रणजीत विश्वकर्मा के असमय निधन से भीतर से बहुत कुछ टूट बिखर रहा है
रणजीत विश्वकर्मा के असमय निधन से भीतर से बहुत कुछ टूट बिखर रहा है
पलाश विश्वास
उत्तराखण्ड आंदोलन व उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के वरिष्ठ नेता रणजीत विश्वकर्मा नहीं रहे। लम्बे समय से गुर्दे की बीमारी से पीड़ित रणजीत दा ने हल्द्वानी के बेस अस्पताल में अपनी देह त्याग दी। लगभग 63 साल के थे रणजीत दा। उन्हें विनम्र अंतिम नमन !
यह खबर सुनकर थोड़ा जोरदार झटका लगा है। अभी नैनीताल में महेश जोशी जी से बात हो सकी है। पवन राकेश दुकान में बिजी हैं। काशी सिंह ऐरी और नारायण सिंह जंत्वाल से लंबे अरसे से संवाद हुआ नहीं है।
मैं जिन रणजीत विश्वकर्मा को जानता हूं, जो डीएसबी कालेज में मेरे सहपाठी थे और शुरु से काशी सिंह के सहयोगी रहे हैं, मुंश्यारी में उनका घर है। वे मेरे साथ ही अंग्रेजी साहित्य के छात्र थे। उक्रांद से जब काशी विधायक बने तो लखनऊ से मुझे फोन भी किया था।
महेश दाज्यू ने कंफर्म किया है कि वे मुंश्यारी के हैं।
फोटो से पहचान नहीं सका क्योंकि रणजीत इतने दुबले पतले थे नहीं। बल्कि मैं और कपिलेश भोज बहुत दुबले पतले थे। दोस्तों में रणजीत हट्टे कट्टे थे।
थोड़ी उलझन उम्र को लेकर भी हो रही है। मुंश्यारी के होने की वजह से हमसे थोड़ी देर से स्कूल में दाखिला हुआ भी होगा तो रणजीत की उम्र साठ साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
उक्रांद में मैं कभी नहीं रहा हूं और हम लोग जब नैनीताल में थे, तब उत्तराखंड आंदोलन के साथ भी नहीं थे। लेकिन काशी सिंह ऐरी के अलावा दिवंगत विपिन त्रिपाठी से भी नैनीताल समाचार की वजह से बहुत अंतरंगता रही थी। नैनीताल छोड़ने के बाद भी जब तक वे जीवित रहे,उनसे संवाद रहा है।पीसी तिवारी भी राजनीति में हैं। उनसे यदा कदा संवाद होता रहता है। जंत्वाल नैनीताल में ही है, वह हम लोगों से जूनियर था डीएसबी में, लेकिन मित्र था। उससे कभी नैनीताल छोड़ने के बाद नैनीताल में एकाद मुलाकात के अलावा अलग से बात हो नहीं सकी है।
डीएसबी के मित्रों में निर्मल जोशी आंदोलन और रंगकर्म में हमारे साथी थे। फिल्मस्टार निर्मल जोशी हम लोगों से जूनियर थे। इन दोनों के निधन को अरसा हो गया।
गिरदा को भी दिवंगत हुए कई साल हो गये।
नैनीताल के ही हमारे पत्रकार सहकर्मी सुनील साह और कवि वीरेनदा हाल में दिवंगत हो गये।
रणजीत बेहद सरल, मिलनसार, प्रतिबद्ध और ईमानदार मित्र रहे हैं। डीएसबी में हम लोग चार साल साथ साथ थे। चिपको आंदोलन के दौरान हम सभी एक साथ थे,जिसमें राजा बहुगुणा, पीसीतिवारी, जगत रौतेला, प्रदीप टमटा सांसद भी शामिल हैं।
रणजीत विश्वकर्मा असमय निधन से भीतर से बहुत कुछ टूट बिखर रहा है।


