यह चेतावनी थी या जनसंहार का अप्रत्यक्ष आदेश?
यह चेतावनी थी या जनसंहार का अप्रत्यक्ष आदेश?
संघ परिवार के झारखंड विजय के बाद वहींच से लिखा है एके पंकज नेः
दो प्रमुख अतिवादी नेता मार गिराए जाते हैं और फिर अतिवादियों के खिलाफ मुख्यमंत्री का बयान आता है। इसके तुरंत बाद अतिवादी बयान देने वाले मुख्यमंत्री की नस्ल या पुलिस बल के खिलाफ नहीं, अपने ही जैसे नस्ल का जनसंहार कर 60 से अधिक निरीह लोगों को मार डालते हैं। क्या यह कार्रवाई और बयान चेतावनी थी या जनसंहार का अप्रत्यक्ष आदेश? एक दूसरे को लड़वा कर मारने वाली सत्ता किसकी है? बंदूकें, बम और बारूद किसने और क्यों बनाया है?
पंकज जी आपने सीधे सवाल दागा है, जिसका जवाब सुधिजन दें तो आभार।
वैसे भी मैं किसी पर्व त्योहार को मनाता नहीं हूं और न किसी को बधाई भेजता हूं। फिलवक्त तो हैप्पी क्रिसमस कहने की मानसिकता में नहीं हूं। माफ करें। हिंदू राष्ट्र भारत में क्रिसमस दिवस मनाया भी नहीं जा रहा है।
आज सुशासन दिवस है। जिसे अच्छी तरह मनाने के लिए सलवा जुड़ुम के तहत नरमेध यज्ञ असम के बोडो भूगल से शुरु हो चुका है।
इतिहास के कायकल्प में संघ परिवार की अनंत दक्षता का मंजर यह हुआ कि आज क्रिसमस दिवस होकर भी क्रिसमस दिवस नहीं है। नहीं है।
आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का जन्मदिन है।
सरकार इस दिन को सुशासन दिवस के रूप में तो मना ही रही है।
वाजपेई को भारत रत्न देने का ऐलान कर यह दिन और खास हो गया है।
आज उन्ही पंडित मदन मोहन मालवीय को अटल हिंदुत्व के साथ जुड़वा भारत रत्न का जश्न है, जिनने बाबासाहेब अंबेडकर के मुकाबले में खड़ा होने के लिए बाबू जगजीवन राम को पाल पोसकर पढ़ा लिखाकर तैयार किया लेकिन बाबासाहेब के खिलाफ सक्रिय रहे।
मनुस्मृति शासन में बाइसवीं बार क्षत्रियों के संहार के बाद शूद्र राजकाज में कल्कि के अवतार समय में हिंदू साम्राज्यवाद के पुनरूत्थान के लिए फिर उनका आवाहन।
क्रिसमस पर मुकम्मल हिंदुस्तान की प्लुरल तस्वीर
हम चाहे क्रिसमस मनायें या न मनायें, मेरे घर में आज क्रिसमस है।
सोदपुर की संगीतबद्ध महिलाओं के एक जत्थे ने मेरे घर पर आज कब्जा कर लिया है।
उन्होंने मुझसे मटन का पैसा वसूल लिया है। पड़ोसी डाक्टर एके रायचौधरी केक का स्पांसर करने वाले हैं।
हमारी बेटी मुन्ना डकैत इस गिरोह की सुर सरगना हैं।
गौरतलब है कि सोदपुर में एक फीसद भी ईसाई नहीं हैं।
लेकिन सुबह अखबार का बिल देने गया रेलवे स्टेशन और बाजार जाकर मधुमेह की दवा खरीदी तो देखा कि कोई कुछ नहीं खरीद रहा है केक के सिवाय।
देखा बाजार में केक के सिवाय कुछ भी नहीं बिक रहा है।
रेलवे लाइन और फुटपाथों पर भी केकपात है।
दूध और पाव रोटी लाने कांफेक्शनरी की दुकान पहुंचा तो वे सामान सहेजते मिले कि अब उन्हें फुरसत हुई कि देर रात तक केक बेचने से उन्हें फुरसत नहीं मिली है।
