ये हैं भारत रत्न के सच्चे हक़दार
ये हैं भारत रत्न के सच्चे हक़दार

कौन है भारत रत्न का सच्चा हकदार ?
स्वाधीनता दिवस नजदीक है, वो एक दिन, जिस दिन आप को हर जगह "सफेदी की चमकार" नजर आएगी, वो एक दिन जब दो चार "फूल" डाल के आम आदमी को अंगरेजी का फूल बनाया जाएगा, वो एक दिन जब हर तरफ आप को शीला की जवानी नहीं, ये देश है वीर जवानों का सुनने मिलेगा, वो एक दिन जब किसी की जिन्दगी की शहादत को दो मिनट मौन रख के हमेशा के लिए सुला दिया जाएगा, उसके बेटों को या उसकी विधवा बीवी को, या उसकी बेवा माँ को पदक से सम्मानित कर के, हमेशा के लिए भुला दिया जाएगा।
खैर ये तो चलन बन चुका है, भारत में, यहाँ तिरंगा एक दिन आकाश में गर्व से लहराता है और बाकी बचे 364 दिन हिचकोले खाता है।
15 अगस्त को लोगों को सम्मानित किया जाता है, मेरा अनुरोध है माननीय राष्ट्रपति जी से, माननीय प्रधानमंत्री जी से, कि इस बार भारत रत्न के लिए हर उस आम आदमी को नोमिनेट किया जाए, जो आप के इस भ्रष्ट तंत्र में, इतनी बड़ी हुई महंगाई में, आतंकवाद के साए में, बेरोजगारी की लपट में, घोटालों के दौर में, बदबयानी के शौर में, चैन से जी रहा है, वो भी बिना उफ़ किए हुए||
वो गरीब भी हक़दार है, जो सुबह शाम कड़ी धूप में मेहनत कर रहा है, फिर भी बड़ी हुई महंगाई में, दो वक्त की रोटी अपने परिवार को दे पा रहा है, फिर चाहे उसे अपना पेट काट के ही क्यूँ ना जीना पड़ें, लेकिन वो चुप है।
उस आम आदमी को भी नहीं भूल सकतें, जो कि आप का सच, आप के पर्दाफाश होते घोटालों का सच, रोज देख रहा हैं, जो देख रहा है कि, उससे लिए टैक्स का पैसा, कैसे सफ़ेद पोश अपने विदेशी खातों में जमा करा रहें है, और वो हक़ की आवाज़ भी उठा रहा है तो उसे मिल रही है लाठियां, लाठियां खां के भी वो चुप है।
पदक का हक़दार तो वो किसान भी हैं, जो खुद भूखा रहता है, तब जा के हमें दोनों टाइम रोटी नसीब होती हैं। जो देख रहा है, अपने खून से सींचे अनाज को सरकारी गोदामों में सड़ते हुए, अपने गरीब भाइयों को भूख से बिलख के मरते हुए, फिर भी वो चुप है।
वो देश के सच्चे सिपाही जो रात दिन बोर्डर पे खडें है, जिनकी नींदे आँखों से ओझल हैं, ताकि हम सब चैन से सो सकें और जो सब संपन्न होते हुए भी झेल रहे हैं आतंकवाद का दर्द, जिन्हें खाली इन्तजार है एक हुक्म का और वो मिटा देंगे आतंकवाद का नामो निशान इस धरती से, लेकिन वो बेबस है, अपने भाइयों को रोज मरते हुए देखने के लिए और फिर भी वो चुप है।
यें हैं भारत के अनमोल रत्न, भारत में इतने अनमोल रत्न छुपें हुए है, शायद इतने रत्न तो पद्मभूषण मंदिर से भी नहीं निकलें होंगे, लेकिन बेबसी ये है कि ये सच्चे रत्न तो धूल में खो रहें है, और आप, हम उस मंदिर के रत्नों की चकाचौंध में खो रहें है।
सब कुछ देख के, सब कुछ सह के, भी यें चुप है, इनकी चुप्पी हक़दार है भारत रत्न की, अमीर देश की गरीब जनता हक़दार है भारत रत्न की।
ये है भारत के सच्चें वफादार, भारत रत्न के सच्चे हक़दार, चलिए भारत रत्न ना सही, कम से कम, एक पद्म भूषण, या परम वीर चक्र या चलिए और कोई पदक दे दीजियें लेकिन इस बार लाल किले पे इनका सम्मान कीजिये।
अब आप ही सोचिए क्या ये नहीं है हक़दार भरत रत्न के?
विजय पाटनी
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं