फायब्रॉइड या रसौली ऐसी गांठें होती हैं जो कि महिलाओं के गर्भाशय में या उसके आसपास उभरती हैं। ये मांस-पेशियों और फाइब्रस उत्तकों से बनती हैं और इनका आकार कुछ भी हो सकता है। कभी-कभी इन्हें यूटरीन मायोमास और फाइब्रोमायोमास के नाम से जाना जाता है। बहुत सी महिलाओं को पता ही नहीं होता है कि उन्हें रसौली है क्यों कि उनमें ऐसे कोई लक्षण ही नहीं होते हैं। कभी-कभार जांच के दौरान पता चल जाता है कि वे रसौली का शिकार हैं।

नई दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस हास्पिटल के वरिष्ठ न्यूरो इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट डॉ. प्रदीप मुले (Dr. Pradeep Mule, Senior Neuro Interventional Radiologist, Fortis Hospital, Vasant Kunj, New Delhi) के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवनकाल में रसौली का शिकार होती हैं। ये अक्सर 30 से 50 वर्ष के बीच की महिलाओं में अधिक देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये मोटापा से ग्रस्त महिलाओं में अधिक होता है क्यों कि उनमें एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर अधिक होता है।

रसौली के सटीक कारणों (The cause of fibroids) का तो पता आज तक नहीं चल पाया है

अगर इसके कारणों की बात करें तो इसके सटीक कारणों का तो पता आज तक नहीं चल पाया है। रसौली को महिलाओं के शरीर में बनने वाले एक हार्मोन एस्ट्रोजन से जोड़कर देखा जाता है। ये महिलाओं की ओवरी में बनता है। महिलाओं में रसौली उनकी प्रोडक्टिव उम्र 16 से 50 वर्ष कभी-भी उभर सकती हैं। इनका आकार तब बढ़ता है जब ओएस्ट्रोजन का स्तर बढ़ता है, जैसे गर्भावस्था के दौरान। इन रसौलियों का आकर तब घट जाता है, जब एस्ट्रोजन का स्तर गिरता है जैसे मेनोपोज होने के बाद।

रसौली के प्रकार

इंट्राम्यूरल रसौली - ये गर्भाशय की मांस पेशियों की दीवार में उभरती हैं। इसके केस सबसे अधिक पाए जाते हैं।
सबसेरोसल रसौली - ये गर्भाशय की मांस पेशियों की दीवार के बाहर पेल्विस में उभरती हैं और आगे चलकर बहुत बडी हो जाती हैं।

सबम्यूकोसल रसौली - ये गर्भाशय की दीवार की अंदरूनी धारी में स्थित मांस पेशियों में उभरती हैं और इनका विकास गर्भाशय के मध्य में होता है।

पेडुनक्युलेटिड रसौली - ये गर्भाशय की बाहरी दीवार से विकसित होकर गर्भाशय की दीवार तक पहुंच जाती हैं।
सर्वाइकल रसौली - ये सर्विक्स की दीवार में उभरती हैं।

रसौली के लक्षण

डा. मुले का कहना है कि इसके अंतर्गत योनि से अनियमित रूप में रक्त स्राव होता है, मासिक धर्म के दौरान निकलने वाले रक्त की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, कई बार रक्त के साथ खून के थक्के भी आते हैं और पेशाब आने का क्रम बढ़ जाता है। कई बार पेट में बहुत तेज दर्द होता है, संक्रमण के कारण स्राव से दुर्गंध आने लगती है और बुखार तथा रात में पसीना आने की शिकायत रहने लगती है। इसके अंतर्गत बड़ी आंत पर दबाव पड़ने से कब्ज की शिकायत भी हो सकती है। इससे पैदा होने वाली सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह स्त्री के गर्भ धारण करने की राह को बहुत मुश्किल बना देती है। बहुत बड़ी संख्या में महिलाएं गर्भाशय की इस रसौली के कारण मां नहीं बन पाती हैं और बहुत सी महिलाओं के तो गर्भाशय को ही निकालना पड़ जाता है।

डा. मुले का कहना है कि अगर मासिक धर्म के दौरान इतना अधिक रक्त स्राव होने लगे कि हर घंटे तीन से अधिक पैड भीग जाए, पेट और कमर में लगातार ही तेज दर्द हो रहा हो और आमतौर पर 3 से 5 दिन तक चलने वाले रक्त स्राव की अवधि 8 से 10 दिन तक चली जाए तो तत्काल ही चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। कुछ मामलों में रसौली में संक्रमण के कारण स्राव से दुर्गंध भी आती है। बड़ी आंत पर दबाव पड़ने से कब्ज की शिकायत हो सकती है यूरेनरी ब्लैडर पर बढ़े प्रभाव के कारण मूत्र संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

रसौली की जांच | Investigation of neoplasia

अल्ट्रासाउंड स्कैन,
ट्रांसवेजाइनल अल्ट्राउसाउंड,
हिस्टरोस्कोप,
लैपरोस्कोपी,
बायोप्सी,

रसौली का उपचार | treatment of the fibroids | फाइब्रॉएड का उपचार

दवाइयों द्वारा

शल्य क्रिया और लैप्रोस्कोपी द्वारा

अति सूक्ष्म छिद्र द्वारा रसौलियों का निदान

आधुनिक तकनीक- यूट्रीन फाइब्रोइड एंबोलाइजेशन

इस आधुनिक तकनीक के द्वारा त्वचा पर अति सूक्ष्म छिद्र करके बच्चेदानी की रसौलियों का इलाज किया जाता है। इस प्रक्रिया में रोगी को बेहोश नहीं किया जाता और रोगी को अस्पताल में केवल एक ही दिन रुकना पड़ता है। इस प्रक्रिया के उपरांत अधिकतर महिलाएं 1-3 दिन में सामान्य रूप से कार्य करने लगती हैं और बच्चेदानी को निकालने की आवश्यकता नहीं होती है। एक ही समय में सारी रसौलियों का उपचार हो जाता है और यह अत्यधिक प्रभावशाली है।

दरअसल इस प्रक्रिया के दौरान एक इंटरवैंशनल रेडियोलोजिस्ट त्वचा पर एक अति सुक्ष्म सा छिद्र करके पेट के निचले हिस्से से नली (कैथेटर) डालकर एंजियोग्राफी करता है। गर्भाशय नलिका की पहचान एंजोग्राफी द्वारा करने के उपरांत नली के जरिए राई के दाने के बराबर की दवाई इंजेक्शन द्वारा रसौलियां तक पहुंचाते हैं। रक्तस्राव के कारण होने वाला दर्द भी 4-6 घंटों में ठीक हो जाता है और रक्तस्राव तुरंत बंद हो जाता है। इस आधुनिक तकनीक से रसौलियों का उपचार पूरे विश्व में 1995 से हो रहा है।

लाभ:-

इस प्रक्रिया में रोगी को बेहोश करने की आवश्यकता नहीं होती।

त्वचा पर एक सूक्ष्म छिद्र द्वारा यह प्रक्रिया की जाती है। रोगी दूसरे तकनीकों की अपेक्षा शीघ्र स्वस्थ होते हैं।

पेट पर आपरेशन का कोई निशान नहीं आता।

इस तकनीक को बार-बार करने की जरूरत नहीं पड़ती।

रक्त का कोई नुकसान या रक्त चढ़ाने का कोई खतरा नहीं है।

रसौलियों के कारण अत्यधिक रक्तस्राव की शिकायत होती है तो 12-24 घंटों के अंदर इलाज हो जाता है।

सोनी राय

देशबन्धु

( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह समाचारों में उपलब्ध सामग्री के अध्ययन के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)