बंगाल को केसरिया बना देने के कश्मीर घाटी सरीखा हकीकत दरअसल यही है।
बंगाल को केसरिया बना देने के कश्मीर घाटी सरीखा हकीकत दरअसल यही है कि मुंबई दिल्ली हाईवे पर मुस्लिम आबादी में भी देर रात तक क्रिसमस का जश्न मनाया लोगों ने।
अंकुरहाटी में एक्सप्रेस भवन के बगल में जो मजार है, वहां कल रात उर्स थी सालाना। पूरे अंकुरहाटी में लाउडस्पीकर से पाक कुरान और हदीस का मतलब समझा रहे थे इस्लाम के विशेषज्ञ।
साइंस से इस्लामी नजरिये का फर्क समझा रहे थे इस्लाम के विशेषज्ञ। वहां और आसपास सलप कोना से लेकर धूलागढ़, पांचला से लेकर उलूबेड़िया, आमता और बागनान हावड़ा जिले में और आरामबाग हुगली जिले में मुस्लमि आबादी मूसलाधार है और वहां उर्स के मध्य क्रिसमस मना रहे थे सर्द रातों में।
जो नेत्रहीन हैं, वे देख नहीं सकते।
जो बहरे हैं, वे सुन नहीं सकते।
जो विकलांग हैं, वे चल नहीं सकते।
बहरहाल मुकम्ल दिलोदिमाग की इंसानियत के लिए ये चीजें उतनी जरूरी भी नहीं हैं।
बस, खिड़कियों और दरवज्जों को खुल्ला रखने की जरूरत है।
यह क्रिसमस पर प्लुरल हिंदुस्तान की मुकम्मल तस्वीर है जो सिर्फ हिंदू नहीं है और जहां हर पर्व त्योहार साझा हैं, चाहे हम निजी तौर पर मनाये या न मनायें।
सीमेंट के जंगल में अंतहीन वातानुकूलित गुफाओं में जो सहमी दुबकी जरूर है इंसानियत इस कयामत समय में कि सुनामियों ने हमें अपने अपने घर से तड़ीपार कर दिया है और घरों, खेतों, खलिहान, जल, जंगल जमीन, पहाड़, समुंदर, मरुस्थल और रण से हम बेदखल जरूर हो गये हैं, बेदखल हो गये हैं प्रकृति और पर्यावरण से लेकिन जनपदों में सुशासन की जयडंका का शोर हर कहीं नहीं है। जहां नहीं है, वहां फिर सलवा जुडुम है, आफसपा है और हैं फर्जी मुठभेड़, दंगे और काले कानून चित्र विचित्र।
इसीलिए ग्लेशियर रेगिस्तान में तब्दील हैं।
इसीलिए सुंदरवन तबाह है।
इसीलिए समुंदरों में सुनामियों का बवंडर है।
इसीलिए भावी अन्न संकट की आशंका में वयोवृद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने अन्न का परि्याग किया है।
लेकिन गौर से देख लीजिये बंधु अगर आंखें सहीं सलामत हैं और आंखें होने के बवजूद धर्मांध नहीं है, मृतात्माओं के शिकंजे में नहीं है, साझा चूल्हा लेकिन हर कहीं चालू है।
इस देश का हर गांव दरअसल सोया हुआ बसंतीपुर है।
जिसके दरवाजों और खिड़कियों पर जोर से दस्तक देने की जरुरत है।
जरूरत है कि साझे हर चूल्हे की आग जलायी जायें।
मुक्तबाजारी अर्थ व्यवस्था में बिरयानी हुए हम
दरअसल मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में देश के आम हुए हों, मिलियनर बिलियनर राजनीति तबके की पांचों उंगलियां घी में हैं और सर हंडिया में है, जहां बिरयानी में तब्दील हैं हमारी हड्डियां, हमारा खून और हमारी जिंदगी, जिसका भोग यह हिंदुत्व की कारपोरेट राजनीति है।
