योनिज तो हम सभी हैं ..!
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योनि के जाये तो हम सभी है,
पवित्रता, अपवित्रता ..
यह तो हम पुरूषों की
अप्राकृतिक बकवास है।
सच तो यही है कि
हम सभी पिता के लिंग
और माहवारी से निवृत्त मां की योनि
के सुखद मिलन की
सौगात हैं।
मां के रक्त, मांस, मज्जा में
नवमासी विश्रांति के बाद
उसी योनि के रास्ते आये हैं हम
वही माहमारी के वक्त सा रक्त
जिससे लथपथ थे हम।
जी हां!
बिल्कुल वैसी ही गंधवाला रक्त
और उससे भीगी बिना कटी गर्भनाल
मां और हमारे बीच
उस समय यही बिखरी हुई थी.
दुनिया में गंध की पहली अनुभूति
माहवारी के उसी खून की थी
फिर क्यों नफरत करें हम
अपनी मां, पत्नी या बेटियों से
कि वे माहवारी में हैं ...
अचानक कैसे अपवित्र हो जाती है
औरतें ?
सबरीमाला और रणकपुर के मंदिरों में
निजामुद्दीन और काजी पिया की बारगाहों में !
क्यों बिठा दी जाती हैं
घर के एकांत अंधियारे कोनों में
माहवारी के दौरान...
योनि ने जना है हम सबको
योनिज हैं हम सभी
पवित्रता- अपवित्रता तो
महज शब्द हैं,
औरत को अछूत बनाकर
अछूतों की भांति गुलाम बनाने के लिये..
मेरी मां नहीं बैठी थी कभी
माहवारी में एकांत कमरे में,
वह उन दिनों में भी
खेत खोदती रही,
भेड़ चराती रही,
खाना बनाती रही..
वैसे ही जैसे हर दिन बनाती थी.
ठीक उसी तरह मेरी पत्नी ने भी जिया
माहवारी में सामान्य जीवन
ऐसे ही जीती है हमारे गांव की
मेहनतकश हजारों लाखों
माएं,पत्नियां और बेटियां
माहवारी, पीरियड, रजस्वला होना
उन्हें नहीं बनाता है कभी अबला..
नहीं बैठती वे घर के घुप्प अंधेरे
उदास कोनों में..
नहीं स्वीकारती कभी भी
अछूत होना..
पवित्रता के पाखण्डी पैरोकारों को
यही जवाब है उनका..
सुना है कि माहवारी के उन दिनों में
सबरीमाला सहित सभी धर्म स्थलियां
आती है सलाम करने उनको ...
-भँवर मेघवंशी
( स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता )