यूरोपियन यूनियन और प्रवासी अल्पसंख्यक भी मुद्दा हैं नार्वे के चुनाव में
यूरोपियन यूनियन और प्रवासी अल्पसंख्यक भी मुद्दा हैं नार्वे के चुनाव में
शेष नारायण सिंह
ओस्लो, 28 अगस्त। नार्वे के चुनाव में नेता भी आम आदमी की तरह रहते हैं। भारत से आये किसी रिपोर्टर के लिये यह सुखद तो है ही लेकिन एक पछतावा भी है कि काश हमारे नेता भी ऐसे होते। शहर के पूर्वी इलाके में आयोजित एक चुनावी सभा में सत्ताधारी लेबर पार्टी का नेता हाफ पैंट पहनकर अपनी साइकिल से आया और हाथ में एक चाकलेट का बार भी था क्योंकि खाने का मौक़ा नहीं मिला था। सत्ताधारी गठ्बंधन की पार्टी सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी की ओस्लो नगर की सबसे महत्वपूर्ण नेता, इन्गुन येरास्ता, मीटिंग शुरू होने के पहले गेट पर खड़े होकर आने वालों से गप्प मार रही थीं। आज की मीटिंग इस इलाके में पर्यावरण की निगरानी रखने वाले एनजीओ ने किया था और सभी पार्टियों के नेताओं को बुलाया गया था। सभी पार्टियों के नेता समय से पहले हाज़िर थे और एनजीओ ने शुरुआती वक्तव्य के लिये सबके लिये तीन मिनट का समय तय कर दिया था और समय पूरा होने पर घंटी बजती थी और नेता लोग चुप हो जाते थे।
मीटिंग शुरू होने के पहले आयोजकों की तरफ से तैनात माडरेटर ने साफ़ बता दिया था कि सारी चर्चा पर्यावरण और सार्वजनिक यातायात की सुविधाओं पर केंद्रित रहेगी। शुरुआती वक्तव्य के बाद लोगों को सवाल पूछने की अनुमति दी जायेगी लेकिन सवाल पूछने वाले केवल सवाल पूछेंगे अपनी राय नहीं देंगे। सवाल सीधे और डायरेक्ट होने चाहिए। यह भी बताया गया कि मीटिंग के दौरान अगर कोई आग वगैरह लग जाये तो बाहर जाने का रास्ता किधर से है। इस मीटिंग में लेबर पार्टी के यान ब्योलर और सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी की इन्गुन येरास्ता भी उपस्थित थे। यह अपनी पार्टियों के बड़े नेता हैं। मुख्य विपक्षी दल होयरे की तरफ से निकोलाई आस्त्रुप आये थे जो मामूली स्तर के नेता हैं। होयरे यानी कंज़रवेटिव पार्टी को इस इलाके से किसी खास समर्थन की उम्मीद नहीं है शायद इसलिये उन्होंने किसी बड़े नेता को नहीं भेजा था। नार्वे के चुनाव में शामिल सभी पार्टियों के प्रतिनिधि आये थे और अगर किसी मुद्दे पर सवाल को टालने की कोशिश करते थे तो मॉडरेटर तुरन्त टोक देता था।
एक भारतीय के रूप में हमारे लिये यह अहम नहीं है कि लोकल मुद्दों पर किसने क्या कहा लेकिन यह अहम है कि चुनाव के पहले होने वाली बैठकों में भी हर स्तर पर लोकतंत्र का ध्यान रखा जाता है।
सत्ताधारी गठबंधन को शुरुआती सर्वेक्षणों में बहुत कम समर्थन मिलता बताया जा रहा था लेकिन अब हालात सुधर रहे हैं और सोशलिस्ट लेफ्ट और लेबर पार्टी, दोनों की स्वीकार्यता बढ़ रही है। इसलिये यहाँ के राजनीतिक पर्यवेक्षकों को अब लगने लगा है कि शायद मौजूदा गठबंधन ही सत्ता पर बना रहे। इसलिये गठबंधन की प्रमुख नेता और ओस्लो इलाके से स्तूर्तिंग ( संसद ) पहुँचने की प्रबल दावेदार इन्गुन येरास्ता से अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बात करने की कोशिश की गयी। ओस्लो इलाके से उनकी पार्टी ने चार उम्मीदवार उतारे हैं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व के नियम के अनुसार 2005 के चुनाव में सोशलिस्ट लेफ्ट को ओस्लो से तीन सीटें मिली थीं जबकि 2009 में दो सीटें मिलीं थीं। इस बार भी पार्टी कम से कम दो सीटों की उम्मीद