक खान, शौकत अली, वर्धा महाराष्ट्र से आये लक्षमण प्रसाद, अब्दुल्ला एडवोकेट, दिल्ली से आये एपीसीआर के राष्ट्रीय संयोजक अखलाक अहमद ने बताया कि जिस तरह आज खालिद के जनाजे में बीसियों हजार से ज्यादा लोगों ने शिरकत की और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुये उसने यह साफ कर दिया है कि सपा सरकार ने खालिद की हत्या करवाकर अपनी कब्र खोद ली है। जिसका मुहतोड़ जवाब देने के लिये जनता तैयार है।
हत्या की इस घटना की कठोरतम शब्दों में निन्दा करते हुये भाकपा राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने लखनऊ में कहा कि सपा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा का चाहे जितना दिखावा करे, हालात और घटनायें इसके ठीक उलट संकेत दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार ने पहले ही जस्टिस निमेष आयोग की रिपोर्ट को जारी कर दिया होता और खालिद मुजाहिद और उसके साथियों की रिहाई के सम्बंध में पैरवी को मुस्तैदी के साथ किया होता तो पुलिस को इस षड्यन्त्र का मौका नहीं मिला होता। अतः प्रदेश सरकार इस मौत की जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।
भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि अल्पसंख्यकों के वोटों पर नजर गड़ाये बैठी सपा सरकार ने तमाम दबावों के चलते सी. बी. आई. जाँच की सिफारिश तो कर दी है लेकिन वह इस जबाबदेही से बच नहीं सकती कि आखिर क्यों वह अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा नहीं कर पा रही है ?
वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा कहते हैं कि इस देश में दो दल खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी मानते हैं। दिल्ली की काँग्रेस सरकार मुसलमानों को लेकर बनी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को सामने नहीं लाती और अखिलेश सरकार निमेष आयोग की रिपोर्ट...मुझे तो उन मुसलमान नेताओं पर तरस भी आता है जो मायावती को भी बधाई देने जाते थे और उनसे कह दिया जाता था कि जूते बाहर उतारो। इनमें से कुछ अब अखिलेश यादव को भी बधाई देने पहुँच गये कि हॉवर्ड में भाषण न देकर मुसलमानों की इज्जत रख ली। काश खुद को मुसलमानों का रहनुमा कहने वाले कहते कि खालिद की मौत हो गयी अब तो इन कथित आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद बने निमेष आयोग की रिपोर्ट सामने रखो। काश इन मुसलमान नेताओं ने कहा होता कि नेता जी के खिलाफ बेनी बाबू के बयान पर तो सरकार से समर्थन वापसी की बात की जाती है कभी सपा ने यह भी कहा कि अगर सच्चर कमेटी की सिफारिश लागू नहीं की गयी तो समर्थन वापस ले लेंगे... अब मुसलमानों को भी समझ लेना चहिये कि अगर उन्हें लुभावने सपने दिखाये जा रहे हैं तो यह चुनाव का ही खेल है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता महताब आलम तंज कसते हैं-खालिद मुजाहिद हत्या : (इमाम) बुखारी, (ज़फ़रयाब) जिलानी, (कमाल) फारूकी, (तस्लीम) रहमानी के साथ-साथ (आमिर) रशादियों और (गुलज़ार) अज़मियों की भी पर्दाफाश करने की सख्त ज़रुरत है ! नोट: जो नाम छूट गए हैं उनको जोड़ लें।
मौजूदा हालात पर हालाँकि सपा का बड़ा नेतृत्व बोलने से बच रहा है लेकिन मुख्यमन्त्री की फेसबुकिया टीम ने जिस तरह से सोशल मीडिया पर मोर्चा लिया उससे पार्टी की छवि ही खराब हुयी और उसकी नीयत पर सवालिया निशान लगे। एक समाजवादी कार्यकर्ता ने फेसबुक पर लिखा- “आतंकवादी गतिविधियों में आरोपित खालिद मुजाहित की मृत्यु पर मातमपुर्सी करने वाले कभी आम नागरिकों की पीड़ा पे भी ध्यान दो। खालिद मुजाहिद की मौत के पश्चात् बिना वजह बाराबंकी अस्पताल परिसर में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और आज़म खान के खिलाफ नारेबाजी/ अभद्र टिप्पणी करके राजनैतिक रोटी सेंकने की कोशिश करने वालों के हाथ कुछ ना लगेगा। मुख्यमंत्री ने मृत्यु के कारण की जाँच के आदेश तत्काल दे दिए हैं।“
इस स्टेटस को दूसरे समाजवादियों ने भी शेयर किया। अब सवाल उठना शुरू हो गये कि अगर सपा, मौलाना खालिद मुजाहिद को आतंकवादी गतिविधियों में आरोपित मान रही है तो उसकी सरकार ने मुकदमा वापसी के लिये क्यों लिखा?
जाहिर है उक्त सपा कार्यकर्ता की मंशा बुरी नहीं रही होगी और वह अपने दल का बचाव ही करना चाहता होगा। नादानों से दोस्ती कभी-कभी ऐसे ही महँगी पड़ जाती है !


