यहां का मौजूदा राष्ट्रवाद ज़हरीला ही नहीं, बेशर्म भी है... जो पाकिस्तान ने नहीं किया, वो भाजपा ने कर दिखाया
यहां का मौजूदा राष्ट्रवाद ज़हरीला ही नहीं, बेशर्म भी है... जो पाकिस्तान ने नहीं किया, वो भाजपा ने कर दिखाया
तो पंजाब नेशनल बैंक का नाम भी वंदे मातरम बैंक कर दीजिए।
शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जब मरे, तो सिक्ख साम्राज्य का राजकाज गड़बड़ाने लगा। उनके खासमखास नंबर एक विश्वस्त जनरल लहना सिंह इस सब से बचने के लिए बनारस निकल लिए। बनारस में ही रहते हुए उन्हें पैदा हुए दयाल सिंह। दयाल सिंह बड़े आदमी रहे। ट्रिब्यून अख़बार शुरू किए। पंजाब नेशनल बैंक बनाए।
एनी बेसेंट ने लिखा है कि कांग्रेस में सबसे ईमानदार और विवेकवान 17 पुरुषों में दयाल सिंह एक थे। वे तीस साल तक स्वर्ण मंदिर के मुखिया रहे। बड़े धर्मार्थी पुरुष थे। लाहौर और दिल्ली में कॉलेज खोले। लाइब्रेरी बनाई। विभाजन के बाद पाकिस्तान में तमाम संस्थानों के नाम बदले गए, लेकिन दयाल सिंह के कॉलेज और लाइब्रेरी से छेड़छाड़ आज तक नहीं की गई।
जो पाकिस्तान ने नहीं किया, वो भाजपा ने कर दिखाया। दिल्ली के दयाल सिंह कॉलेज की प्रशासकीय बॉडी के अध्यक्ष भाजपा नेता और बड़े वकील अमिताभ सिन्हा हैं, जिन्होंने शाम के कॉलेज का नाम बदल डाला। वंदे मातरम कॉलेज कर दिया। अतीत के आइडेंटिटी क्राइसिस से ग्रस्त एक ब्राह्मणवादी संगठन के बनिया मुखौटे ने एक झटके में जेएनयू से पढ़े एक कायस्थ का इस्तेमाल कर के राजपुत्र की विरासत को मिट्टी में मिला दिया। हाथ घुमा कर शेर-ए-पंजाब की नाक काट ली गर्इ। अतीत के सबसे बड़े राष्ट्रवादियों में से एक दयाल सिंह मजीठिया की आधी मूंछ उड़ा दी गई। इसे राष्ट्रवाद का नाम दिया जा रहा है।
यहां का मौजूदा राष्ट्रवाद ज़हरीला ही नहीं, बेशर्म भी है। एक चीज़ होती है आंख का पानी। इनके यहां नहीं पायी जाती है। पता है कि अकाली दल तो कुछ बोलेगा नहीं। बनारस अपना है और दिल्ली के सरदार चौरासी पीडि़त ठहरे। बात-बात पर महाराजा रणजीत सिंह का नाम लेने वाले लोग अब बचे नहीं। तो पंजाब नेशनल बैंक का नाम भी वंदे मातरम बैंक कर दीजिए। और बैकग्राउंड में जनता को पद्मावती के नाम पर लहकाए रहो, जिसका निर्देशक अमेज़न से 65 करोड़ की डील कर के नक्कटैया विवाद पर मंद-मंद मुस्का रहा है। मस्त है। जैसे उनके दिन फिरें...।


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