कर रही है। पार्टी के लिस्ट में इन्गुन येरास्ता का नाम दूसरी जगह पर है इसलिये उनकी संसद पहुँचने की संभावना बहुत ज्यादा है। जब उनको बताया गया कि चुनावी सर्वे में तो उनकी पार्टी को पिछड़ता हुआ दिखाया गया है तो उन्होंने कहा कि इन सर्वेक्षणों का विश्वास मत कीजिये। यह सारे सर्वे टेलीफोन से बात करके किये जाते हैं और उनकी पार्टी का समर्थन मूल रूप से प्रवासी समुदाय में है। दक्षिण अमरीका और अफ्रीका से आये लोगों में उनकी पार्टी की मज़बूत ताक़त है और कोई भी सर्वे वाला इन लोगों को फोन पर सम्पर्क ही नहीं करता। इसलिये किसी भी चुनाव में चुनाव पूर्व सर्वे करने वाले नतीजों के आसपास भी नहीं पहुँचते। उनकी इस बात से अपने देश के चुनावी पंडितों की याद आ गयी। वे भी तो टी वी स्टूडियो में बैठे ज्ञान देते रहते हैं और नतीजा उनके ज्ञान से बिलकुल अलग होता है। उन्होंने बताया कि अल्पसंख्यकों और प्रवासियों में उनकी पार्टी की ताक़त ज्यादा है। सोशालिस्ट लेफ्ट पार्टी ने ओस्लो क्षेत्र से तीसरे नंबर पर ब्राजील मूल की ओलिविया सेलेस और चौथे नंबर पर मोरक्को के यासीन एजारी को टिकट दिया है। इन दोनों के जीतने की उम्मीद नहीं है क्योंकि पार्टी दो सीटों से ज्यादा की उम्मीद नहीं रख रही है। लेकिन लिस्ट में इन दो समुदायों के उम्मीदवार होने का फायदा यह है कि इन की कम्युनिटी के लोग पार्टी को वोट देंगे। मुझे लगा कि जातिवाद की राजनीति के दूसरे रूप में यहाँ भी मौजूद है।
इन्गुन येरास्ता ने बताया कि नार्वे में बजट का एक प्रतिशत विदेशी सहायता के लिये दिया जाता है। जिस से अफ्रीका और एशिया के देशों में गरीबी और स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे लोगों को ताक़त मिलती है लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी होयरे उसको खत्म कर देना चाहती है। उसके सहयोगी एफ आर पी वाले तो अश्वेत लोगों के प्रति सौतेला व्यवहार अपनाने की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इतने पुरातनपंथी और पिछड़े हुये लोग हैं फिर भी यह पता नहीं क्यों एफ आर पी वाले अपने आप को प्रोग्रेसिव पार्टी कहते हैं। उन्होंने कहा कि नार्वे की सम्पन्नता से इंसानी बिरादरी को लाभ मिलना चाहिए और इसके लिये सबको तरक्की में शामिल करके ही रास्ता निकलेगा।
अपने देश में भी ट्रेड यूनियन अधिकारों को मज़बूत करने की उनकी राजनीति उनकी पार्टी को देश के शहरी इलाकों तक ही सीमित रखती है। उनकी पार्टी को डर है कि कंज़रवेटिव पार्टी के नेता यूरोपियन यूनियन में बढ़ रहे बेरोजगार लोगों की संख्या से चिंतित हैं लेकिन उसके बाद भी ट्रेड यूनियन अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। उनकी पार्टी यूरोपियन यूनियन की नार्वे की सदस्यता का विरोध करती रही है। उनका मानना है कि नार्वे अगर यूरोपियन यूनियन का सदस्य होता तो यह परेशानी नहीं होती। लेकिन फिर भी वर्कर को सम्मान मिलना चाहिए। अगर एफ आर पी की चली तो नार्वे के जो नागरिक अश्वेत हैं, वह तो तबाह हो जायेंगे और स्वीडन आदि जैसे देशों से श्वेत लोग आकर नार्वे के रोजगारों पर कब्जा कर लेंगे। जहाँ तक बाकी दुनिया के देशों से सम्बंध की बात है नार्वे को अपना स्वतंन्त्र अस्तित्व बनाए रखना चाहिए।
इन्गुन येरास्ता से बातचीत के बाद लगा कि वे बाकी यूरोप की गरीबी इम्पोर्ट करने के खिलाफ हैं लेकिन अपने देश के मजदूरों की ताकत से मज़बूत बनाने के लिये प्रयत्नशील हैं।