हकीकत लेकिन यह है कि शत प्रतिशत हिंदू करण अभियान से सिर्फ मुसलमान और ईसाई ही नहीं, बाकी सारे विधर्मी भी एकमुश्त पर नरसंहार के लक्ष्य बन गये हैं।
मुसलमानों के खिलाफ अमेरिका के आतंकविरोधी महायुद्ध में इजराइल के साथ पार्टनर बन गये भारत ने जो अपनी पुरानी राजनीति को छोड़कर फलीस्तीन के खिलाफ इजरायल का साथ देने का फैसला कर लिया इसी हिंदुत्वकरण अभियानके तहत, वह यरुशलम मस्जिद कब्जाने के लिए बाबरी विध्वंस के जरिये ड्रेस रिहर्सल का हादसा दोहरा रहा है।
एक तरफ पड़ोसी मुस्लिम बहुल देशों में अखंड भारत के हिंदुओं के अब भी फंसे होने पर लज्जा के दिन वापस होने के माहौल बन गये हैं और हिंदुत्व के सिपाहसालारों को उसकी चिंता कतई नहीं है।
जैसे अस्सी के दशक में केश और पगड़ी देककर जिंदा जलाये जा रहे थे इंसान वैसे ही अब बजरंगी वाहिनियां देश भर में टोपी और दाढ़ी देखकर मुसलमान पहचानने की मुहिम छेड़ चुके हैं।
बंग के विजय के बिना भारत विजय अधूरा कहने वाले अमित शाह झारखंड और कश्मीर जीतने के दावे कर रहे हैं और बाकी भारत की राज्य सरकारों को कब्जाने के लिए जो हिंदुत्व का अभियान है, वह पूर्वी भारत और पूर्वोत्तर भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण तेज करने की रणनीति पर आधारित है।
दूसरी ओर तेल के लिए अब भी परमाणु ऊर्जी कोई विकल्प नहीं बना है जबकि ऐसा कोई बना तो पूरे देश में भोपाल गैस त्रासदी जैसी रेडियोएक्टिव दुर्घटनाओं का सिलसिला शुरु होने वाला है।
बाराक ओबामा के आने से पहले देशभक्त सरकार ने अमेरिकी कंपनियों को भविष्य में होने वाली औद्योगिक और परमाणु दुर्घटनाओ की जिम्मेदारी से बरी कर दिया है।
तेल खपत और वित्त व्यवस्था पर तेल आयात खर्च को देखते हुए भारत को सबसे पहले सस्ते तेल और ईंधन का इंतजाम करना चाहिए।
इसे समझने के लिए अर्थशास्त्र का विद्वान बनना जरूरी भी नहीं है। साधारण जोढ़ घटाव की विद्या पर्याप्त है।
तेल की कीमतें घटना डालर और अमेरिकी अर्थव्यवस्था का सर्वनाश है।
सभी जानते हैं कि मध्यपूर्व से सबसे ज्यादा तेल आता है लेकिन भारत सरकार ने राष्ट्रहित और तेलअर्थव्यवस्था के सामाजिक यथार्थ और अर्थशास्त्र के विपरीत इजराइल के पक्ष में खड़े होकर ग्लोबल हिदुत्व और हिंदू साम्राज्यवाद के हितों के मुताबिक तमाम तेल उत्पादक देशों से दुश्मनी मोल ले ली है, जो दरअसल अमेरिकी हित ही मजबूत बनाते हैं।
डालर की प्रासंगिकता बनाये रखने की पहल है यह तो इजरायल के इस्लाम विरोधी महायुद्ध से ग्लोबल हिंदुत्व का सीधा गठजोड़ खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है।
जिसे और तेज करने के लिए अमरिकी अश्वेत राष्ट्रपति नरसंहार का उत्सव मनाने भारत आ रहे हैं।
गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाने नहीं।
अब तेल महंगा होना भारतीय कारपोरेट मीडिया के लिए सबसे अच्छी खबर हैं।
O- पलाश विश्वास


