राजीव मित्तल

1987 में जनसत्ता चंडीगढ़ में रहते हुए रामनाथ गोयनका और प्रभाश जोशी का अख़बार ही नहीं, बल्कि मैं खुद भी राजीव गांधी पर जम के प्रहार कर रहा था, पर जैसे जैसे समय गुजरता गया, उनकी सौम्यता दिल पर छाती गयी..88-89 के शुरू तक जिस तरह VP सिंह जैसे नामुरादों ने उनके विश्वास को ठेस पहुंचाई, उनके चेहरे पे छलकता वो दर्द आज भी कसमसाता है..

1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद चंडीगढ़ आये प्रभाष जोशी ने खुलेआम कहा था कि अब राजीव गांधी नहीं रहे, हम अपने अखबार का सुर नर्म करेंगे...

1991 के चुनावों के दौरान चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री रहते हुए राजीव गांधी की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह हटा ली थी, और एक तरह से उन्हें हत्यारों के हवाले कर दिया था..

एक बात और, कि स्वीडन से खरीदी गयीं जिन तोपों को लेकर VP सिंह राजनीति में शुद्धता लाने को महात्मा गांधी की मुद्रा में चरखा कातते हुए फोटुएं खिंचवाते थे, तो क्या हुआ उस रिश्वत काण्ड का..जिसकी वजह से एक भले इंसान को बदनाम कर सत्ता से हटाया गया.. और क्या हुआ उन घोड़ों के खुरों का, जिन्हें गोयनका अपने टट्टुओं अरुण शौरी और प्रभाष जोशी के जरिये स्वीडन और डेनमार्क तक बिना नाल के कुदवा रहे थे..

राजीव गांधी को मारने में भले ही LTTE का हाथ हो, पर हत्यारे VP, चंद्रशेखर और गोयनका और उनके दोनों अखबार ही नहीं बल्कि एक पूरा जमावड़ा था...