वाचाल होने से कोई बापू नहीं बन जाता !
मेरा सन्देश ही मेरा जीवन है ? जीवन से क्या सन्देश लेना ? बापू से सन्देश के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है। गाँधी अच्छे वक्ता कभी रहे नहीं। उनका जीवन जगत और जगदीश को जोड़ता था। उन्हें देखकर आम आदमी अमीर बनने के बजाय अच्छा बनना चाहता था। वह चाहत सार्वदेशिक और सर्वकालिक बन गयी।
इतिहास अपना गुण- धर्म बदल रहा है। हिंसक भी हीरो हो रहे है। शिकारी संत बनकर घूम रहे हैं। बाबा बहेलिया की तरह भक्तों का शिकार कर रहे हैं। नेतृत्व अपना कृतित्व खो रहा है। वचनबद्ध अब प्रवचनबद्ध हो गए हैं। राशन के बदले थाली में भाषण परोसे जा रहे हैं। भारत माता की जय का तड़का लग रहा है। बयानबाजों का यह नया भारत है। नेताओं का बयान अगर विकास का आधार होता तो देश शिखर पर होता !
कहीं न कही लोचा है। चुनाव के पूर्व भी भाषण और बाद में भी भाषण। भाषण रुकने का नाम नहीं ले रहा है। भाषण की अविरल गंगा बह रही है। सरकार केवल भाषण दे रही है। बेचारे विपक्ष के पास न तो बोलने के लिए भाषण है न ही करने के लिए विरोध। विपक्ष के पास एक ही काम है एकजुट होना। एकजुट होना एक बड़ा राजनीतिक कार्य हो गया है। इतिहास का यह समय भाषण- युग के रूप में जाना जायेगा।
देश की बहुसंख्य आबादी रोटी के लिए तबाह है तो सरकार मक्खन बाँट रही है। सरकार स्वयं भटक रही है और देश को भी भटका रही है।
दिशाहीन सरकार देश की दशा पर खामोश है। मोदी का डंका या जलबा अब आस्वाद पैदा कर रहा है। दुनिया का कोई नेता इतना भाषणबाज नहीं है जितना हमारा यह सूरमा है ?
भाषण और उत्सबधर्मी सरकार अब देश को आजिज कर रही है। देश के निजाम को बेहतर इंतजाम देना चाहिए न कि केवल भाषण। जनता छूछ दुलार पाने का अभ्यासी हो गयी है। अंगिका में एक कहाबत है- छूछ दुलार बपचो..! अपनी ही बेवकूफी पर आनंदित होता यह लोकतंत्र ! सालों भर चुनाव और सालों भर भाषण बाजी और लफ्फाजी। देश को क्या हो गया है ? इसका हुक्मरान या तो बौकू होता है या वाचाल ? भारत इसी अतिवाद में फंस गया है।
काश ! सरकार भाषण- संस्कृति को कार्य- संस्कृति नहीं बनाती ? बढ़िया है कि मोदी के मंत्री मौन हैं। अगर सभी को मोदी बोलने की इजाजत दे देते तो देश एक पागलखाने में तब्दील हो गया होता !
हे साबरमती की संतानों ! अपने जीवन को सन्देश बनाओ। बाचाल होने से बापू नहीं बना जा सकता है। गाँधी परिणाम नहीं एक प्रक्रिया का नाम है। इस प्रक्रिया से मोदी सरकार दूर भाग रही है। युगपुरुष, इतिहास - पुरुष, जननायक और लोकनायक किसी लफ्फाजी से नहीं पैदा होते नरेन्द्र भाई।
बाबा विजयेंद्र
बाबा विजयेंद्र, लेखक स्वराज्य खबर के संपादक हैं।