राष्ट्रवाद वही जो हुआ राष्ट्रद्रोह, संसद से सड़क तक घनघोर नौटंकी
राष्ट्रवाद वही जो हुआ राष्ट्रद्रोह, संसद से सड़क तक घनघोर नौटंकी
संसद से सड़क तक हुस्न के लाखों रंग कौन सा रंग देखोगे?
संसद से सड़क तक जब पूरा हिंदुस्तान आहिस्ते-आहिस्ते संघ परिवार का फिलिस्तीन आकार लेने लगा है, जब सिरे से गायब हैं वाम, समाजवादी, अंबेडकरी आवाम और सर्वत्र या केसरिया या फिर आप वसंतबहार है तो लीक बजट पास होने से पहले अच्छे दिन मूसलाधार हैं।
धर्मांध जो राष्ट्रवाद है, उसका नजारा सबसे बड़ा फिलीस्तीन है।
जेहाद के कारोबार का कितना वास्ता इस्लाम और उसके बंदों से है, उसका सामाजिक यथार्थ लेकिन फिलिस्तीन है।
फिलिस्तीन कोई भूगोल नहीं है।
फिलिस्तीन इंसानियत का ताजा मंजर है।
फिलस्तीन कोई मध्यपूर्व का संकट सिर्फ नहीं है।
फिलस्तीन हमारे महान देश भारत का मौजूदा ग्राउंड जीरो हकीकत है।
एक मुकम्मल फिलस्तीन को हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद आकार देने में कामयाब हुआ दिखता है इस्लाम के खिलाफ अपने जिहाद में।
कश्मीर घाटी पर हिंदू राष्ट्रवाद का विजय पताका फहराने के बाद अश्वमेधी शाही घोड़े कितने तेज दौड़ेंगे, कह नहीं सकते हम।
हमारे पास भारत सरकार का कोई सांख्यिकी मंत्रालय नहीं है जो रिजर्व बैंक के गवर्नर को भी परिभाषाओं, पैमानों और आंकड़ों का पाठ पढ़ाये।
फिर भी कश्मीर घाटी में एक फिलस्तीन को आकार लेते हुए हम देख रहे हैं।
हम कह नहीं सकते भारत विजय अभियान का अंजाम आखिर क्या होगा।
बंग विजय होगा या नहीं होगा, कोई फर्क नई पैंदा, जी।
बंगाल संघ परिवार जीते या न जीते, हालात जो बन रहे हैं, बंगाल और समूचे पूरब और पूर्वोत्तर में एक फिलस्तीन आकार ले रहा है।
संसद से सड़क तक घनघोर नौटंकी है।
प्रणव बाबू के अभिभाषण मुताबिक किसानों के हक में भूमि अधिग्रहण बिल संसद में पेश हो गया है और हमेशा की तरह संशोधन की सौदेबाजी के खातिर विरोध में समूचे विपक्ष का वाकआउट हो गया।
अन्ना धरने का जंतर-मंतर से संसद मार्ग तक विस्तार हो चुका है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य या अन्ना है या फिर उनके साथ जुड़े तमाम एनजीओ हैं, जो जनांदोलन के झंडेवरदार हैं या फिर अभी दिल्ली फतह करने वाले अरविंद केजरीवाल हैं।
अब तक प्रतिरोध और जनांदोलन का झंडे फहराने वाले वाम, समाजवादी और अंबेडकरी पक्ष सिरे से गायब हैं और इससे बड़ी बात यह है कि तीनों पक्ष अपनी अपनी दगाबाजियों से बेनकाब हैं और जनता के बीच उनकी साख नहीं कोई और जनता के बीच जाने की उनकी कोई पहल है। लब्बोलुआब यह कि जनता के लिए विकल्प आप ही आप है।
समाजवाद सैफई से केसरिया केसरिया। सैफई दावत अध्यादेशों को देर सवेर कानून की शक्ल दे ही देंगी। मोदी वहां हाजिर थे, लेकिन न सोनिया थी न थे राहुल गांधी। न था वामपक्ष और न अंबेडकरी कोई।
अजब संजोग है कि राजनेताओं को धरना मंच पर न आने की नसीहत देने वाले अन्ना ने दिल्ली हारने से पहले किरण बेदी को पलक पांवड़े पर बिठाये अन्ना ने तुरत-फुरत अरविंद केजरीवाल को मंच पर अपने बगल में बिठा लिया और वे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ राष्ट्र को संबोधित भी करेंगे। वाम, समाजवादी और अंबेडकरी पक्ष का विरोध संसद में दर्ज हो न हो, सड़क पर लेकिन आप है।
खास बात यह है कि अब शकोसुबह की कोई गुंजाइश बची नही है कि संघ परिवार ने आखिर भारत जीते या न जीते, कश्मीर जीत लिया है।
कांग्रेसी सियासत के युवराज की ताजपोशी कब होगी, होगी भी या नहीं कोई नहीं जानता। ताज हो न हो, कांग्रेस के वही सर्वेसर्वा हैं और संसद से उनका अभी अभी पलायन हुआ है। उनने भी अन्ना के धरने में शामिल होने की पेशकश की थी, ऐसी खबर है और खबर यह भी कि अन्ना ने उन्हें राजनेता बताते हुए जनता के बीच बैठने की इजाजत दी थी।
राहुल गांधी जनता के बीच आयेंगे या नहीं, कह नहीं सकते लेकिन अरविंद केजरीवाल को अब जनता के बीच बिठाने की जरूरत नहीं मानते अन्ना। वाम का तो पक्ष ही अभी साफ नहीं है कि वे सड़क पर आयेंगे या नहीं, आयेंगे तो किसके साथ होंगे कि कांग्रेस के साथ मुहब्बत की पींगे फिर बहार बतायी जाती हैं।
जैसे संजोग यह भी कि घाटी का संघ विरोधी जनादेश अब बेमतलब है।
कश्मीर में सत्ता अब जम्मू की है।
दोपहर के भोजन पर चैनलमाध्यमे न्यूज अपडेट से निपटे ही थे कि लैंड लाइन पर इनसुलिन वाली कंपनी का फोन आ गया सविता बाबू को तलब हो गया।
हम खड़ा रहे कि का मेहरबानी हो गइल।
सविता बाबू मुंडि हिलाईके कहल रही कि इनसुलिन तो आखेर जिये वास्ते चाहि।
फोन से वे निबटीं तो पूछा, का खुशखबरी है।
बोली इंसुलिन चालीस रुपये और मंहगा हो गयो।
बहुत सुंदर बा ई हुस्न का जश्न लाजवाब कि बसंत बहार है और देश हमार फिलिस्तीन है।
पलाश विश्वास


