रैली मोदी की और भाजपा गायब ?
रैली मोदी की और भाजपा गायब ?
भाजपा की रोहिणी रैली में न भाजपा दिखी और न चाल चरित्र चेहरा वाला कैडर।
टेलीविजन चैनलों में चुटकुलों से अपनी पहचान बनाने वाले
सिद्धू और विजय गोयल जैसे नेता ही मोदी के साथ दिखे।
अंबरीश कुमार
दिल्ली के रोहिणी इलाके में भाजपा के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली रैली से भाजपा के सारे दिग्गज गायब थे। यह कोई संयोग नहीं है न ही कोई रणनीति, बल्कि भाजपा के शीर्ष नेताओं की मोदी के प्रति सार्वजनिक अभिव्यक्ति है। टेलीविजन चैनलों में चुटकुलों से अपनी पहचान बनाने वाले सिद्धू और विजय गोयल जैसे नेता ही मोदी के साथ दिखे। समर्थन में नारे थे तो सिखों का विरोध आयोजकों के लिये नया सिरदर्द था। भीड़ और जगह दोनों पर बात होनी चाहिये। दिल्ली की राजनीति में बहुत बड़ी बड़ी रैलियाँ हुयी हैं पर कभी कोई राजनैतिक रैली एक कोने में नहीं हुयी। हमने नब्बे के दशक में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की रैली कवर किया था उसका रिकॉर्ड कोई तोड़ नहीं पाया है, वह संसद के पास बोट क्लब पर हुयी थी। उसमें किसान आये थे और कोई भी पैसा देकर नहीं लाया गया था। बाद में मायावती की बड़ी रैलियाँ देखीं जो जिस मैदान में की जाती थी दूसरा कोई राजनैतिक दल उधर देखता नहीं था। मोदी की कोई भी रैली उस मैदान में नहीं रखी जा रही है। मायावती की रैली में भी उनका समाज आता है। पर भाजपा की रोहिणी रैली में न भाजपा दिखी और न चाल चरित्र चेहरा वाला कैडर। यह ऐसी प्रायोजित रैली थी जिसमें चक्कलस वाले लोग कुछ ज्यादा थे। मोदी का मुखौटा था तो टी शर्ट और बड़े बड़े कट आउट, जैसा दक्षिण की फिल्मों के प्रदर्शन के समय दिखता। मोदी का यह शो भी एक भव्य फिल्म के लांच जैसा ही था।
फिर मोदी भाषण तो मंत्रमुग्ध करने वाला दे सकते हैं पर तथ्यों के चलते फ़ौरन ही पकड़ लिये जाते हैं जिसके चलते उन पर #फेंकू वाला जुमला उनपर चस्पा किया जाता है। अटल विहारी वाजपेयी के समय पकिस्तान से रिश्ते बनाने की जो पहल हुयी उसे भी उन्हें याद नहीं रहा और कारगिल के शहीद जवानों को भी भूल गये। सारी कोशिश मनमोहन सिंह को लाचार प्रधानमंत्री बताने की और राहुल गाँधी को परिवारवाद के चलते निपटने की थी। परिवारवाद से भाजपा किस तरह जूझ रही है यह उन्हें पता नहीं है। राजनाथ सिंह से लेकर लालजी टंडन की अगली पीढ़ी पार्टी को उत्तर प्रदेश में संभाल रही है। खैर सिर्फ भीड़ कोई पैमाना नहीं होती है। सोनिया जब राजनीति में आईं तो हर जगह दो से लेकर चार लाख की भीड़ उन्हें सुनने और देखने आई थी पर वोट नहीं मिला। इसलिये भीड़ पैमाना नहीं है। पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जिस तरह इस रैली से दूर रहा और दिल्ली में सिखों ने जिस तरह का विरोध किया है उसका एक राजनैतिक सन्देश भी गया है।
खुद मोदी ने जिस अंदाज में नवाज शरीफ के हवाले से मनमोहन के लिये 'देहाती औरत' का जुमला इस्तेमाल किया है, वह चर्चा का विषय रहा है। बाकी इतिहास और अर्थशास्त्र का हवाला जब मोदी देते हैं तो उसमें सुधार की बहुत गुंजाइश रहती है। दिल्ली की यह शुरुआत सिर्फ भीड़ के लिहाज से बेहतर मानी जा सकती है जिसका श्रेय अत्याधुनिक प्रबंधन को जाता है। और मोदी एक अच्छे राजनैतिक प्रबंधक है यह सभी को पता है। पर प्रबंधन से वोट आना बहुत आसन नहीं है।


